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मोतियाबिंद एक नेत्र बीमारी है जो उम्र बढ़ने के साथ विकसित होती है। लेकिन कुछ मामलों में यह कम उम्र में भी हो सकती है। इसका इलाज करवाना जरूरी होता है। यह उन रोगों में से है जिसका उपचार दवाइयों से नही हो सकता है।
मोतियाबिंद का समय पर इलाज न करवाने से आँखों की रोशनी पूरी तरह चले जाने का भी खतरा होता है। तो चलिए मोतियाबिंद के लक्षण, कारण, प्रकार और उपचार के बारे में विस्तार से जानते हैं।
अक्सर लोगों के मन में ये सवाल जरूर होता है कि आखिर मोतियाबिंद क्या होता है। हमारी आंखों की प्राकृतिक लेंस में प्रोटीन होता है। मोतियाबिंद तब शुरू होता है जब आंखों में प्रोटीन गुच्छे बनाते हैं जो लेंस को रेटिना पर स्पष्ट चित्र भेजने से रोकते हैं।
रेटिना लेंस के माध्यम से आने वाले प्रकाश को संकेतों में परिवर्तित करके काम करता है। यह ऑप्टिक तंत्रिका को संकेत भेजता है, जो उन्हें मस्तिष्क तक ले जाता है। ऐसा होने पर हमारी दृष्टि धुंधली हो जाती है। यह धीरे-धीरे विकसित होता है और अंततः आपकी दृष्टि में हस्तक्षेप करता है। दोनों आंखों में मोतियाबिंद हो सकता है, लेकिन ये आम तौर पर एक ही समय में नहीं बनते हैं।
मोतियाबिंद उम्र बढ़ने के साथ विकसित होता है लेकिन कुछ अन्य कारणों से भी मोतियाबिंद होने की संभावना रहती है।इसे मुख्य रूप से ५ प्रकारों में बांटा जा सकता है। कारणों के आधार पर मोतियाबिंद के पांच प्रकार निम्नलिखित हैं:
आयु संबंधित मोतियाबिंद - इस प्रकार का मोतियाबिंद उम्र बढ़ने के कारण होता है। आयु संबंधित मोतियाबिंद भी ३ तरह के होते हैं जो निम्न हैं:
न्युक्लियर स्क्लेरोटिक मोतियाबिंद - यह लेंस के केंद्र में होने वाला मोतियाबिंद होता है।
कॉर्टिकल मोतियाबिंद - न्यूक्लियस (लेंस का केंद्र) के अगल - बगल होने वाले मोतियाबिंद को कॉर्टिकल मोतियाबिंद कहते हैं।
सेकेंडरी मोतियाबिंद - जब लेंस के किनारों पर धब्बे पड़ जाते हैं तो इसे सेकेंडरी मोतियाबिंद कहा जाता है। इसे पोस्टेरियर सबकैप्सुलर मोतियाबिंद भी कहते हैं।
चोट संबंधित मोतियाबिंद - कभी - कभी आंखों में चोट लगने के कारण भी मोतियाबिंद हो सकता है। आंखों में चोट लगने से लेंस का प्रोटीन निकलकर लेंस को धुंधला कर देता है और इसलिए मरीज को साफ दिखाई नही देता है।
रेडिएशन मोतियाबिंद - इस तरह का मोतियाबिंद हानिकारक किरणों द्वारा होता है। कुछ हानिकारक किरणें जैसे अल्ट्रा वायलेट किरणें आंखों के लेंस पर बुरा प्रभाव डालती हैं और परिणामस्वरूप मोतियाबिंद हो जाता है।
जन्मजात मोतियाबिंद - मोतियाबिंद जन्म से ही बच्चों में देखा जा सकता है। इस तरह का मोतियाबिंद आनुवांशिक कारणों से होता है।
सेकेंडरी मोतियाबिंद - यह ऑपरेशन के बाद होने वाली जटिलता से उत्पन्न होता है और इसका उपचार आसानी से हो जाता है। इस तरह का मोतियाबिंद लेंस के किनारों पर होता है।
मोतियाबिंद के गंभीरता के आधार पर इसे ३ स्तर पर विभाजित किया जा सकता है। मोतियाबिंद के मुख्य रूप से ३ स्तर हो सकते हैं जो निम्न हैं:
पहला स्तर - यह शुरुआती स्तर का मोतियाबिंद होता है जिसमे हल्के लक्षण दिखना शुरू हो सकते हैं। शुरुआती स्तर पर मोतियाबिंद का रंग हल्का पीला होता है।
दूसरा स्तर - इस स्तर का मोतियाबिंद होने पर मरीज को लक्षण दिखना शुरू हो जाते हैं। यही नहीं लक्षणों की वजह से मरीज को रात में आने जाने में समस्या भी हो सकती है। ऐसे में मोतियाबिंद का रंग पीला और गाढ़ा पीला हो सकता है।
तीसरा स्तर - मोतियाबिंद के तीसरे स्तर में मरीज को पैदल चलने में भी मुश्किल आने लगती है क्योंकि आंखों से बहुत ही कम दिखाई देता है। तीसरे स्तर में मोतियाबिंद का रंग भूरा या गहरा भूरा हो सकता है।
जब मोतियाबिंद का स्तर बढ़ता है तो मरीज को कई तरह के लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं। मोतियाबिंद के लक्षण निम्नलिखित हैं:
धुंधला दिखाई पड़ना - किसी भी चीज को देखने पर ऐसा लगता है जैसे उस पर कोहरा छाया हुआ है।
रतौंधी - रात में कम दिखाई पड़ता है। कभी - कभी मरीज को रात में बिल्कुल दिखाई नही देता है - इसे रतौंधी कहते हैं।
रंगों को पहचानने में समस्या - अक्सर मोतियाबिंद के मरीज को रंगों को पहचानने में दिक्कत होती है। उदाहरण के लिए यदि मरीज हरा रंग देख रहा है तो हो सकता है उसे कोई और रंग दिखाई दे।
प्रकाश की चमक से परेशानी - व्यक्ति को रोशनी या अधिक उजाले से समस्या हो सकती है। तेज प्रकाश जैसे सूर्य की रोशनी से मोतियाबिंद के मरीज की आंखें चौंधियाने लगती हैं।
छल्ले दिखाई पड़ना - जब भी मोतियाबिंद का मरीज प्रकाश के स्त्रोत जैसे बल्ब को देखता है, तो उसे बल्ब के चारो तरफ छल्ले दिखाई पड़ते हैं।
पढ़ने में परेशानी - अक्सर छोटे अक्षरों को पढ़ने में परेशानी होती है। इसलिए अखबार या किताबों को पढ़ते समय मरीज को अधिक उजाले की आवश्यकता पड़ सकती है।
दोहरी छवि - मोतियाबिंद में अक्सर एक वस्तु की दो छवियां बनती हैं। दोहरी छवि बनने के कारण मरीज के साथ दुर्घटना भी हो सकती है।
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जब मोतियाबिंद क्या होता है, इसकी जानकारी हो जाती है, तो फिर हमारे मन में अगला सवाल आता है कि आखिर मोतियाबिंद कैसे होता है ? मोतियाबिंद होने का मुख्य और सामान्य कारण उम्र का बढ़ना होता है। उम्र बढ़ने से आंखों में मौजूद प्रोटीन बिखरने लगता है जिस वजह से मोतियाबिंद होता है। हालांकि अन्य कारणों से भी मोतियाबिंद हो सकता है जो निम्न हैं:
बीमारी - डायबिटीज (मधुमेह) के रोगियों में भी मोतियाबिंद हो सकता है।
रेडिएशन - लंबे समय से धूप के किरणों के संपर्क में होना। यदि पहले कभी रेडिएशन की मदद से इलाज हुआ है तो मोतियाबिंद होने का खतरा रहता है।
दुर्घटना - किसी दुर्घटना में यदि आंखों में चोट आ गई हो तो आगे चलकर मोतियाबिंद हो सकता है।
मोतियाबिंद के कई जोखिम कारक हो सकते हैं। इन कारकों को चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है जो इस तरह हैं:
स्वास्थ्य स्थिति
कुछ स्वास्थ्य स्थितियों के कारण भी मोतियाबिंद होने का जोखिम हो सकता है जैसे:
आंख की सर्जरी
कॉर्टीकॉस्टरॉइड (सूजन कम करने वाली दवा) का इस्तेमाल करना
आंखों की बीमारी होना जैसे रेटीना पिगमेंटोसा या युविआइट
ख़राब आदतें
आमतौर पर मोतियाबिंद बढ़ती उम्र के साथ होता है लेकिन कुछ गलत आदतों की वजह से यह समय से पहले भी हो सकता है जैसे:
शराब का अत्यधिक सेवन करना
धूम्रपान करना
आनुवांशिक
पारिवारिक इतिहास में यदि पीढ़ी दर पीढ़ी मोतियाबिंद देखा जा रहा है, तो अगली पीढ़ी में भी आनुवंशिक मोतियाबिंद होने की संभावना रहती है। कुछ मामलों में यह जन्म से ही देखा जा सकता है वहीं कुछ मामलों में यह उचित उम्र से पहले देखा जा सकता है।
वातावरण
आस पास के वातावरण का प्रभाव आंखों पर भी पड़ सकता है और मोतियाबिंद होने की संभावना बढ़ जाती है। वातावरण के अंतर्गत मुख्य जोखिम कारक निम्न हैं:
वायु प्रदूषण
उद्योगों द्वारा प्रयोग किए जा रहे रसायन
कीटनाशक
लंबे समय तक सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणों के संपर्क में रहना
मोतियाबिंद से हमेशा के लिए बचा नही जा सकता क्योंकि यह उम्र बढ़ने पर प्राकृतिक रूप से होता है। अगर कुछ सावधानियां ध्यान में रखी जाएं तो मोतियाबिंद की गति को कम किया जा सकता है।
मोतियाबिंद से बचने के लिए निम्न कदम उठाए जा सकते हैं:
आंखों के प्रति सावधानी: अपनी आंखों को सुरक्षित रखने से कम उम्र में मोतियाबिंद होने की संभावना नही रहती है। वातावरण के प्रभाव से भी मोतियाबिंद जैसी बीमारी उम्र के पहले हो सकती है, इसलिए वातावरण में मौजूद हानिकारक चीजों से बचना चाहिए। अपने आंखों की सुरक्षा इस तरह की जा सकती है:
चोट लगने से बचाना: कुछ लापरवाही और आंखों के प्रति सचेत न रहने के कारण भी दुर्घटना हो सकती है। इसलिए अपनी आंखों को चोट लगने से बचाना चाहिए।
सूर्य की किरण से आंखों को बचाना: सूर्य में मौजूद अल्ट्रावायलेट किरणों की वजह से आंखों में मोतियाबिंद होने का खतरा राहत है, इसलिए सूर्य के किरणों से अपनी आंखों को बचाना चाहिए। इसके लिए धूप के चश्मों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
जीवनशैली में बदलाव: मोतियाबिंद से बचने के लिए यदि जीवनशैली में उचित सुधार लाया जाता है तो उम्र से पहले होने वाले मोतियाबिंद की संभावना कम की जा सकती है। कुछ महत्वपूर्ण बदलाव जिन्हें जीवनशैली में शामिल करना चाहिए निम्नलिखित हैं:
स्वास्थ्य का ध्यान रखना: ऐसा देखा गया है कि कुछ बीमारियों के कारण भी मोतियाबिंद हो सकता है जैसे डायबिटीज (मधुमेह)| इसलिए अपने स्वास्थ्य को निम्न उपायों से बेहतर बनाए रखा जा सकता है:
रोज कम से कम ३० मिनट के लिए व्यायाम करना।
कुछ दवाओं जैसे कॉर्टीकोस्टेरॉइड का इस्तेमाल नही करना।
आदतों में सुधार: कुछ आदतों की वजह से भी मोतियाबिंद उम्र से पहले हो सकता है। इसलिए आदतों में निम्न सुधार करना चाहिए:
अगर शराब का सेवन करते हैं तो इसे धीरे - धीरे छोड़ने का प्रयास करना।
धुम्रपान करने की आदत को छोड़ना।
मोतियाबिंद का पता लगाने के लिए डॉक्टर कई तरह के परीक्षण करते हैं। सबसे पहले वो मोतियाबिंद के लक्षण और मरीज के चिकित्सीय इतिहास के बारे में जानने की कोशिश करते हैं। इसके बाद डॉक्टर निम्नलिखित जांच कर सकते हैं:
विजुअल एक्विटी टेस्ट: इस जांच में डॉक्टर एक आंख पर पट्टी बांध देते हैं और दूसरी आंख से अक्षर को पहचानने के लिए कहते हैं। इस जांच में यह पता लगता है कि मरीज छोटे अक्षरों को पढ़ पा रहा है या नही और मरीज की दृष्टि २०/२० है या इससे कम है।
स्लिट लैंप एग्जामिनेशन: यहाँ सूक्ष्मदर्शी की मदद से डॉक्टर यह पता लगाते हैं कि आंख के किसी भी भाग में कोई खराबी है या नही।
रेटिनल एग्जाम: इसमें मरीज के रेटीना की जांच होती है। विशेष यंत्र (अप्थाल्मोस्कोप) की मदद से नेत्र लेंस की जांच की जाती है और मोतियाबिंद का पता लगाया जाता है।
नेत्र विशेषज्ञ चिकित्सक का अप्वाइंटमेंट लेने के बाद मरीज को अपनी तरफ से कुछ तैयारी करना आवश्यक होता है ताकि मरीज को अप्वाइंटमेंट का पूरा लाभ मिल सके। ऐसे में मरीज को निम्न प्रकार से तैयारी करनी चाहिए:
मरीज को महसूस हो रहे सभी मोतियाबिंद के लक्षण को लिख लेना चाहिए।
वर्तमान समय में इस्तेमाल की जा रही दवाइयां, थेरेपी या सप्लीमेंट की लिस्ट बना लेनी चाहिए।
डॉक्टर के पास जाते समय घर के सदस्य या मित्र को साथ ले जाना चाहिए।
डॉक्टर से मिलने के बाद बेहतर जानकारी के लिए उनसे कुछ सवाल जरूर पूछना चाहिए ताकि मरीज अपने इलाज के बारे में पूरी तरह जागरूक हो। कुछ सवाल जो डॉक्टर से पूछना चाहिए निम्न हैं:
अगर मेरे दोनों आंखों में मोतियाबिंद है तो क्या एक ही समय पर दोनों आंखों की सर्जरी हो सकती है?
सर्जरी के कितने दिन बाद मेरी दृष्टि सुधर जाएगी?
क्या मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद भी मुझे चश्मों की जरूरत पड़ेगी?
ऑपरेशन होने के पहले मुझे कब से खाना पीना बंद करना होगा?
क्या मुझे अपनी बाकी दवाइयों को लेना बंद करना होगा?
मोतियाबिंद ऑपरेशन के दिन मुझे अपने साथ क्या लेकर आना होगा?
ऑपरेशन होने में कितना समय लगेगा?
क्या सर्जरी के दौरान मुझे दर्द होगा?
क्या मोतियाबिंद को लेजर की मदद से निकाला जाता है?
क्या आंखों में लगने वाले लेंस भी कई प्रकार होते हैं?
मोतियाबिंद ऑपरेशन के जोखिम क्या होते हैं?
क्या मुझे एक दिन के लिए अस्पताल में ही रहना होगा? मुझे अस्पताल में कितने समय तक रहना होगा?
मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद क्या मुझे ड्रॉप डालने पड़ेंगे?
ऑपरेशन होने के बाद क्या मैं नहा सकता हूं?
रिकवरी के समय में मैं कौन सी चीजें कर सकता हूं? क्या मैं गाडी चला सकता हूँ?
मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद क्या मुझे फिर से अस्पताल आना होगा?
डॉक्टर से मुख्य रूप से निम्न बिंदुओं की उम्मीद रखी जा सकती है:
वो मरीज के लक्षणों और दैनिक समस्याओं के बारे में पूछेंगे।
आंख से जुड़ी समस्याओं के साथ शरीर के अन्य समस्याओं के बारे में भी जानना चाहेंगे।
आंखों की जांच करने के बाद मरीज को उचित जांच कराने की सलाह देंगे जैसे अल्ट्रासाउंड, खून की जांच, शुगर लेवल, ब्लड प्रेशर लेवल, इत्यादि।
निदान के आधार पर मरीज को मोतियाबिंद ऑपरेशन करवाने की सलाह दे सकते हैं।
मोतियाबिंद के चरण और मरीज के स्वास्थ्य पर इलाज निर्भर करता है। आमतौर पर यदि मोतियाबिंद शुरुआत के चरण में होता है तो डॉक्टर मरीज को कुछ घरेलू उपाय करने को कहते हैं और उचित चश्मा पहनने की सलाह देते हैं। वहीं यदि मरीज का स्वास्थ्य सामान्य है और मोतियाबिंद तीसरे स्तर पर है तो डॉक्टर ऑपरेशन करवाने की सलाह देते हैं। मोतियाबिंद के इलाज के लिए मुख्य रुप से निम्न कदम उठाए जाते हैं:
जब तक मोतियाबिंद का ऑपरेशन नही होता है तब तक डॉक्टर कुछ नॉन सर्जिकल तरीकों से इसका इलाज करते हैं। मुख्य नॉन सर्जिकल तरीका निम्न है:
घरेलू उपाय
मोतियाबिंद के बढ़ने की गति को धीमा करने के लिए डॉक्टर कुछ घरेलू उपायों की सलाह दे सकते हैं। जब तक सर्जरी नही होती है तब तक घरेलू उपायों की मदद ली जा सकती है। कुछ घरेलू उपाय इस प्रकार हैं:
दिन की तेज रोशनी से बचने के लिए धूप वाले चश्में पहनना चाहिए।
घर में चीजों को देखने में कठिनाई होने पर अधिक रोशनी वाली बल्ब का इस्तेमाल करना चाहिए।
पढ़ने में समस्या आने पर मैग्निफाइंग लेंस का इस्तेमाल करना चाहिए।
मरीज को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि डॉक्टर द्वारा दिया गया चश्मा संभवतः सबसे सटीक चश्मा है।
पौष्टिक आहार का सेवन करना चाहिए।
मोतियाबिंद के ऑपरेशन में मरीज के प्राकृतिक नेत्र लेंस को निकाल दिया जाता है और उसके स्थान पर कृत्रिम लेंस (इंट्राऑक्युलर लेंस) लगा दिया जाता है। ऑपरेशन को करने में लगभग १० से १५ मिनट का समय लगता है। मोतियाबिंद के ऑपरेशन में मुख्य रूप से ४ प्रकार की विधियां इस्तेमाल की जाती हैं जो निम्नलिखित हैं:
फैकोएमल्सिफिकेशन: इसे फैको के नाम से भी जाना जाता है। इस विधि में मरीज की आंख में छोटा चीरा लगाया जाता है। अल्ट्रासाउंड की तरंगों द्वारा प्राकृतिक लेंस को तोड़कर बाहर निकाल लिया जाता है। इसके बाद इंट्राऑक्युलर लेंस को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।
फेम्टोसेकेंड लेजर विधि: इस विधि में लेजर की मदद से चीरा लगाया जाता है और प्राकृतिक लेंस को निकाला जाता है। इसके बाद इंट्राऑक्युलर लेंस को लगाया जाता है।
एक्स्ट्राकैप्सुलर कैटरैक्ट सर्जरी: इस विधि को तब इस्तेमाल किया जाता है जब मोतियाबिंद का स्तर अधिक होता है। एक्स्ट्राकैप्सुलर कैटरैक्ट सर्जरी में थोड़ा बड़ा चीरा (फैको विधि की तुलना में) लगाया जाता है ताकि प्राकृतिक लेंस को पूरा - पूरा निकाला जा सके। प्राकृतिक लेंस को निकालने के बाद इंट्राऑक्युलर लेंस को प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।
इंट्राकैप्सुलर कैटरैक्ट सर्जरी: इस विधि में एक्स्ट्राकैप्सुलर विधि की तुलना में बड़ा चीरा लगाया जाता है। हालांकि इस विधि का प्रयोग आजकल बहुत कम होता है लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में इसकी जरूरत पड़ सकती है। इसमें आंख की प्राकृतिक लेंस सहित कैप्सूल को भी निकाल लिया जाता है। इस विधि में इंट्राऑक्युलर लेंस को दूसरी जगह (आइरिस के सामने) प्रत्यारोपित किया जाता है।
आमतौर पर भारत में मोतियाबिंद ऑपरेशन की कीमत ₹ २०,००० से शुरू होती है। मोतियाबिंद ऑपरेशन में औसतन ₹ ८५,००० तक का खर्च आ सकता है और यह रेंज ₹ १,३०,००० तक भी जा सकती है।
मोतियाबिंद के ऑपरेशन में लगने वाला खर्च कई चीजों पर निर्भर करता है जैसे:
शहर: मोतियाबिंद ऑपरेशन का खर्च अलग अलग शहरों में भिन्न हो सकता है। जैसे गुरुग्राम में औसतन खर्च ₹ ९५,००० तो दिल्ली में औसतन खर्च १ लाख रुपए तक आ सकता है।
अस्पताल: देश भर में अस्पताल कई प्रकार के होते हैं और उनमें लगने वाला खर्च भी कम या ज्यादा हो सकता है, जैसे सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में औसतन खर्च ₹ १,३०,०००, बड़े अस्पताल में ₹ ९०,००० और छोटे अस्पताल में औसतन खर्च ₹ ५५,००० रुपए तक आता है।
मरीज की स्थिति: मरीज की उम्र और उसके स्वास्थ्य की स्थिति से भी मोतियाबिंद ऑपरेशन का खर्च घट या बढ़ सकता है।
ऑपरेशन का प्रकार: मोतियाबिंद के ऑपरेशन में इस्तेमाल की जा रही विधि पर भी खर्च निर्भर करता है।
लेंस का प्रकार: मरीज की आंख में लगाए जा रहे लेंस की कीमत से भी ऑपरेशन का खर्च कम या ज्यादा हो सकता है।
भारत में मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए लगने वाला खर्च कुछ इस प्रकार है:
सर्जरी का नाम | सर्जरी की लागत |
मोतियाबिंद सर्जरी | ₹ २०,००० - ₹ १,३०,००० |
आमतौर पर मोतियाबिंद ऑपरेशन की जटिलताएं देखने को नहीं मिलती हैं। अगर कोई जटिलता देखी भी जाती है तो उसका उपचार आसानी से हो जाता है। मोतियाबिंद ऑपरेशन की जटिलताएं इस प्रकार हैं:
सूजन
संक्रमण
रक्त स्त्राव
ग्लूकोमा
रेटिनल डिटैचमेंट
सेकेंडरी कैटरैक्ट
सिस्टॉइड मैकुलर एडेमा
अंधापन
जिन लोगों में मोतियाबिंद के लक्षण निम्न प्रकार से दिखाई देते हैं, उन्हें नेत्र चिकित्सक से मिलना चाहिए:
पहले की तुलना में धुंधला दिखाई देना
रंगों को पहचानने में असमंजस होना
रात के समय ड्राइविंग में कठिनाई आना
तेज रोशनी से आंखे चौधियाना
एक ही चीज की दो छवि दिखाई देना
बल्ब के पीछे प्रकाश के छल्ले दिखाई देना
स्वस्थ भोजन लेने से आंखें स्वस्थ रहती हैं जिससे कुछ उम्र तक मोतियाबिंद को होने से रोका जा सकता है। खाने - पीने में निम्न सुधार करने से मोतियाबिंद से बचा जा सकता है:
ताजे फलों का सेवन करना
हरी सब्जियों का सेवन करना
तेल से बनी हुई चीजों का सेवन कम करना
अधिक मीठा खाने से बचना, खासतौर पर चीनी से बनी चीजें नहीं खाना
मोतियाबिंद उम्र बढ़ने के साथ होने वाली एक सामान्य बीमारी है। हालांकि यह सिर्फ उम्र बढ़ने के कारण ही नही बल्कि और भी कई कारणों से हो सकती है। मोतियाबिंद का इलाज सिर्फ ऑपरेशन द्वारा ही किया जा सकता है।
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हमारी आंखों के लेंस पर जब प्रोटीन की परत पड़ने लगती है तो हमें धुंधला दिखाई देने लगता है। आंखों की इस चिकित्सीय स्थिति को मोतियाबिंद कहते हैं।
मोतियाबिंद के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं:
धुंधला दिखाई देना
रात में देखने में समस्या आना
सूर्य की चमक से आंखें चौधियाना
बल्ब के आसपास प्रकाश के छल्ले दिखाई पड़ना
रंगों का फीका दिखाई देना
एक वस्तु के २ प्रतिबिंब दिखाई पड़ना
मोतियाबिंद होने के मुख्य रूप से ४ कारण हो सकते हैं जो इस प्रकार हैं:
उम्र बढ़ने के कारण
चोट लगने से
हानिकारक किरणों के संपर्क में रहने से
आनुवांशिक कारणों से
मोतियाबिंद मुख्य रूप से ५ प्रकार के होते हैं जो इस तरह हैं:
आयु संबंधित
चोट संबंधित
आनुवांशिक
रेडिएशन संबंधित
सेकंडरी मोतियाबिंद
अगर मोतियाबिंद शुरुआती स्तर पर है तो डॉक्टर अक्सर चश्मा लगाने को कहते हैं और कुछ घरेलू उपायों का पालन करने के लिए कहते हैं। लेकिन अगर मोतियाबिंद का स्तर अधिक है तो डॉक्टर जल्द से जल्द ऑपरेशन कराने की सलाह देते हैं।
मोतियाबिंद से बचाव के लिए निम्न उपाय अपनाए जा सकते हैं]:
धूप में निकलते समय धूप वाले चश्मे का प्रयोग करना
हानिकारक किरणों जैसे अल्ट्रा वायलेट किरणों से बचना
पौष्टिक आहार का सेवन करना
आंखों को चोट लगने से बचाना
शराब का सेवन और धुम्रपान नही करना
सर्जरी के बिना मोतियाबिंद को ठीक करने का कोई तरीका नहीं है। चश्मे से प्रारंभिक अवस्था में दृष्टि में सुधार हो सकता है।
हालाँकि, जैसे-जैसे मोतियाबिंद बड़ा होता जाता है, यह आपकी आंख के प्राकृतिक लेंस को और अधिक धुंधला कर देगा।
मोतियाबिंद के उपचार के लिए आज के समय में आधुनिक तकनीकें हैं जिसका इस्तेमाल ऑपरेशन के लिए किया जाता है। मोतियाबिंद के इलाज में इस्तेमाल होने वाली कुछ मुख्य तकनीक इस प्रकार है:
फेम्टोसेकेंड लेजर सर्जरी
फैको सर्जरी
एक्स्ट्राकैप्सुलर कैटरैक्ट सर्जरी
मोतियाबिंद का इलाज ऑपरेशन द्वारा किया जाता है जिसे करने में लगभग १० से १५ मिनट तक लगते हैं। ऑपरेशन हो जाते ही मरीज को अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है।
ऑपरेशन के बाद फिर से मोतियाबिंद का होना संभव नहीं है। हालांकि नए लेंस (इंट्राऑक्युलर लेंस) के अगल बगल मौजूद लेंस कैप्सूल के कारण नए लेंस पर धब्बे पड़ सकते हैं जिससे देखने में समस्या आ सकती है। इस समस्या को सेकेंडरी कैटरेक्ट या फिर पोस्टेरियर कैप्सुलर ओपेसिफिकेशन कहा जाता है।
मिथक: आंखों की ड्रॉप से मोतियाबिंद को खत्म किया जा सकता है।
तथ्य: मोतियाबिंद किसी भी तरह की वस्तु नहीं है इसलिए इसे ड्रॉप की मदद से नही निकाला जा सकता है। यह उम्र बढ़ने के साथ नेत्र लेंस में हुए बदलाव के कारण होता है। मोतियाबिंद का इलाज ऑपरेशन द्वारा ही किया जा सकता है।
मिथक: रहन - सहन में बदलाव करने से मोतियाबिंद ठीक हो जाता है।
तथ्य: उम्र बढ़ने के साथ आंखों की लेंस पर प्रोटीन की परत पड़ने लगती है जिसे मोतियाबिंद कहते हैं। इस प्रक्रिया को किसी भी तरह रोका नहीं जा सकता है। स्वस्थ डाइट लेने से हम मोतियाबिंद के गति को कम कर सकते हैं लेकिन इसे रोका नहीं जा सकता है।
मिथक: बूढ़े व्यक्तियों में ही मोतियाबिंद देखा जाता है।
तथ्य: यद्यपि मोतियाबिंद उम्र बढ़ने के साथ होने वाली बीमारी है लेकिन यह कम उम्र में भी हो सकता है। कुछ दवाओं जैसे कॉर्टीकोस्टेरॉइड के इस्तेमाल से आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस वजह से जवान लोगों में भी मोतियाबिंद देखा जा सकता है।
मिथक: अत्यधिक पढ़ने से या नजदीकी काम करने से मोतियाबिंद हो सकता है।
तथ्य: आदतों के द्वारा मोतियाबिंद नही होता है। हलांकी पढ़ने में और दैनिक कार्य करने में समस्या आ सकती है लेकिन इन कार्यों की वजह से मोतियाबिंद होने की संभावना नही होती है।
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Last Updated on: 10 August 2023
MBBS, DNB General Surgery, Fellowship in Minimal Access Surgery, FIAGES
12 Years Experience
Dr Aman Priya Khanna is a well-known General Surgeon, Proctologist and Bariatric Surgeon currently associated with HealthFort Clinic, Health First Multispecialty Clinic in Delhi. He has 12 years of experience in General Surgery and worke...View More
She is a B Pharma graduate from Banaras Hindu University, equipped with a profound understanding of how medicines works within the human body. She has delved into ancient sciences such as Ayurveda and gained valuab...View More
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