काला मोतियाबिंद - कारण, लक्षण, प्रकार, निदान और इलाज

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काला मोतियाबिंद काफी विशिष्ट होता है जिसे ग्लूकोमा भी कहते हैं। मरीज की आंखों की ऑप्टिक नर्व पर दबाव पड़ता है, जिससे आंखों को बेहद नुकसान पहुंच सकता है। यदि ऑप्टिक नर्व पर लगातार दबाव बढ़ता है, तो वो नष्ट भी हो सकती है। इस दबाव को मेडिकल भाषा में इंट्रा ऑक्युलर प्रेशर कहते है। 

हमारे आंख की ऑप्टिक नर्व सूचनाएं और किसी चीज का चित्र हमारे मस्तिष्क तक पहुंचाती है। अगर ऑप्टिक नर्व और आंख के अन्य भागों पर पड़ने वाले दबाव को कम न किया जाए तो, ये आंखों की रोशनी जाने का कारण बन सकता है।

 

मोतियाबिंद क्या है?

मोतियाबिंद एक घना, बादल वाला क्षेत्र है, जो आंख के लेंस में बनता है। मोतियाबिंद तब शुरू होता है जब आंख में प्रोटीन का जमघट बन जाता है, जो लेंस को रेटिना को स्पष्ट चित्र भेजने से रोकता है। हालांकि काला मोतियाबिंद यानी ग्लूकोमा सामान्य मोतियाबिंद से अलग होता है।

 

 

काला मोतियाबिंद के लक्षण क्या है?

काला मोतियाबिंद के लक्षण 

  1. आंखों में दर्द या दबाव
  2. सिरदर्द
  3. रोशनी के चारों ओर इंद्रधनुष के रंग का प्रभामंडल
  4. कम दृष्टि, धुंधली दृष्टि, संकुचित दृष्टि
  5. ब्लाइंड स्पॉट
  6. जी मिचलाना और उल्टी होना
  7. आंखें लाल होना 

काला मोतियाबिंद कितने तरह के होते हैं?

काला मोतियाबिंद के प्रकार:

  1. ओपन-एंगल मोतियाबिंद
  2. एंगल-क्लोजर मोतियाबिंद
  3. सामान्य-तनाव मोतियाबिंद
  4. बच्चों में मोतियाबिंद
  5. सेकेंडरी ग्लूकोमा 

 

सेकेंडरी ग्लूकोमा क्या होता है?

सेकंडरी ग्लूकोमा कई कारणों से होता है लेकिन अक्सर उस व्यक्ति को होता है जिसका मोतियाबिंद का उपचार हो चुका है। हाइपर मेच्योर मोतियाबिंद के कारण आंख पर दबाव बढ़ता है। इस वजह से ऑप्टिक नर्व को क्षति पहुंचती है, जो सेकेंडरी ग्लूकोमा का कारण बन सकता है।

सेकंडरी ग्लूकोमा के प्रकार 

सेकेंडरी ग्लूकोमा के मुख्य रूप से दो प्रकार होते हैं।

  1. सेकेंडरी ओपन एंगल ग्लूकोमा 
    1. पिगमेंट्री ग्लूकोमा
    2. स्टेरॉइड ग्लूकोमा 
    3. सुडोएक्सफोलिएटिव ग्लूकोमा 
    4. ट्रॉमेटिक ग्लूकोमा 
  2. सेकेंडरी एंगल क्लोजर ग्लूकोमा 
    1. न्योवॉस्कूलर ग्लूकोमा 
    2. लेंस के कारण ग्लूकोमा 

 

काला मोतियाबिंद होने का कारण क्या है?

कारण

  1. बढ़ती उम्र
  2. अनुवांशिक 
  3. कईं चिकित्सीय स्थिति: जैसे मधुमेह, हाइपरथायरॉइडिज़्म, हृदय रोग, उच्च रक्त दाब, माइग्रेन आदि
  4. आंख की सर्जरी

काला मोतियाबिंद जोखिम वाले कारक क्या है?

काला मोतियाबिंद के अधिक बढ़ने से आंखों की दृष्टी जा सकती है, इसीलिए इन जोखिम वाले कारकों से अवगत रहें:

  1. उच्च आंतरिक आंखों का दबाव (इंट्राओकुलर दबाव) होना
  2. 60 वर्ष से अधिक उम्र होने के कारण
  3. मोतियाबिंद का पारिवारिक इतिहास होना 
  4. मधुमेह, हृदय रोग और उच्च रक्तचाप जैसी चिकित्सीय स्थितियां होना 
  5. कॉर्निया का होना
  6. अत्यंत निकटदर्शी या दूरदर्शी होना
  7. आंख में चोट या कुछ प्रकार की आंखों की सर्जरी होने के कारण
  8. लंबे समय तक कॉर्टिकोस्टेरॉइड दवाएं या आईड्रॉप्स लेना

मिथक और सच्चाई

मिथक १: काला मोतियाबिंद एक ऐसी बीमारी है, जो केवल बड़े उम्र वाले लोगों को होती है।

सच्चाई: बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी को काला मोतियाबिंद होने की जोखिम हो सकती है। लेकिन, वृद्ध लोगों को काला मोतियाबिंद होने की जोखिम अधिक होती है।

मिथक ३: काला मोतियाबिंद से अंधापन नहीं होता है।

सच्चाई: काला मोतियाबिंद ये अंधापन का कारण बन सकता है यदि इसका सही इलाज नहीं किया जाता है। और यदि दुर्भाग्य से कई रोगियों को इस बात का तब तक इस अहसास नहीं होता है कि वे काला मोतियाबिंद से पीड़ित है, जब तक कि वे लगभग सभी दृष्टि नहीं खो देते।

 

निदान

  1. काला मोतियाबिंद का परीक्षण दर्द रहित होता है और इसमें अधिक समय भी नहीं लगता है। नेत्र चिकित्सक मरीज की दृष्टि का परीक्षण करेंगे। 
  2. वे मरीज की पुतलियों फैलाने के लिए ड्रॉप्स का उपयोग भी कर सकते है।
  3. काला मोतियाबिंद के लक्षणों को जांचने के लिए मरीज की ऑप्टिक तंत्रिका जांच करेंगे। 
  4. नेत्र चिकित्सक मरीज के आंख की तस्वीरें ले सकते है, ताकि वे मरीज की अगली विजिट में चैंजेस को देख सकें। 
  5. इसके अलावा, नेत्र चिकित्सक मरीज की आंखों के दबाव की जांच करने के लिए टोनोमेट्री नामक एक परीक्षण करेंगे। 
  6. यदि नेत्र चिकित्सक को काला मोतियाबिंद का संदेह है, तो वे आपके ऑप्टिक तंत्रिका के विशेष इमेजिंग परीक्षण करने की सलाह दे सकते है। 
  7. काला मोतियाबिंद या आंखों की अन्य समस्याओं का पता लगाने के लिए नियमित रूप से आंखों की जांच जरूरी है। आंखों की जांच से ऑप्टिक स्वास्थ्य और दृष्टि हानि का आकलन किया जा सकता है।

 

ग्लूकोमा से बचने के उपाय 

  1. काला मोतियाबिंद की रोकथाम के लिए समय पर निदान और उचित उपचार करना महत्वपूर्ण हैं। 
  2. अगर आप किसी भी तरह का स्टेरॉयड ले रहे है, तो हमेशा अपने नेत्र चिकित्सक को बताएं और सलाह ले। क्योंकि लंबे समय तक या ज्यादा मात्रा में स्टेरॉयड लेने से आंखों पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे काला मोतियाबिंद होने की जोखिम बढ़ सकती है। 
  3. हरी पत्तेदार सब्जियां, रंगीन फल और जामुन खूब खाएं। इनमें भरपूर मात्रा में विटामिन और खनिज होते हैं, जो हमारे शरीर और आंखों की रक्षा करते हैं।
  4. रोजाना वर्क आउट करे, ताकि इंट्रा ऑक्युलर प्रेशर को नियंत्रित रख सके।
  5. आंखों की सुरक्षा का ध्यान रखें, क्योंकि आंखों में लगी चोट सेंकडरी या ट्रामैटिक काला मोतियाबिंद का कारण बन सकती है।

परीक्षण

काला मोतियाबिंद का परीक्षण ये निर्धारित कर सकता है कि ऑप्टिक नर्व में ब्लॉकेज है या नहीं, जिससे दृष्टि संबंधी समस्याएं हो सकती है। एक नेत्र रोग विशेषज्ञ दर्द से राहत और जांच के लिए परीक्षण करने की सलाह दे सकता है। आपका इन प्रक्रियाओं द्वारा किया जाता है: 

१. टोनोमेट्री: टोनोमेट्री एक फास्ट और सरल परीक्षण है, जो मरीज की आंखों के अंदर के दबाव की जांच करता है। इसके परिणाम से डॉक्टर को ये जानने में मदद होती है कि क्या मरीज को ग्लूकोमा का खतरा है या नहीं।

२. पेरीमेट्री: पेरीमेट्री परीक्षण मरीज की दृष्टि के सभी क्षेत्रों को चेक करते है, जिसमें मरीज का साइड या किनारे की दृष्टि शामिल है। ये परीक्षण करने के लिए, मरीज को एक कटोरे के आकार के उपकरण के अंदर देखना होता है, जिसे परिधि कहा जाता है। 

३. पाकीमेट्री: ये एक सरल और दर्द रहित परीक्षण है, जो कॉर्निया की मोटाई को जल्दी से मापता है और आमतौर पर इसका निम्नलिखित के लिए उपयोग किया जाता है: ये निर्धारित करने के लिए कि रोगी का कॉर्निया लैसिक के लिए उपयुक्त है या नहीं या उसे किसी अन्य प्रकार के उपचार का विकल्प चुनना चाहिए। नियमित आंखों की जांच में जब डॉक्टर को कॉर्नियल असामान्यता का संदेह होता है। 

४. गोनियोस्कॉपी: इस टेस्ट से ४० साल की उम्र में पहुंचने तक किसी भी व्यक्ति के दृष्टि परिवर्तन और आंखों की बीमारियों के शुरुआती लक्षणों का पता लगा सकते है। जिंदगी के ऐसे वक्त में सभी लोगों को एक नेत्र रोग विशेषज्ञ से अपनी आंखों की बीमारी की जांच करानी चाहिए।

५. ऑप्थल्मोस्कोपी: ऑप्थल्मोस्कोपी को फंडसस्कोपी या रेटिनल परीक्षा भी कहा जा सकता है। ये एक ऐसा परीक्षण है, जिसमे रोग विशेषज्ञ को मरीज की आंख के पिछले हिस्से को देख सकते है। मरीज के आंख के इस हिस्से को फंडस कहा जाता है, और इसमें निम्न शामिल होते हैं:

  1. रेटिना
  2. ऑप्टिक डिस्क
  3. रक्त वाहिकाएं

इलाज

काला मोतियाबिंद उपचार में शामिल हैं:

१.आईड्रॉप्स/दवा: प्रिस्क्रिप्शन आई ड्रॉप्स तरल पदार्थ को कम करती है और आंखों के दबाव को कम करने के लिए ड्रेनेज को बढ़ाती है। इस स्थिति के लिए कई प्रकार की आई ड्रॉप /दवाएं उपयोग की जा सकती हैं।

.लेजर उपचार: नेत्र चिकित्सक मरीज की आंख से द्रव की निकासी में सुधार करने में मदद के लिए एक लेजर का उपयोग करता है। जबकि लेजर आई ड्रॉप के उपयोग को पूरक कर सकता है, ये इसे पूरी तरह से प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है।

३.काला मोतियाबिंद की सर्जरी: आंखों के दबाव को कम करने में मदद करने का एक और तरीका है सर्जरी करना। ये  थोड़ा पीड़ादायक उपाय है लेकिन ड्राप या लेजर की तुलना में तेजी से आंखों के दबाव नियंत्रण को भी प्राप्त कर सकता है। सर्जरी दृष्टि हानि को कम करने में मदद कर सकता है, लेकिन ये खोई हुई दृष्टि को फिर से वापस नहीं कर सकता है। ग्लूकोमा के उपचार में दो प्रकार की सर्जरी की जाती है। 

i) ग्लूकोमा फ़िल्टरिंग सर्जरी

जब काला मोतियाबिंद से दृष्टि हानि को रोकने के लिए आईड्रॉप या लेजर से उपचार पर्याप्त नहीं हो पाता है, तब डॉक्टर मरीज को ग्लूकोमा फ़िल्टरिंग सर्जरी करने की सलाह दे सकते है। ग्लूकोमा फ़िल्टरिंग सर्जरी आमतौर पर माइक्रोसर्जिकल उपकरणों और ऑपरेटिंग माइक्रोस्कोप के साथ की जाती हैं। इस प्रकार की नेत्र शल्य चिकित्सा से ठीक से रिकवरी के अन्य प्रकार की नेत्र शल्य चिकित्सा की तुलना में थोड़ी लंबी हो सकती है और नेत्र डॉक्टर के पास लगातार पोस्ट-ऑपरेटिव यात्राओं की जरूरत होती है।

ii) लेजर ट्रैबेकुलोप्लास्टी

ट्रैबेकुलोप्लास्टी काला मोतियाबिंद के लिए लेजर उपचार है। ये गोल्ड मैन गोनियोस्कोप लेंस मिरर का उपयोग कर के आर्गन लेज़र से लैस स्लिट लैंप पर किया जाता हैं। खासकर आर्गन लेजर का उपयोग आंख की ट्रैब्युलर मेशवर्क के माध्यम से जल निकासी में सुधार के लिए किया जाता आ रहा है, जिससे जलीय हास्य नालियां निकलती है। ये ओपन-एंगल काला मोतियाबिंद के वजह से होने वाले इंट्राओकुलर दबाव को कम करने में सहायता कर सकता है। 

आंखों के दबाव को कम करने में मदद करने का एक और तरीका है सर्जरी करना। ये  थोड़ा पीड़ादायक उपाय है लेकिन ड्राप या लेजर की तुलना में तेजी से आंखों के दबाव नियंत्रण को भी प्राप्त कर सकता है। सर्जरी दृष्टि हानि को कम करने में मदद कर सकता है, लेकिन ये खोई हुई दृष्टि को फिर से वापस नहीं कर सकता है। 

 

Updated on : 13 October 2022

समीक्षक

Dr. Aman Priya Khanna

Dr. Aman Priya Khanna

MBBS, DNB General Surgery, Fellowship in Minimal Access Surgery, FIAGES

12 Years Experience

Dr Aman Priya Khanna is a well-known General Surgeon, Proctologist and Bariatric Surgeon currently associated with HealthFort Clinic, Health First Multispecialty Clinic in Delhi. He has 12 years of experience in General Surgery and worke...View More

लेखक

Pranjali Kesharwani

Pranjali Kesharwani

Bachelor of Pharmacy (Banaras Hindu University, Varanasi)

2 Years Experience

She is a B Pharma graduate from Banaras Hindu University, equipped with a profound understanding of how medicines works within the human body. She has delved into ancient sciences such as Ayurveda and gained valuab...View More

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