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बाइल डक्ट (पित्त वाहिनी) कैंसर: लक्षण, जोखिम कारक और निदान

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Dr. Aman Priya Khanna
Common Bile Duct in Hindi

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Common Bile Duct in Hindi
Medically Reviewed by Dr. Aman Priya Khanna Written by Sparshi Srivastava

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बाइल डक्ट कैंसर रोग दक्षिण एशिया की जनसंख्या में अधिक देखा जा सकता है। आमतौर पर यह किसी लिवर फ्लूक इन्फेक्शन के कारण कम आयु में ही हो सकती है लेकिन सामान्यतः अधिक उम्र ( लगभग ६९ से ७० वर्ष ) वाले लोगों में देखा जाता है। 

बाइल डक्ट कैंसर मूलतः डीएनए में हुए बदलाव के कारण शुरू होता है। पित्त वाहिनी कैंसर के लक्षण दिखने में भी समय लगता है। पथरी, लिवर फ्लूक संक्रमण, डाइबिटीज आदि मरीजों में बाइल डक्ट कैंसर होने का जोखिम अधिक रहता है। बाइल डक्ट कैंसर के उपचार के लिए कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, सर्जरी जैसे विकल्प उपलब्ध हैं।  

रोग का नाम बाइल डक्ट (पित्त वाहिनी) कैंसर

विकल्प नाम

कोलांजियोकार्सिनोमा
लक्षण

आंखों और त्वचा में पीलापन (पीलिया) ,त्वचा में खुजली, मल का रंग हल्का, पेशाब का रंग गहरा, पेट में दर्द, भूख में कमी 

 

कारण ओन्कोजीन, ट्यूमर सप्रेसर जीन

निदान

लिवर फंक्शन टेस्ट, ट्यूमर मार्कर टेस्ट, ईआरसीपी, इमेजिंग टेस्ट, बाइल डक्ट बायोप्सी

इलाज कौन करता है

ऑन्कोलॉजिस्ट

उपचार के विकल्प सर्जरी, लिवर ट्रांसप्लांट, कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी, इम्यूनोथेरेपी

पित्त वाहिनी क्या होती है?

पित्त वाहिकाएं एक श्रृंखला में होती हैं जो लिवर से होते हुए छोटी आंत तक जाती हैं। पित्त की नलिकाओं की मदद से लिवर में बनने वाला पित्त, पित्ताशय में इकट्ठा होता है और अंततः छोटी आंत में प्रवेश करता है।   

पित्त वाहिनी कैंसर क्या होता है ?

कुछ कारणों से जब पित्त की किसी भी नलिका में कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से विकसित होने लगती हैं और ट्यूमर का रूप ले लेती हैं तो यह कैंसर की शुरुआत होती है। पित्त वाहिनी कैंसर को कोलांजियोकार्सिनोमा भी कहा जाता है। पित्त वाहिनी कैंसर की शुरुआत किसी भी पित्त नलिका में हो सकता है। 

पित्त वाहिनी कैंसर के प्रकार

कैंसर की शुरुआत किसी भी पित्त वाहिका से हो सकती है। कैंसर की शुरुआत के आधार पर बाइल डक्ट कैंसर मुख्य रूप से ३ प्रकार के हो सकते हैं जो निम्नलिखित हैं: 

  1. इंट्राहैपेटिक बाइल डक्ट कैंसर: यह कैंसर लिवर में ही शुरू होता है। लिवर में कई सारी पित्त वाहिकाएं मिलकर लेफ्ट और राइट हेपेटिक वाहिकाएं बनाती हैं।  
  2. पेरिहिलियर बाइल डक्ट कैंसर: इस प्रकार का कैंसर लिवर के ठीक बाहर होना शुरू होता है जहां लेफ्ट और राइट हेपेटिक वाहिकाएं जुड़ती हैं। इस कैंसर को क्लात्स्किन ट्यूमर या हिलर कैंसर भी कहते हैं।
  3. डिस्टल एक्स्ट्राहेपेटिक बाइल डक्ट कैंसर: इस प्रकार का कैंसर डिस्टल बाइल डक्ट से शुरू होता है जहां पित्त की नलिका ( सिस्टिक डक्ट ) और लिवर की नलिका ( कॉमन हेपेटिक डक्ट ) मिलते हैं। 

पित्त वाहिनी कैंसर होने के लक्षण

पित्त की नलिका में कैंसर होने पर कुछ लक्षणों का अनुभव हो सकता है जिससे बाइल डक्ट कैंसर की आशंका जताई जा सकती है। निम्नलिखित लक्षणों के दिखने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए: 

  1. आंखों और त्वचा में पीलापन (पीलिया) 
  2. अक्सर त्वचा में खुजली रहना 
  3. मल का रंग हल्का होना 
  4. पेशाब का रंग गहरा होना 
  5. पेट में दर्द होना 
  6. भूख में कमी 
  7. बिना प्रयास के वजन कम होना 
  8. बुखार होना 
  9. जी मिचलाना और उल्टी होना 

विशेषज्ञ डॉक्टर (10)

Dr. Ashwani Chopra
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पित्त वाहिनी कैंसर होने के कारण

पित्त वाहिनी कैंसर होने के पीछे का मुख्य कारण डीएनए में हुए बदलाव होते हैं जो कोशिकाओं को अनियंत्रित रूप से बढ़ने के निर्देश देते हैं। मुख्य रूप से निम्नलिखित जीन के कारण बाइल डक्ट कैंसर हो सकता है: 

  1. ओन्कोजीन: यह जीन मुख्य रूप से  कोशिकाओं के विकास और कोशिकाओं के विभाजन को नियंत्रित करता है। अगर  डीएनए में बदलाव के कारण ओन्कोजीन नियंत्रण करना बंद कर देता है तो कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बनती हैं और ट्यूमर का रूप लेती हैं। 
  2. ट्यूमर सप्रेसर जीन: यह जीन कोशिकाओं के विभाजन को कम करता है और कोशिकाओं को सही समय पर नष्ट करने का निर्देश देता है। अगर डीएनए परिवर्तन के कारण ट्यूमर सप्रेसर जीन अपना काम नहीं कर पाता है तो कोशिकाएं नष्ट नहीं होती हैं और ट्यूमर का रूप लेने लगती हैं।     

पित्त वाहिनी कैंसर के जोखिम कारक

बाइल डक्ट कैंसर कुछ कारणों से किसी को भी हो सकता है लेकिन कुछ विशिष्ट लोगों में बाइल डक्ट कैंसर होने का जोखिम अधिक रहता है। निम्नलिखित  लोगों को पित्त वाहिनी कैंसर का जोखिम हो सकता हैं: 

  1. प्राइमरी स्क्लेरोसिंग कोलांजाइटिस: इस रोग में पित्त की नली में सूजन हो जाता है जिसके कारण पित्त की नली में घाव के निशान (स्कार टिशू) बनने लगते हैं।  
  2. पित्त वाहिनी में पथरी: पित्त की नली में पथरी होने से सूजन और संक्रमण हो सकता है। अंततः इसके कारण बाइल डक्ट कैंसर होने का खतरा रहता है।
  3. कोलेडोकल सिस्ट रोग: यह एक असामान्य जन्मजात स्थिति है जिसमे पित्त की नली में पित्त से भरे हुए सूजन हो जाते हैं जो आगे चलकर कैंसरस हो जाते हैं। 
  4. लिवर फ्लूक संक्रमण: कच्चे या कम पके हुए भोजन के कारण कुछ कीड़ों जैसे क्लोनोरोकिस साइनेंसिस द्वारा लिवर में संक्रमण हो जाता है। ये कीड़े पित्त की नली में रहते हैं और भविष्य में बाइल डक्ट कैंसर के कारक बनते हैं। 
  5. लिवर सिरोसिस: यह क्रॉनिक लिवर रोग का अंतिम चरण होता है जो लिवर कैंसर और बाइल डक्ट कैंसर को उत्पन्न कर सकता है। 
  6. हैपेटाइटिस संक्रमण: लंबे समय से हेपेटाइटिस बी और सी का संक्रमण लिवर सिरोसिस को जन्म दे सकता है। इससे इंट्राहेपेटिक बाइल डक्ट कैंसर हो सकता है। 
  7. पॉलीसिस्टिक लिवर रोग: यह एक दुर्लभ जन्मजात बीमारी है जिसके कारण लिवर के जीन में म्यूटेशन होता है और लिवर में तरल पदार्थ से भरी हुई खोखली गांठे (सिस्ट) बन जाती हैं। इससे बाइल डक्ट कैंसर के विकसित होने का खतरा रहता है। 
  8. कैरोली सिंड्रोम: यह भी एक दुर्लभ जन्मजात बीमारी है। कैरोली सिंड्रोम में लिवर के अन्दर की पित्त वाहिकाएं फैल जाती हैं। इससे पित्त वाहिकाओं में पथरी हो जाती है जिससे भविष्य में बाइल डक्ट कैंसर होने का खतरा रहता है।
  9. इंफ्लामेट्री बॉवेल रोग: इसमें क्रोह्न रोग और अल्सरेटिव कोलाइटिस रोग शामिल हैं। इन रोगों से भी पित्त वाहिकाओं में कैंसर होने का जोखिम रहता है। 
  10. अधिक उम्र: ६० से ७० वर्ष की उम्र के लोगों में बाइल डक्ट कैंसर होना का खतरा अन्य लोगों से कम होता है। 
  11. मोटापा: मोटापे के कारण पित्ताशय और पित्त वाहिकाओं में पथरी का जोखिम अधिक रहता है जिससे भविष्य में बाइल डक्ट कैंसर का खतरा रहता है। इसके अलावा अधिक वजन होने से हार्मोन में बदलाव होते हैं जिससे बाइल डक्ट कैंसर का जोखिम रहता है। 
  12. नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर रोग: इस रोग में लिवर में अतिरिक्त वसा का जमाव हो जाता है जिसका उपचार न होने पर लिवर सिरोसिस हो सकता है और लिवर सहित पित्त वाहिकाओं में कैंसर को जन्म दे सकता है। 
  13. थोरोट्रास्ट: यह एक रेडियोएक्टिव पदार्थ है जो मूलतः थोरियम डाइऑक्साइड होता है। इसके संपर्क में आने से भी लिवर और पित्त वाहिकाओं में कैंसर का जोखिम रहता है। 
  14. पारिवारिक इतिहास: अगर पीढ़ी दर पीढ़ी बाइल डक्ट कैंसर होने का इतिहास रहा है तो अगली पीढ़ी में भी इसका असर देखा जा सकता है। 
  15. डाइबिटीज: शरीर की रक्त शर्करा ( ब्लड शुगर) अधिक होने पर भविष्य में लिवर और पित्त वाहिकाओं में कैंसर का जोखिम रहता है। 
  16. शराब का सेवन: शराब पीने से लिवर की समस्या आम है लेकिन लिवर के अंदर पित्त वाहिकाओं में भी डैमेज होता है और अंततः कैंसर होने का खतरा रहता है। 
  17. स्मोकिंग: स्मोकिंग करने से बाइल डक्ट कैंसर होने का जोखिम हो सकता है लेकिन यह स्पष्ट रूप से नही कहा जा सकता है। 

पित्त वाहिनी कैंसर से बचाव

आमतौर पर पारिवारिक इतिहास, उम्र और पित्त वाहिकाओं में हुई म्यूटेशन के कारण होने वाले बाइल डक्ट कैंसर के जोखिम को कम नहीं किया जा सकता है । हालांकि बाइल डक्ट कैंसर के अन्य जोखिम को कम करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखा जा सकता है: 

  1. वजन को नियंत्रित रखना चाहिए जिससे शरीर स्वस्थ रहता है। 
  2. स्वस्थ जीवनशैली और खान - पान में फलों और हरी सब्जियों को शामिल करना चाहिए।
  3. हैपेटाइटिस बी वायरस के संक्रमण से बचने के लिए टीका अवश्य लगवाना चाहिए। 
  4. यौन संबंधों या रक्त द्वारा फैलने वाले संक्रमण से बचने के लिए उपयुक्त सावधानी रखनी चाहिए।
  5. शराब का सेवन बिल्कुल कम करना चाहिए या बंद कर देना चाहिए।
  6. स्मोकिंग करने से बचना चाहिए। 
  7. रेडियोएक्टिव पदार्थों जैसे थोरोट्रास्ट के संपर्क में आने से बचना चाहिए।

पित्त वाहिनी कैंसर का निदान

पित्त वाहिनी कैंसर के निदान में कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं जिनसे बाइल डक्ट कैंसर का पता लगाया जाता है। मुख्य रूप से ४ तरह के जांच करने से बाइल डक्ट कैंसर की पुष्टि की जा सकती है जो निम्नलिखित हैं:  

  1. लिवर फंक्शन टेस्ट: इस टेस्ट में लिवर के कार्य को जांचा जाता है। इससे डॉक्टर को पता चलता है कि लिवर का कौन सा कार्य प्रभावित या बाधित हो रहा है। 
  2. ट्यूमर मार्कर टेस्ट: इस टेस्ट में रक्त में पाए जाने वाले एक प्रोटीन के स्तर को मापा जाता है जिसे कार्बोहाइड्रेट एंटीजन १९-९ कहते हैं। जब पित्त वाहिकाओं में सूजन, ब्लॉकेज या कैंसर होता है तो खून में इस प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है।   
  3. ईआरसीपी: एन्डोस्कोपिक रेट्रोग्रैड कोलांजियोपैनक्रिएटोग्राफी में एक सूक्ष्म कैमरे को ट्यूब की मदद से छोटी आंत और पित्त वाहिका को जोड़ने वाले स्थान पर डाला जाता है। इस प्रक्रिया की मदद से पित्त वाहिकाओं में डाई भी लगाया जाता है जिससे इमेजिंग टेस्ट में पित्त वाहिकाएं साफ दिखाई दे सकें। 
  4. इमेजिंग टेस्ट: इस टेस्ट में अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआइ), कोलांजियोपैनक्रिएटोग्राफी (एमआरसीपी) की मदद से बाइल डक्ट कैंसर का पता लग सकता है।  
  5. बाइल डक्ट बायोप्सी: इमेजिंग टेस्ट के दौरान बाइल डक्ट के संदिग्ध क्षेत्र से ऊतक का सैंपल लिया जाता है और सूक्ष्मदर्शी की मदद से परीक्षण किया जाता है। 

पित्त वाहिनी कैंसर का उपचार

पित्त की वाहिकाओं में कैंसर होने पर कई तरह के उपचार के विकल्प होते हैं जिसमे सर्जरी भी शामिल है। कुछ विशेष प्रकार की थेरेपी के इस्तेमाल से भी पित्त वाहिनी कैंसर का इलाज किया जा सकता है। बाइल डक्ट कैंसर के उपचार विकल्प कुछ इस प्रकार हैं: 

  1. सर्जरी: कैंसर से प्रभावित पित्त की नली के हिस्से को सर्जरी द्वारा निकाल लिया जाता है। अगर कैंसर अधिक फैल चुका होता है तो आस - पास के अंगों के ऊतकों को भी निकाला जा सकता है।  
  2. लिवर ट्रांसप्लांट: हिलर कैंसर यानी लिवर के ठीक बाहर की पित्त नलिकाओं में कैंसर होने पर यह लिवर में भी फैल जाता है जिसके कारण लिवर ट्रांसप्लांट करना पड़ता है।   
  3. कीमोथेरेपी: इस थेरेपी में दवाइयों की मदद से कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने का प्रयास किया जाता है। कीमोथेरेपी को लिवर ट्रांसप्लांट करने से पहले तक इस्तेमाल किया जाता है। 
  4. रेडिएशन थेरेपी: इस थेरेपी में एक्स - रे जैसे रेडिएशन स्त्रोत की मदद से अधिक ऊर्जा वाली किरणों को कैंसर कोशिकाओं पर दागा जाता है जिससे कैंसर कोशिकाएं नष्ट हो सकती हैं। 
  5. टारगेटेड ड्रग थेरेपी: इस थेरेपी में कैंसर कोशिकाओं में पाई जाने वाली विशिष्ट असामान्यताओं का पता लगाया जाता है जैसे ऐसे प्रोटीन जो कैंसर कोशिकाओं को विकसित होने के निर्देश देते हैं उन्हें टारगेटेड ड्रग थेरेपी के द्वारा हस्तक्षेप करके कम किया जाता है जिससे कैंसर का विकास काफी धीमा हो जाता है।     
  6. इम्यूनोथेरेपी: इस थेरेपी में ऐसी दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए सक्रिय करती हैं।  
  7. हीटिंग कैंसर सेल्स: इस प्रक्रिया में अल्ट्रासाउंड की मदद से डॉक्टर कैंसर में पतली सुई चुभाता है और इस सुई में करेंट के माध्यम से गर्मी दी जाती है। इस प्रक्रिया से कैंसर कोशिकाएं नष्ट हो सकती हैं।  
  8. फोटोडायनेमिक थेरेपी: इस थेरेपी में प्रकाश के प्रति संवेदनशील रसायन को कैंसर कोशिकाओं में इंजेक्शन द्वारा डाला जाता है। इसके बाद कैंसर पर लेजर का प्रकाश डाला जाता है जिससे रासायनिक प्रक्रिया होती है और कैंसर कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं।  
  9. बिलिअरी ड्रेनेज: पित्त को बाहर निकालने के लिए पित्त की नलिका में एक ट्यूब लगाया जाता है। इस प्रक्रिया से बाइल डक्ट कैंसर के लक्षणों में कमी आती है। 

पित्त वाहिनी कैंसर में होने वाली जोखिम और जटिलताएं

पित्त वाहिनी कैंसर के कारण जब पित्त वाहिनी में ब्लॉकेज हो जाता है तो कई जटिलताएं देखी जा सकती हैं। कुछ मुख्य जटिलताएं इस प्रकार हैं:    

  1. संक्रमण: ट्यूमर के कारण पित्त का निकास नही हो पाता है। पित्त का निकास न होने के कारण बिलरूबिन लिवर में ही रह जाता है जिससे पीलिया ( जौंडिस ) देखने को मिलता है। इसके अलावा संक्रमण और लिवर डिस्फंक्शन देखने को मिल सकता है। 
  2. सेकेंडरी बिलिअरी सिरोसिस: ट्यूमर के कारण लंबे समय से  पित्त की नली ब्लॉक होने से सेकेंडरी बिलिअरी सिरोसिस देखने को मिल सकता है। इस रोग में पित्त वाहिकाओं में घाव होने लगते हैं।  

बाइल डक्ट कैंसर का उपचार सही समय पर न होने पर यह तेजी से बढ़ सकता है जिससे मरीज की स्थिति अधिक गंभीर होने लगती है। उपचार में देरी करने पर निम्नलिखित स्थितियां देखी जा सकती हैं: 

  1. कैंसर की गंभीरता में वृद्धि: पित्त वाहिनी में हुए कैंसर का उपचार सही समय पर न होने पर स्थिति गंभीर हो सकती है। ऐसी स्थिति में लक्षण तीव्र हो जाते हैं जैसे वजन में कमी, खुजली, इत्यादि में तीव्रता आ सकती है।  
  2. जीवन प्रत्याशा में कमी: बाइल डक्ट कैंसर के उपचार में देरी होने पर यह पूरी तरह से ठीक नही हो पाता है और अंततः मरीज की जीवन प्रत्याशा कम होती जाती है।  
  3. उपचार में जटिलताएं: बाइल डक्ट कैंसर की सर्जरी में देरी करने पर कैंसर काफी फैल चुका होता है जिससे सर्जरी के दौरान जटिलताएं बढ़ जाती हैं। 

डॉक्टर के पास कब जाएं 

कुछ लक्षणों के दिखने पर नजरंदाज करने के बजाय डॉक्टर के पास जाना चाहिए। ऐसा करने से यह फायदा होता है कि अगर बाइल डक्ट कैंसर होता है तो इसका पता सही समय पर लग जाता है। सही समय पर पता लगने से इसका उपचार थोड़ा आसान हो सकता है। अगर निम्न लक्षण दिखते हैं तो डॉक्टर के पास जाने में देर नहीं करनी चाहिए: 

  1. लगातार थकान महसूस होने पर I
  2. पेट में कई दिनों से लगातार दर्द होने पर I 
  3. पीलिया होने पर I
  4. ऐसे सभी लक्षण जो असामान्य हों I

अधिकतर पूछे जाने वाले सवाल

आमतौर पर पित्त वाहिनी कैंसर के बारे में आम लोगों को गलत जानकारी या सुनी सुनाई बातें पता होती हैं जिनका वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं होता है। इसी तरह कुछ मिथक और उनकी सच्चाई इस प्रकार है:  

  1. मिथक: मीठा खाने से बाइल डक्ट कैंसर बढ़ता है।
    सच्चाई:  रिसर्च में यह पाया गया है कि कैंसर कोशिकाएं अधिक शुगर इस्तेमाल करती हैं लेकिन मीठा खाने से यह कैंसर बढ़ता नही है या मीठा न खाने से कैंसर घटता नही है। हालांकि मीठा खाने से मोटापा और शुगर हो सकता है जो कैंसर को उत्पन्न कर सकता है। 
  2. मिथक: हर्बल दवाएं पित्त वाहिनी कैंसर को ठीक कर सकती हैं।
    सच्चाई: बाइल डक्ट कैंसर में हर्बल दवाएं उपचार के दुष्परिणाम को कम करने में मदद कर सकती हैं लेकिन हर्बल दवाओं से बाइल डक्ट कैंसर का उपचार नही किया जा सकता है।
  3. मिथक: मेरे परिवार के सदस्य को बाइल डक्ट कैंसर हुआ है तो मुझे भी हो सकता है।
    सच्चाई: सिर्फ ५ से १० प्रतिशत मामलों में पारिवारिक इतिहास के कारण पित्त की नली का कैंसर हो सकता है। ९० से ९५ मामलों में बाइल डक्ट कैंसर अन्य कारणों से होता है। 
  4. मिथक: बाइल डक्ट कैंसर में बार - बार नही खाना चाहिए।
    सच्चाई: बाइल डक्ट कैंसर के कारण मरीज को बहुत कम भूख लगती है जिससे वजन और ऊर्जा कम हो जाता है। ऐसे में अधिक कैलोरी वाले भोजन बार - बार लेना चाहिए। 
  5. मिथक: बाइल डक्ट कैंसर की सर्जरी करवाने से कैंसर अन्य अंगों में भी फैल सकता है।   
    सच्चाई: सर्जरी के कारण अन्य अंगों में कैंसर फैलने की संभावना न के बराबर होती है क्योंकि सर्जन शरीर के हर सर्जिकल क्षेत्र के लिए अलग - अलग औजार इस्तेमाल करते हैं। 
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अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार पित्त नली में कैंसर होने का कोई सटीक कारण अभी तक ज्ञात नही है लेकिन पित्त की नली में सूजन और जलन होने से कैंसर की शुरुआत हो सकती है। सूजन होने से वहां की कोशिकाओं के डीएनए में बदलाव होता है जिससे कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से विकसित होने लगती हैं। पित्त की नली में जलन और सूजन कई कारणों से होता है जैसे पित्त की नली में पथरी, संक्रमण इत्यादि। पित्त की नली का कैंसर अनुवांशिक भी हो सकता है। 

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पित्त की नली में होने वाले कैंसर को कोलेंजियोकार्सिनोमा के नाम से भी जाना जाता है। 

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पित्त की नली में होने वाला कैंसर मुख्य रूप से २ प्रकार का होता है। दोनो प्रकार निम्नलिखित हैं: 

  1. अंतर्गर्भाशयी पित्त नली का कैंसर (इंट्राहेपेटिक बाइल डक्ट कैंसर)
  2. पेरिहिलर पित्त नली का कैंसर 
  3. डिस्टल बाइल डक्ट कैंसर 
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शराब पीने से लिवर काफी डैमेज होने लगता है और अंततः लिवर सिरोसिस जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। शराब पीने से अंतर्गर्भाशयी पित्त नली का कैंसर (इंट्राहेपेटिक बाइल डक्ट कैंसर) होने का जोखिम अधिक रहता है।

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पित्त नली के कैंसर के अंतिम चरण में कैंसर अन्य अंगों में भी फैल चुका होता है जैसे लिवर, फेफड़े और पेट में मौजूद कई अंगों में फैल जाता है। ऐसी स्थिति में सर्जरी से भी इस कैंसर को पूरी तरह नही निकाला जा सकता है। 

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जब पित्त की थैली की कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से विकसित होने लगती हैं तो यह ट्यूमर का रूप लेने लगती हैं। यह ट्यूमर पित्ताशय के बाहर भी फैलने लगता है। कोशिकाओं के अनियंत्रित रूप से बढ़ने के पीछे डीएनए में हुए बदलाव होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को निर्देश देते हैं। 

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पित्त की नली में रुकावट होने से लिवर में बनने वाला पित्त, पित्ताशय तक नही पहुंच पाता है जिससे यह लिवर में ही रह जाता है। पित्त के कारण खून में बिलरूबिन की मात्रा बढ़ जाती है जिससे पीलिया ( आंख और त्वचा में पीलापन ) हो जाता है। पित्त की नली में रुकावट के कारण इसमें इन्फेक्शन भी हो सकता है।  

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पित्त की थैली ( गॉलब्लेडर ) न होने से लिवर में बनने वाला रसायन जिसे पित्त कहते हैं वह सीधे छोटी आंत में पहुंचता है। लिवर द्वारा बनाया गया पित्त अब इकट्ठा नही हो पाता है जिससे यह अधिक वसा को पचाने में असफल रहता है। अगर कम वसा वाले भोजन का सेवन किया जाए तो पित्त की थैली न रहने से स्वास्थ्य पर विशेष असर नहीं पड़ता है। 

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कैंसर की गांठ का पता लगाने के लिए कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं। लैब टेस्ट से रक्त में किसी पदार्थ का कम या ज्यादा होना कैंसर का संकेत हो सकता है। इमेजिंग टेस्ट से कैंसरस ट्यूमर के आकार का पता लग जाता है। कैंसर की सटीक जानकारी के लिए बायोप्सी एक बेहतर विकल्प होता है।

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पित्त की नली में समस्या होने पर निम्न लक्षण दिख सकते हैं: 

  1. पीलिया 
  2. खुजली होना 
  3. मल का रंग हल्का पीला होना 
  4. पेशाब का रंग गहरा होना 
  5. भूख में कमी 
  6. बुखार होना 
  7. जी मिचलाना और उल्टी होना 
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पित्त नली के कैंसर का अंतिम चरण गंभीर और जानलेवा होता है। अंतिम चरण में कैंसर कोशिकाएं अन्य अंगों में फैल चुकी होती हैं जिसे सर्जरी द्वारा भी ठीक करना काफी मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में रोगी को तेज खुजली, थकान, पीलिया, अचानक वजन घटने जैसी समस्याएं होती हैं। 

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लिवर द्वारा अधिक कोलेस्ट्राल निष्कासित करने पर पित्त इसे पचा नहीं पाता है जिससे यह पत्थर का रूप लेने लगता है और कोलेस्ट्रॉल का जमाव होने पर धीरे - धीरे बड़ा होने लगता है। यह पथरी जब पित्त की नली में जाकर फंस जाती है तो तेज दर्द होता है।  

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पित्त नली स्टेंट एक आर्टिफिशियल ट्यूब होता है जो  पित्त की नली को ब्लॉक होने या पित्त में हो रहे लीकेज से बचाता है। अगर पित्त नली स्टेंट को ४ से ६ हफ्ते में हटा दिया जाता है तो जटिलाएं न के बराबर होती हैं। अगर पित्त नली स्टेंट को १ या २ साल में निकाला जाता है तो रिकरेंट स्टेनोसिस ( पित्त नली का आकार बार - बार कम होना ) जैसी जटिलता देखी जा सकती है। 
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Last Updated on: 1 December 2022

Disclaimer: यहाँ दी गई जानकारी केवल शैक्षणिक और सीखने के उद्देश्य से है। यह हर चिकित्सा स्थिति को कवर नहीं करती है और आपकी व्यक्तिगत स्थिति का विकल्प नहीं हो सकती है। यह जानकारी चिकित्सा सलाह नहीं है, किसी भी स्थिति का निदान करने के लिए नहीं है, और इसे किसी प्रमाणित चिकित्सा या स्वास्थ्य सेवा पेशेवर से बात करने का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।

समीक्षक

Dr. Aman Priya Khanna

Dr. Aman Priya Khanna

MBBS, DNB General Surgery, Fellowship in Minimal Access Surgery, FIAGES

12 Years Experience

Dr Aman Priya Khanna is a well-known General Surgeon, Proctologist and Bariatric Surgeon currently associated with HealthFort Clinic, Health First Multispecialty Clinic in Delhi. He has 12 years of experience in General Surgery and worke...View More

लेखक

Sparshi Srivastava

Sparshi Srivastava

B.Tech Biotechnology (Bansal Institute of Engineering and Technology, Lucknow)

2 Years Experience

An ardent reader, graduated in B.Tech Biotechnology. She was previously associated with medical sciences secondary research and writing. With a keen interest and curiosity-driven approach, she has been able to cont...View More

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