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भारत में थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों की संख्या पूरे विश्व में सबसे अधिक है। इसके अलावा यह रोग देश के ३ से ४% आबादी में सामान्य रूप से देखा जा सकता है। थैलेसीमिया से पीड़ित कुछ मरीजों को नियमित रूप से इलाज की जरूरत पड़ती है। वहीं कुछ मरीजों को इलाज की बिल्कुल जरूरत नही पड़ती है।
पुरुषों और महिलाओं में रोग की दर समान होती है। गंभीरता की सीमा को देखते हुए, कुछ लोगों को उपचार की आवश्यकता नहीं होती है (जिनमें कोई लक्षण नहीं होते हैं)।
जबकि कुछ लोगों को जीवित रहने के लिए नियमित रक्त आधान की आवश्यकता होती है। थैलेसीमिया रोग के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो इस लेख को नजरंदाज न करें।
थैलेसीमिया रोग एक रक्त विकार है जो बच्चों को माता-पिता से विरासत में मिलता है। ऐसी स्थिति में शरीर सामान्य से कम हीमोग्लोबिन बनाता है। हीमोग्लोबिन एक प्रोटीन है जो लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाता है और यह शरीर के सभी हिस्सों में ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करता है।
हीमोग्लोबिन २ प्रकार के प्रोटीन से बना होता है; अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन। थैलेसीमिया तब होता है जब खराब जीन अल्फा ग्लोबिन और बीटा ग्लोबिन की सही मात्रा नहीं बनाते हैं। इसके कारण हीमोग्लोबिन पूरा नहीं बन पाता है और एनीमिया की समस्या हो जाती है। इससे हीमोग्लोबिन पूरे शरीर में ऑक्सीजन को उचित मात्रा नहीं पहुंचा पाता है।
पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन न मिलने के कारण मरीज को मुख्य रूप से कमजोरी और सांस लेने की समस्या हो जाती है। लेकिन लक्षण कितने गंभीर होंगे यह थैलेसीमिया के प्रकार पर निर्भर करता है।
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थैलेसीमिया को अल्फा और बीटा जीन में आई खराबी या अनुपस्थिति के आधार पर बांटा गया है।
आमतौर पर थैलेसीमिया के २ मुख्य प्रकार होते हैं जो निम्न हैं:
अल्फा थैलेसीमिया - मानव शरीर में, प्रत्येक माता-पिता से २ जीन विरासत में मिलते हैं यानी ४ जीन जो अल्फा ग्लोबिन प्रोटीन बनाते हैं। जब एक या अधिक जीन खराब हो जाते हैं तो अल्फा थैलेसीमिया हो जाता है। इसके कुछ निम्न प्रकार हैं:
बीटा थैलेसीमिया - ऐसा देखा गया है कि पूरी दुनिया में १,००,००० लोगों में से सिर्फ एक व्यक्ति ऐसा होता है जिसे बीटा थैलेसिमिया के लक्षण दिखाई देते हैं। लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि कितने जीन खराब या अनुपस्थित अनुपस्थित हैं।
मध्यम से गंभीर प्रकार के थैलेसीमिया वाले रोगियों को बचपन में ही उनकी स्थिति के बारे में पता चल जाता है क्योंकि उनमें गंभीर एनीमिया के लक्षण अनुभव होते हैं। हल्के लक्षण वाले मामलों में इसका पता देर से लगता है।
ऐसे भी मामले हैं जहां मरीजों को थैलेसीमिया के बारे में तब पता चलता है जब उनके रिश्तेदार भी इससे पीड़ित होते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह एक वंशानुगत बीमारी है।
इसके मुख्य लक्षण कुछ इस प्रकार हैं:
थकान - हल्के स्तर के थैलेसीमिया में थकान और कमजोरी जैसे लक्षण महसूस हो सकते हैं।
भूख न लगना - मरीज को भूख न लगने की भी शिकायत हो सकती है।
चेहरे पर अनियमित हड्डी - रोगी के चेहरे पर हड्डी जैसी रेखा देखी जा सकती है। हालांकि यह नियमित रूप से नही दिखाई देता है।
पेशाब का रंग गहरा - थैलेसीमिया के कारण पेशाब का रंग गहरा नजर आ सकता है। यह चाय के रंग जैसा भी दिखता है।
शारीरिक विकास न होना - मरीज के शारीरिक विकास में भी समस्या आ सकती है।
पीलिया - चेहरे, नाखून और आंखों का रंग पीला पड़ सकता है।
हड्डियों की समस्या - रोगी को हड्डियों से जुड़ी समस्याएं हो सकता हैं जैसे ओस्टियोपोरोसिस।
बढ़ा हुआ प्लीहा - यह प्रतिरक्षा प्रणाली का हिस्सा होता है जिसका आकार बढ़ सकता है।
वयस्क होने में देरी - बच्चे को वयस्क होने में समय लग सकता है क्योंकि यौन अंगों का विकास समय पर नहीं होता है।
सांस लेने में तकलीफ़ - हीमोग्लोबिन की कमी के कारण सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।
थैलेसीमिया एक आनुवंशिक विकार है जो तब होता है जब अल्फा ग्लोबिन प्रोटीन और बीटा ग्लोबिन प्रोटीन का उत्पादन करने वाले जीन में खराबी आ जाती है या ये जीन गायब हो जाते हैं। ये २ प्रोटीन हीमोग्लोबिन बनाते हैं।
४ जीन हैं जो अल्फा ग्लोबिन प्रोटीन का उत्पादन करते हैं, यानी प्रत्येक माता-पिता से २ जीन आते हैं। २ जीन हैं जो बीटा ग्लोबिन प्रोटीन का उत्पादन करते हैं, यानी प्रत्येक माता-पिता से १ जीन आता है।
मरीज को थैलेसीमिया रोग किस प्रकार का है और उसकी गंभीरता इस बात पर निर्भर करती है कि उनके आनुवांशिकी में कौन सा जीन खराब हो गया है या अनुपस्थित है।
थैलेसीमियाएक वंशानुगत रक्त रोग है। इसीलिए जोखिम कारक आनुवंशिक कारकों पर निर्भर करते हैं। यह किसी बीमारी या बाहरी कारणों से होने वाला रोग नही है। इसके कुछ मुख्य जोखिम कारक इस प्रकार हैं:
परिवार के इतिहास- यदि माता-पिता में अल्फा ग्लोबिन या बीटा ग्लोबिन जीन खराब हो गए हैं या उनमें ये जीन अनुपस्थित हैं तो यह बच्चों में भी आ सकता है। अगर परिवार में किसी को थैलेसीमिया है तो भी यह अगली पीढ़ी को हो सकता है।
लोगों की जातीयता- थैलेसीमिया का खतरा लोगों की जातीयता पर भी निर्भर करता है। दक्षिण एशियाई, ग्रीस, अफ़्रीकी और मध्य पूर्वी मूल के लोगों में थैलेसीमिया होने का ख़तरा अधिक होता है।
दक्षिण एशियाई लोगों में गंभीर अल्फा थैलेसीमिया मेजर होने का खतरा अधिक होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन देशों में मलेरिया के मामले अधिक देखे जाते रहें हैं। जीन में ये बदलाव मलेरिया से बचने के लिए हुए थे लेकिन दुर्भाग्यवश यही बदलवा थैलेसीमिया के कारण भी बन चुके हैं।
थैलेसीमिया रोग एक वंशानुगत रक्त रोग है। इसलिए इसे होने से नहीं रोका जा सकता है। लेकिन थैलेसीमिया के मरीजों को कुछ सावधानियां रखनी चाहिए। इससे उन्हें और उनकी आने वाली पीढ़ी को फायदा हो सकता है। उनको ये सावधानियाँ रखनी चाहिए:
शराब और स्मोकिंग से बचें- अधिक मात्रा में शराब और सिगरेट पीने से हड्डियां कमजोर पड़ सकती हैं। इसलिए ऐसे नशीले पदार्थों से बचें।
संक्रमण से बचें- अपने हाथों को साफ रखें और किसी भी रोगी के नजदीक संपर्क में न आएं। अपने टीकों को सही समय पर लें।
विशेष ध्यान- महिला को गर्भावस्था में विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इस समय हृदय से जुड़ी समस्याएं देखी जाती हैं।
आनुवांशिक परामर्श- अगर महिला या पुरुष में थैलेसीमिया के जीन हैं तो उन्हें आनुवांशिक परामर्श लेना चाहिए। इससे उन्हें यह पता रहेगा कि उनका बच्चा थैलेसीमिया से प्रभावित हो सकता है।
मध्यम से गंभीर थैलेसीमिया के मामलों में डॉक्टर बचपन में ही इसका निदान कर लेते हैं क्योंकि गंभीर लक्षण २ साल की उम्र से ही दिखने लगते हैं। लक्षण जानने के बाद डॉक्टर निदान करेंगे।
सबसे पहले, वे शारीरिक परीक्षण करते हैं और वे मरीज़ के चिकित्सा इतिहास के बारे में जानेंगे।
फिर, थैलेसीमिया रोग के लिए किए जाने वाले नैदानिक परीक्षण हैं:
संपूर्ण रक्त गणना (सीबीसी) परीक्षण:
यह परीक्षण हीमोग्लोबिन और लाल रक्त कोशिकाओं को मापता है। यह लाल रक्त कोशिकाओं के आकार को भी मापता है।
थैलेसीमिया रोगियों में हीमोग्लोबिन का मान सामान्य से कम (< ७ ग्राम/डेसिलीटर) होता है।
उनमें लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या भी कम होती है और लाल रक्त कोशिकाओं का आकार भी सामान्य से छोटा होता है।
रेटिकुलोसाइट गिनती - यह परीक्षण यह जांचने के लिए किया जाता है कि अस्थि मज्जा सही दर पर लाल रक्त कोशिकाएं बना रहा है या नहीं।
आयरन अध्ययन - ये अध्ययन यह जांचने के लिए किए जाते हैं कि क्या हीमोग्लोबिन का कम स्तर आयरन की कमी के कारण है या थैलेसीमिया के कारण है।
हीमोग्लोबिन वैद्युतकणसंचलन - यह परीक्षण थैलेसीमिया के प्रकार की जांच करने के लिए किया जाता है। यह अधिकतर बीटा थैलेसीमिया की जांच के लिए किया जाता है।
डीएनए परीक्षण - यह कोई नियमित परीक्षण नहीं है। लेकिन आगे के चरणों में यह अल्फा या बीटा ग्लोब्युलिन जीन खराब होने की पुष्टि करता है।
अपॉइंटमेंट की मदद से रोगी को पेशेवर चिकित्सीय परामर्श मिल जाता है। डॉक्टर से परामर्श लेना इस रोग से जुड़े संशय को खत्म करता है और रोगी को मानसिक संतुष्टि मिलती है। यदि कोई मरीज थैलेसीमिया से पीड़ित है तो वह डॉक्टर के परामर्श से पहले निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं:
मेडिकल इतिहास- थैलेसीमिया से संबंधित उनके सभी महत्वपूर्ण परीक्षण और रिकॉर्ड एकत्र करें।
लक्षण- किसी भी नए या ऐसे लक्षण को रिकॉर्ड करें जो डॉक्टर के पास आखिरी बार जाने के बाद से बिगड़ रहे हों।
इस्तेमाल में ली जा रही दवाएं- उन सभी दवाओं के नाम और खुराक की सूची बनाएं जो वे ले रहे हैं।
थैलेसीमिया के रोगी डॉक्टर से निम्न उम्मीद रख सकते हैं:
शारीरिक परीक्षण- सबसे पहले डॉक्टर मरीज़ के लक्षणों के बारे में पूछेंगे और मेडिकल इतिहास का विश्लेषण करेंगे।
जांच के आदेश- इसके बाद कई तरह के जांच के आदेश दे सकते हैं जैसे टोटल ब्लड काउंट, आयरन की जांच और डीएनए परीक्षण।
उपचार- रिपोर्ट के आधार पर उचित दवाइयां, जीवनशैली सुधार और खान पान की सलाह देंगे। इसके अलावा जरुरत के अनुसार सर्जरी कराने की सलाह भी दे सकते हैं।
मरीज़ परामर्श के दौरान डॉक्टर से सभी शंकाओं का समाधान कर सकते हैं। ये कुछ प्रश्न हैं जो वे डॉक्टर से पूछ सकते हैं:
उपचार के दुष्प्रभाव क्या हैं और रोगी को इसका प्रबंधन कैसे करना चाहिए?
क्या कोई विशेष आहार अनुपूरक है जो रोगी की स्थिति में मदद कर सकता है?
रोगी को अनुवर्ती नियुक्तियों और परीक्षणों के लिए कितनी बार आना चाहिए?
क्या डॉक्टर मरीज़ को उनके थैलेसीमिया के दीर्घकालिक दृष्टिकोण के बारे में अधिक जानकारी दे सकते हैं?
आमतौर पर देखें तो कई मामलों में रोगियों को लक्षण नही दिखते हैं। इसलिए इन मामलों में इलाज की बिल्कुल जरूरत नही पड़ती है। लेकिन अगर थैलेसीमिया रोग का स्तर अधिक है तो लक्षण गंभीर होते हैं। ऐसे में इसके इलाज की आवश्यकता पड़ती है। डॉक्टर इस रोग का उपचार दो तरीकों से कर सकते हैं जो निम्न हैं:
सामान्यतः देखा जाए तो थैलेसीमिया के मरीज को हमेशा सर्जरी की जरुरत नही पड़ती है। कुछ घरेलू उपायों और दवाइयों की मदद से लक्षणों पर काबू पाया जा सकता है। इसके अलावा मरीज चाहे तो आयुर्वेदिक और होमियोपैथिक उपचार की भी मदद ले सकता है। बिना ऑपरेशन के थलेसीमिया का इलाज निम्न तरीकों से हो सकता है:
थैलेसीमिया एक आनुवांशिक बीमारी है जो जीवनभर रहती है। ऐसे में डॉक्टर कुछ ऐसे घरेलू उपाय बताते हैं जो मरीज को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं, जैसे-
जीवन शैली में परिवर्तन - चूंकि शराब और स्मोकिंग से लिवर और हड्डियों पर बुरा असर पड़ता है इसलिएथैलेसीमिया से पीड़ित लोगों को शराब और स्मोकिंग से दूर रहना चाहिए।
व्यायाम - दैनिक रूप से व्यायाम करना पूरे शरीर को स्वस्थ रखता है। हालांकि जिन मरीजों को हृदय रोग, ओस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियां हैं, उन्हें हल्की एक्सरसाइज करनी चाहिए।
अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के अनुसार आयुर्वेद के लिए थैलेसीमिया एक नया रोग है जिसे अनुक्ता व्याधि कहते हैं। इसके इलाज में एक आयुर्वेदिक थेरेपी की जाती है जिसे धत्री अवलेह कहा जाता है। ऐसा देखा गया है कि इस प्रक्रिया से रक्त आधान के फलस्वरूप जो संक्रमण होता है; उसकी संभावना कम की जा सकती है। इसमें निम्न औषधियां इस्तेमाल की जाती हैं:
अमालकी (आंवला) - यह औषधि मुख्य रूप से हृदय रोग, लिवर रोग, कैंसर और डायबिटीज में फायदेमंद होता हैं। इसमें एंटीऑक्सीडेंट और एंटीपायरेटिक गुण होते हैं।
यश्तिमंधु (मुलेठी) - अध्ययन से पता चलता है कि इसमें एंटी-अल्सर, एंटी - इम्फ्लेमेटरी जैसे गुण होते हैं।
पिप्पली - इसमें एंटी-इंफ्लेम्टरी और एंटीबैक्टीरियल, एंटीस्पास्मोडिक गुण होते हैं। इसके अलावा यह लिवर को भी सुरक्षित रखता है।
शुंथि (अदरक) - इस औषधि में एंटीबैक्टिरियल और एंटीवायरल गुण होते हैं। इसलिए यह रक्त आधान के बाद संक्रमण से बचाने में मदद करता है।
मधु - इसमें मधुर रस के गुण होते हैं। यह घाव को भरने का काम करता है।
अध्ययनों में पाया गया कि मरीज को जब हाइड्रोक्सीयूरिया थेरेपी दी गई तो कुछ होम्योपैथिक दवाएं भी इस्तेमाल की गईं। इससे रोगियों के भ्रूण हीमोग्लोबिन में इजाफा हुआ। होम्योपैथी की कुछ मुख्य दवाएं इस प्रकार हैं:
पल्सटिल्ला निग्रिकंस - यह दवा दर्द और बार - बार पेशाब लगने की समस्या में मदद करता है।
सीनोथस अमेरिकनस - यह एनीमिया में फायदेमंद होता है। इसके अलावा यह प्लीहा को स्वस्थ रखने में भी मदद करता है।
फेरम मेटालिकम - यह दवा लोहे के पाउडर से बना होता है एनीमिया के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए भी मददगार होता है।
थैलेसीमिया के मरीज में हीमोग्लोबिन की भारी कमी हो जाती है। इसलिए रोगी को जरूरत अनुसार बाहरी खून दिया जाता है। कुछ मरीजों को नियमित रक्त आधान की जरूरत पड़ती है तो कुछ लोगों को अनियमित रूप से खून चढ़ाना पड़ता है। यहां उद्देश्य हीमोग्लोबिन के स्तर को ९ मिलीग्राम/डीएल से १० मिलीग्राम/डीएल तक बनाए रखना है ताकि रोगी मानसिक और शारीरिक रूप से सामान्य महसूस करे।
आमतौर पर जिन मरीजों में गंभीर स्तर का थैलेसीमिया होता है, उन्हें ही सर्जरी कराने की सलाह दी जाती है। लेकिन सर्जरी द्वारा मरीज को मौत से बचाया जा सकता है। गंभीर जोखिम से बचने के लिए मुख्य रूप से २ प्रकार की सर्जरी होती है जो निम्नलिखित है:
अगर थैलेसीमिया का स्तर अधिक नही होता है तो आमतौर पर जटिलताएं देखने को नही मिलती हैं। उदाहरण के लिए यदि मरीज के २ अल्फा जीन या १ बीटा जीन में खराबी है तो मरीज को अधिक परेशानी नही होती है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ अगर थैलेसीमिया का स्तर अधिक हुआ तो जटिलताएं देखने को मिल सकती हैं।
थैलेसीमिया की कुछ मुख्य जटिलताएं निम्न हैं:
आयरन की अधिकता - नियमित रक्त-आधान के कारण आयरन की अधिकता हो सकती है। यह आयरन हृदय, लिवर, मस्तिष्क और अंतःस्रावी ग्रंथियों (ये ग्रंथियां हार्मोन का उत्पादन करती हैं जो शरीर की सभी प्रक्रियाओं में मदद करते हैं) में जमा हो सकता है और उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है। इससे हृदय रोग का खतरा रहता है।
क्रॉनिक लिवर हेपटाइटिस - आमतौर पर रक्त आधान करने से पहले डॉक्टर पूरी तरह जांच करते हैं लेकिन फिर भी संक्रमण का खतरा रहता है। आमतौर पर हेपेटाइटिस का संक्रमण हो सकता है।
डायबिटीज - आयरन की अधिकता होने से अमाशय पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए मरीज को डायबिटीज का जोखिम भी रहता है।
हाइपोथायराइडिज्म - रक्त आधान की वजह से आयरन की मात्रा बढ़ जाती है। इस कारण मरीज की थायराइड ग्रंथि में विकार हो जाता है और पर्याप्त मात्रा में थायरॉयड हार्मोन नही बन पाता है। इसे हाइपोथायराइडिज्म कहते हैं।
हाइपोगोनाडिज्म - थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे के वृषण का विकास नहीं हो पाता है और यह ४ एमएल से कम रहता है। वहीं लड़कियों में स्तनों का विकास नहीं हो पाता है।
हाइपोपैराथायरॉइडिज्म - इस विकार में पैराथाइराइड हार्मोन पर्याप्त मात्रा में नही बन पाता है जिससे शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाती है।
ओस्टियोपोरोसिस - यह एक हड्डी संबंधित रोग है जिसमे हड्डी की गुणवत्ता या ढांचे में बदलाव हो जाता है। इसकी वजह से हड्डी कमजोर पड़ जाती है और यह टूट सकती है।
थ्रोंबोफिलिया - यह एक ऐसी चिकित्सीय स्थिति है जिसमे खून के थक्के आसानी से बनने लगते हैं।
यदि रोगी को थैलेसीमिया के इनमें से किसी भी लक्षण का अनुभव होता है, तो उन्हें तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए:
गंभीर थकान और चक्कर
पीली त्वचा या आंखें
सामान्य से अधिक रक्तस्राव
सांस लेने में परेशानी
थैलेसीमिया से पीड़ित व्यक्ति को विशेष आहार लेने की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन इसमें हृदय, लिवर और अंतः स्त्रावी ग्रंथि से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए स्वस्थ आहार का होना बेहतर स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। ऐसे में रोगी को अपने दैनिक जीवन में निम्न आहार शामिल करना चाहिए:
जिंकयुक्त भोजन - किलेशन की प्रक्रिया के दौरान जिंक की कमी हो सकती है। ऐसे में मरीज को जिंक वाली चीजें खानी चाहिए जैसे- सीप, मछली, सीफूड, इत्यादि।
विटामिन ई वाले पदार्थ - थैलीसीमिया के मरीज को विटामिन ई की कमी रहती है। इसलिए ऐसे आहार जरूर शामिल करें जिनमे विटामिन ई मौजूद हो जैसे बादाम, एवोकाडो, सोयाबीन का तेल, सूरजमुखी के बीज, इत्यादि।
ब्लैक टी पिएं - ऐसा देखा गया है कि थैलीसीमिया इंटरमीडिया में खाने के साथ ब्लैक टी पीने से आयरन का पाचन कम होता है। इस तरह ब्लैक टी इस समस्या (आयरन की अधिकता) में मदद करता है।
फोलेटयुक्त आहार - ऐसे मरीज जिन्हें रक्त आधान नियमित नही होता है, उनमें फोलेट की कमी हो सकती है। इसलिए उनको फोलेटयुक्त आहार लेना चाहिए जैसे मांस, मछली, इत्यादि।
कैल्शियम और विटामिन डी - रोगी को कैल्शियम और विटामिन डी की समस्या रहती है जिस वजह से उसकी हड्डियां कमजोर हो जाती है। इसलिए कैल्शियम और विटामिन डी वाले भोजन लेना चाहिए जैसे खट्टे फल, अंडे, दूध, सालमन मछली, इत्यादि।
सीमित आयरन - थैलेसीमिया के मरीज़ आयरन की अधिकता से पीड़ित होते हैं। इसीलिए उन्हें पालक, संतरे का रस, अनाज, मछली, मांस आदि जैसे उच्च आयरन वाले खाद्य पदार्थों को सीमित करना चाहिए।
सीमित विटामिन सी - विटामिन सी के कारण आंतों में आयरन का अधिक अवशोषण हो सकता है जिससे आयरन विषाक्तता की दिक्कत रहती है। इसलिए थैलेसीमिया में आयरन और विटामिन सी से भरपूर भोजन नहीं लेना चाहिए।
हालाँकि थैलेसीमिया के रोगियों को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, इसके बारे में अपने वे अपने डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें।
अंत में, थैलेसीमिया एक वंशानुगत रक्त रोग है जिसकी वंशानुक्रम की संभावना को रोका जा सकता है, लेकिन यह हमारे नियंत्रण से बाहर है। थैलेसीमिया से पीड़ित रोगियों को अपने स्वास्थ्य का सख्ती से ध्यान रखना चाहिए ताकि उन्हें किसी भी जटिलता का सामना न करना पड़े और वे स्वास्थ्य और खुशी से भरा जीवन जी सकें।
लेकिन मरीजों को इसे नकारात्मक रूप से नहीं देखना चाहिए और हमेशा जीवन को सकारात्मक रूप से देखना चाहिए। विज्ञान और स्वास्थ्य देखभाल उपचारों की प्रगति के कारण, थैलेसीमिया रोगियों के लिए सामान्य रूप से जीने और अपने जीवन में सफल होने की बहुत आशा है।
HexaHealth स्वास्थ्य सेवा टीम इसमें आपकी सहायता करती है। हम आपको सर्वोत्तम व्यक्तिगत उपचार प्रदान करने में हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करते हैं। आप हमारी टीम की मदद से अपने सभी सवालों के जवाब पा सकते हैं। थैलेसीमिया पर अधिक जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाइट पर भी जा सकते हैं।
थैलेसीमिया एक रक्त रोग है जो परिवार से विरासत में मिलता है। यहां मरीजों के शरीर में हीमोग्लोबिन सामान्य स्तर से कम बनता है और इस वजह से उनका शरीर ऑक्सीजन का परिवहन नहीं कर पाता है। इसीलिए वे एनीमिया, थकान, चक्कर आना आदि से पीड़ित हैं।
मध्यम से गंभीर थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों में बचपन में ही इसके लक्षण दिखने लगते हैं जैसेकि:
एनीमिया के लक्षण जैसे थकान और सुस्ती महसूस होना।
हर समय चक्कर आना।
सिरदर्द
त्वचा और आंखें पीली होना।
भूख में कमी।
पेशाब का रंग गहरा हो जाना।
मध्यम से गंभीर थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों में उनके जीवन के बाद के चरणों में कई लक्षण दिखाई देते हैं जैसे:
यौन अंगों के विकास में देरी।
ऑस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डियों की असामान्यताएं होने लगती हैं।
तिल्ली बढ़ जाना।
वयस्कों में थैलेसीमिया के यह लक्षण दिखाई देते हैं:
एनीमिया के लक्षण जैसे थकान और सुस्ती महसूस होना।
हर समय चक्कर आना।
सिरदर्द
त्वचा और आंखें पीली होना।
भूख में कमी।
पेशाब का रंग गहरा हो जाना।
ऑस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डियों की असामान्यताएं होने लगती हैं।
तिल्ली बढ़ जाना।
थैलेसीमिया रोग रोगी में अल्फा ग्लोब्युलिन जीन और बीटा ग्लोब्युलिन जीन के खराब हो जाने या उनके गायब हो जाने के कारण होता है। ये जीन हीमोग्लोबिन और स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए जिम्मेदार हैं। थैलेसीमिया में हीमोग्लोबिन बहुत कम बनता है।
बीटा थैलेसीमिया एक प्रकार का थैलेसीमिया है जो तब होता है जब रोगी में १ या २ बीटा ग्लोब्युलिन जीन खराब हो जाते हैं या जब वे गायब होते हैं। कितने बीटा ग्लोबिन जीन प्रभावित हैं, इसके आधार पर, इस प्रकार के थैलेसीमिया के विभिन्न प्रकार के लक्षण होते हैं।
थैलेसीमिया रोग तब होता है जब हीमोग्लोबिन बनाने के लिए जिम्मेदार जीन यानी अल्फा ग्लोब्युलिन जीन और बीटा ग्लोब्युलिन जीन गायब होते हैं। जीन की कमी के आधार पर थैलेसीमिया के विभिन्न प्रकार होते हैं।
थैलेसीमिया का इलाज विभिन्न तरीकों से किया जाता है। डॉक्टर रोगी को थैलेसीमिया के प्रकार और लक्षणों के आधार पर निम्नलिखित उपचार की सलाह देंगे:
रक्त आधान- हीमोग्लोबिन को सामान्य स्तर तक लाने के लिए स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं को नसों में इंजेक्ट किया जाता है।
केलेशन थेरेपी- रोगियों को आयरन केलेशन दवाएं दी जाती हैं क्योंकि रक्त आधान के कारण शरीर में अतिरिक्त आयरन मौजूद होता है।
अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण- यहां स्वस्थ स्टेम कोशिकाओं को एक दाता से लिया जाता है और स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने के लिए रोगी के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है।
थैलेसीमिया से पीड़ित रोगियों को रक्त आधान के दौरान बनने वाले अतिरिक्त आयरन को शरीर से निकालने के लिए आयरन केलेशन दवाएं दी जाती हैं। इसके साथ ही उन्हें फोलिक एसिड की खुराक भी दी जाती है जो लाल रक्त कोशिकाओं को बनाने में मदद करती है।
रोगी को होने वाली जटिलताओं के आधार पर, डॉक्टर अधिक दवाएं लिख सकते हैं और इसके लिए डॉक्टर से परामर्श करना सबसे अच्छा है।
ऐसी कई चिकित्सा सुविधाएं हैं जो थैलेसीमिया रोगियों की मदद के लिए स्थापित की गई हैं। वे रोगियों को उनके लक्षणों को प्रबंधित करने और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करते हैं।
रक्त आधान केंद्र- ये केंद्र रोगियों को उनके एनीमिया के लक्षणों में मदद करने के लिए नियमित रक्त आधान प्रदान करते हैं।
आयरन केलेशन थेरेपी केंद्र- ये केंद्र मरीजों के शरीर से रक्त आधान के कारण बनने वाले अतिरिक्त आयरन को हटाने में मदद करते हैं।
आनुवंशिक परामर्श केंद्र- यहां, वे पतियों और पत्नियों को उनके परिवार नियोजन में मदद करते हैं और उन्हें थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे के जन्म के जोखिमों के बारे में समझाते हैं। वे उन्हें सही जानकारी और समर्थन देते हैं और उपचार के विकल्प देते हैं।
प्रयोगशालाएँ- वे थैलेसीमिया का निदान करने के लिए नियमित रक्त परीक्षण और अन्य परीक्षण करते हैं।
देखभाल क्लीनिक- ये क्लीनिक व्यापक देखभाल देते हैं, नियमित जांच करते हैं और रोगियों को थैलेसीमिया का प्रबंधन करने में मदद करते हैं।
निम्नलिखित प्रक्रियाओं से थैलेसीमिया से पीड़ित रोगियों को काफी मदद मिल सकती है:
अपने लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए नियमित रूप से रक्त आधान करते रहें।
शरीर में अतिरिक्त आयरन को बनने से रोकने के लिए आयरन केलेशन दवाएं लेना।
स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ाने के लिए दवाएं लेना।
पतियों और पत्नियों को थैलेसीमिया के संबंध में सहायता और जानकारी देने के लिए आनुवंशिक परामर्श प्रदान करना।
थैलेसीमिया रोग का निदान निम्नलिखित प्रक्रियाओं का उपयोग करके किया जा सकता है:
पूर्ण रक्त गणना (सीबीसी) परीक्षण- यह हीमोग्लोबिन के स्तर, लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या और आकार का परीक्षण करता है।
रेटिकुलोसाइट्स गिनती- यह परीक्षण मापता है कि अस्थि मज्जा सही मात्रा में लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण कर रहा है या नहीं।
हीमोग्लोबिन वैद्युतकणसंचलन- इससे यह पता लगाने में मदद मिलती है कि रोगी किस प्रकार के थैलेसीमिया से पीड़ित है।
डीएनए परीक्षण- यह परीक्षण यह पुष्टि करने के लिए किया जाता है कि अल्फा ग्लोब्युलिन और बीटा ग्लोब्युलिन जीन खराब हो गए हैं या गायब हैं।
जिन लोगों के पारिवारिक इतिहासमें थैलेसीमिया है, वे खतरे में होंगे:
यदि माता-पिता में से किसी एक के पास 1 या 2 खराब अल्फा ग्लोबिन या बीटा ग्लोब्युलिन जीन हैं या यदि उनमें ये जीन गायब हैं, तो बच्चे को थैलेसीमिया होने का खतरा होता है।
दक्षिण एशिया, ग्रीस, मध्य पूर्व और अफ्रीका के लोगों में थैलेसीमिया होने का खतरा अधिक होता है।
थैलेसीमिया मेजर को कूली एनीमिया भी कहा जाता है और यह थैलेसीमिया का सबसे गंभीर रूप है। यहां, २ बीटा ग्लोबिन जीन खराब हो जाते हैं या पूरी तरह से गायब हो जाते हैं और यह गंभीर एनीमिया का कारण बनता है।
रोगी को अपने लक्षणों के प्रबंधन के लिए आजीवन रक्त आधान कराना चाहिए।
थैलेसीमिया के विभिन्न प्रकार हैं:
अल्फा थैलेसीमिया मिनिमा- यहां, रोगी में १ अल्फा जीन खराब हो गया है या वह गायब है और यह कोई लक्षण पैदा नहीं करता है।
अल्फा थैलेसीमिया माइनर- यहां, २ अल्फा जीन खराब हो गए हैं या वे गायब हैं और इससे थकान जैसे हल्के लक्षण होते हैं।
हीमोग्लोबिन एच रोग- इसमें ३ अल्फा जीन खराब हो जाते हैं या गायब हो जाते हैं और इससे मध्यम से गंभीर लक्षण होते हैं।
अल्फा थैलेसीमिया मेजर- यह एक दुर्लभ स्थिति है जिसमें सभी ४ अल्फा ग्लोबिन जीन खराब हो जाते हैं या गायब हो जाते हैं और इससे जन्म के दौरान ही मृत्यु हो जाती है।
बीटा थैलेसीमिया माइनर- यहां १ बीटा ग्लोब्युलिन जीन खराब हो गया है या गायब है और इससे थकान जैसे हल्के लक्षण होते हैं।
बीटा थैलेसीमिया इंटरमीडिया- यहां, २ बीटा ग्लोब्युलिन जीन खराब हो गए हैं या वे गायब हैं और इससे मध्यम से गंभीर लक्षण होते हैं।
बीटा थैलेसीमिया मेजर- यह तब होता है जब २ बीटा ग्लोब्युलिन जीन खराब हो जाते हैं या वे गायब हो जाते हैं और यह गंभीर एनीमिया का कारण बनता है।
अल्फा थैलेसीमिया एक प्रकार का थैलेसीमिया है जो तब होता है जब अल्फा ग्लोब्युलिन जीन खराब हो जाते हैं या गायब हो जाते हैं। खराब या गायब अल्फा जीन की संख्या के आधार पर, विभिन्न प्रकार के लक्षणों का अनुभव होता है।
बीटा थैलेसीमिया के प्रकार के आधार पर, रोगी में हल्के, मध्यम और गंभीर लक्षण हो सकते हैं जैसे:
थकान और सुस्ती
चक्कर
त्वचा और आंखें पीली होना
खाने का मन नहीं करता।
तिल्ली बड़ी होना
हड्डियों की असामान्यताएं
यौन अंग देर से विकसित होना
थैलेसीमिया एक वंशानुगत रक्त विकार है जो हीमोग्लोबिन का कम उत्पादन होने पर होता है। ऐसा तब होता है जब अल्फा ग्लोबिन या बीटा ग्लोबिन जीन उत्परिवर्तित हो जाते हैं जिससे अल्फा ग्लोबिन या बीटा ग्लोबिन श्रृंखला का उत्पादन कम हो जाता है।
इसके बाद लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, जिससे एनीमिया होता है और प्लीहा और यकृत को नुकसान होता है।
यदि थैलेसीमिया का इलाज नहीं किया जाता है, तो यह कई जटिलताएँ पैदा कर सकता है:
गंभीर रक्ताल्पता के कारण थकान, सुस्ती और अंग क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
हृदय संबंधी असामान्यताओं का अनुभव करना।
संक्रमण का खतरा अधिक हो जाता है।
बच्चों का विकास देर से होता है।
चूंकि थैलेसीमिया एक वंशानुगत बीमारी है, इसलिए इसे रोका नहीं जा सकता। हालाँकि, गर्भावस्था से पहले आनुवंशिक परामर्श और प्रसवपूर्व परीक्षण करने से पतियों और पत्नियों को थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे के जोखिम और उपचार के विकल्पों को समझने में मदद मिल सकती है।
थैलेसीमिया का एकमात्र पूर्ण इलाज अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण है। लेकिन इसके अपने जोखिम भी हैं। अन्य उपचार जहां थैलेसीमिया को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है, वे हैं नियमित रक्त आधान, आयरन केलेशन आदि।
थैलेसीमिया से पीड़ित रोगियों की जीवन प्रत्याशा उनकी स्थिति के प्रकार और लक्षणों पर निर्भर करती है। यदि रोगी ठीक से अपने स्वास्थ्य की देखभाल करता है, नियमित रक्त-आधान और आयरन केलेशन लेता है, तो वे लंबा और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
लेकिन अधिक गंभीर प्रकार के थैलेसीमिया वाले रोगियों को आजीवन उपचार की आवश्यकता होती है और इससे उनकी जीवन प्रत्याशा प्रभावित होती है।
थैलेसीमिया गर्भवती महिलाओं को कई तरह से प्रभावित कर सकता है। यह गर्भावस्था के दौरान जोखिम भी पैदा कर सकता है।
थैलेसीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाओं में गंभीर एनीमिया और थकान हो सकती है।
यह गर्भावस्था में जटिलताओं का कारण बनता है जैसे समय से पहले जन्म, विकास संबंधी असामान्यताएं आदि।
थैलेसीमिया बच्चे को हो सकता है और नवजात शिशु को किसी भी प्रकार का थैलेसीमिया हो सकता है।
सुरक्षित और स्वस्थ गर्भावस्था सुनिश्चित करने के लिए गर्भवती महिला को नियमित रूप से डॉक्टर से जांच करानी चाहिए।
थैलेसीमिया रोगियों को अपने लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए स्वस्थ और संतुलित आहार लेना चाहिए। उन्हें अपने आहार में निम्नलिखित को अवश्य शामिल करना चाहिए:
उन्हें ढेर सारे फल और सब्जियाँ खानी चाहिए।
उन्हें वसायुक्त खाद्य पदार्थों और ऐसे खाद्य पदार्थों को सीमित करना चाहिए जो आयरन से भरपूर हों जैसे कि पालक, मछली, आदि।
उनके आहार में विटामिन सी सीमित मात्रा में होना चाहिए। यह शरीर से अतिरिक्त आयरन को निकालने में मदद करता है।
मिथक: थैलेसीमिया रोग का कोई इलाज नहीं है।
तथ्य: थैलेसीमिया का एकमात्र इलाज अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण है। लेकिन इस प्रक्रिया के अपने जोखिम, जटिलताएं हैं और यह महंगी भी है। इसलिए मरीज को इन सभी कारकों के बारे में सोचना चाहिए और अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण का निर्णय लेने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
मिथक: थैलेसीमिया एक वंशानुगत रक्त रोग है जिसे रोका नहीं जा सकता।
तथ्य: यह गलत है क्योंकि थैलेसीमिया को १००% रोका जा सकता है। परिवार नियोजन के दौरान पति-पत्नी आनुवंशिक परीक्षण करा सकते हैं। वे पता लगा सकते हैं कि क्या उनमें अल्फा ग्लोबिन या बीटा ग्लोबिन जीन खराब हो गया है या गायब है। फिर वे अपने परिणामों और उपचार विकल्पों को समझने के लिए आनुवंशिक परामर्शदाता से परामर्श ले सकते हैं।
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Last Updated on: 11 September 2023
MBBS, DNB General Surgery, Fellowship in Minimal Access Surgery, FIAGES
12 Years Experience
Dr Aman Priya Khanna is a well-known General Surgeon, Proctologist and Bariatric Surgeon currently associated with HealthFort Clinic, Health First Multispecialty Clinic in Delhi. He has 12 years of experience in General Surgery and worke...View More
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