पीसीओडी (PCOD) क्या है - फुल फॉर्म, लक्षण, कारण और उपचार

अगर आप एक महिला हैं और आपके पीरियड्स नियमित रूप से नही आते हैं तो यह पीसीओडी का संकेत हो सकता है। महिला के शरीर में हुए प्रजनन हार्मोन के असंतुलन को पीसीओडी कहते हैं। यह लगभग १५% महिलाओं में सामान्य रूप से देखा जाता है। 

इसके कारण महिला को गर्भधारण करने में भी समस्या आ सकती है। पीसीओडी के लक्षण और उपचार के बारे में सही जानकारी चाहते हैं तो लेख को पूरा जरूर पढ़ें।

रोग का नाम

पीसीओडी 

वैकल्पिक नाम

पॉलिसिस्टिस्क ओवेरियन डिजीज

लक्षण

पीरियड्स अनियमित होना, शरीर पर अधिक बाल आना, बाल झड़ना, श्रोणि में दर्द होना, वजन बढ़ना, मुहांसे आना, बांझपन 

कारण

एंड्रोजन हार्मोन का स्तर अधिक होना, इंसुलिन रेजिस्टेंस

निदान

ल्यूटनाइजिंग हार्मोन और फॉलिकल उत्तेजक हार्मोन का अनुपात, कुल टेस्टोस्टेरॉन जांच, प्रोलेक्टिन हार्मोन जांच

इलाज कौन करता है

गयनेकोलॉजिस्ट, एंडोक्रिनोलोजिस्ट

उपचार के विकल्प

इंसुलिन सेंसटाइजिंग मेडिसिन,  ओवरियन सिस्टेक्टाॅमी

पीसीओडी का अर्थ

पीसीओडी का फुल फॉर्म पॉलिसिस्टिस्क ओवेरियन डिजीज होता है। आमतौर पर महिलाओं में एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोन और ल्यूटनाइजिंग हार्मोन की मात्रा अधिक होती है। लेकिन इस रोग में पुरुष हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है। इस स्थिति में महिला का अंडाशय ऐसे अंडाणुओं को बाहर निकालता है जो परिपक्व नहीं होते हैं। 

इस वजह से हार्मोन का संतुलन बिगड़ जाता हैं और अंडाशय में पुरुष हार्मोन (टेस्टोस्टेरोन) अधिक बनता है। यह १५% महिलाओं में देखा जाता है लेकिन इसमें से लगभग ७०% मामलों का निदान नहीं हो पाता है। कुछ महिलाओं को पीसीओडी की समस्या होती है लेकिन उन्हें इसका पता तब लगता है जब उनके पीरियड्स आने बंद हो जाते हैं। 

वैसे देखा जाए तो पीसीओडी, पीसीओएस के अंतर्गत आता है। सुनने में पीसीओडी और पीसीओएस एक जैसे भी लग सकते हैं लेकिन इनमें थोड़ा सा अंतर होता है। पीसीओएस और पीसीओडी में निम्न अंतर है:

क्रमांक

पीसीओएस 

पीसीओडी 

१.

यह एक इंडोक्राइन समस्या होती है जिसकी वजह से अंडाशय में अधिक मात्रा में पुरुष हार्मोन बनते हैं। पुरुष हार्मोन बनने से अंडाणु, सिस्ट में बदलने लगते हैं।


पीसीओडी में अंडाशय से ऐसे अंडाणु बाहर निकालते हैं जो परिपक्व नहीं होते हैं। इसकी वजह से हार्मोन का संतुलन बिगड़ जाता है। इसके साथ ही अंडाशय में सूजन आ जाता है।

२.

पीसीओएस में अंडाणु बाहर नहीं निकल पाता है।

इस स्थिति में अंडाशय द्वारा अपरिपक्व अंडाणु छोड़ा जाता है।

३.

इसके प्रभाव गंभीर होते हैं। यह बहुत सामान्य भी नही होता है।

पीसीओडी बहुत सामान्य समस्या है। यह लगभग हर ३ में से १ महिला को होता है। 

४.

यह एक गंभीर स्थिति होती है जिसमे हार्मोन की गोलियां लेनी पड़ सकती हैं।

यह पीसीओएस की तुलना में सामान्य होता है। इसमें प्रायः दवा लेने की जरूरत नही पड़ती है।

५.

इसमें गर्भधारण करना थोड़ा ज्यादा मुश्किल होता है।

इससे पीड़ित महिलाएं कुछ सावधानियां रखते हुए आसानी से गर्भधारण कर सकती हैं।[२०]



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पीसीओडी के प्रकार

पीसीओएस के अंतर्गत कई बीमारियां आती है। इसमें से एक बीमारी पीसीओडी भी है। इसलिए पीसीओएस के प्रकार के बारे में भी जान लेना आवश्यक है। पीसीओएस को फीनोटाइप के आधार पर बांटा गया है।

फीनोटाइप का मतलब होता है कि यदि मरीज को पीसीओएस हुआ है तो इसमें आनुवांशिक और वातावरण दोनों वजहें हो सकती हैं। लेकिन आमतौर पर फीनोटाइप वातावरण से अधिक प्रभावित होता है।[३] 

पीसीओएस को ४ फीनोटाइप (आनुवांशिक और वातावरण के गुण) में बांटा गया है जो निम्न हैं:

  1. फ्क्लासिक पॉलीसिस्टिक ओवरी पीसीओएस - इस प्रकार में हाइपरएंड्रोजेनिज्म यानी पुरुष हार्मोन का अधिक बनना, लंबे समय तक पीरियड्स न आना और पॉलीसिस्टिक ओवरीज यानी अंडाशय में सिस्ट का बनना शामिल होता है। 

  2. क्लासिक नॉन पॉलीसिस्टिक ओवरी पीसीओएस - यह ऐसा प्रकार है जिसमें पुरुष हार्मोन का अधिक बनना और लंबे समय तक पीरियड्स न आना शामिल होता है।

  3. नॉन क्लासिक ओव्युलेटरी पीसीओएस - इस प्रकार में पीसीओडी के मरीज को नियमित रूप से माहवारी होती है लेकिन पुरुष हार्मोन का अधिक बनना और अंडाशय में सिस्ट बनने की समस्या होती है। 

  4. नॉन क्लासिक माइल्ड पीसीओएस- इसमें महिला के शरीर में पुरुष हार्मोन (टेस्टोस्टेरोन) सामान्य होते हैं। लेकिन लंबे समय से पीरियड न आना और अंडाशय में सिस्ट की समस्या होती है।

पीसीओडी के लक्षण

लक्षणों की मदद से पीसीओडी की पहचान हो सकती है। इससे उचित समय पर डॉक्टर से संपर्क किया जा सकता है और रोगी को उपयुक्त इलाज मिल जाता है।

पीसीओडी के मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:

  1. अनियमित रूप से पीरियड आना - पीसीओडी के कारण पीरियड्स नियमित रूप से नही आते हैं या फिर आते ही नही हैं। इसके अलावा पीरियड्स के दौरान अधिक रक्तस्राव हो सकता है।

  2. हर्सुटिज्म (अतिरोमता) - लगभग ७०% मामलों में ऐसा देखा गया है कि पीसीओडीके कारण महिलाओं में पुरुषों की तरह दाढ़ी, मूंछ और बगल में बाल उग जाते हैं।

  3. मुंहासे होना - शरीर के कई जगहों जैसे चेहरे, छाती और पीठ पर मुंहासे हो सकते हैं।

  4. मोटापा - पीसीओडी से पीड़ित ४० से ८०% मरीजों में मोटापे की समस्या रहती है। 

  5. त्वचा का काला होना - गर्दन, जांघों और काँख की त्वचा मोटी और काली पड़  सकती है। इसके अलावा स्तनों के नीचे की त्वचा भी काली पड़ सकती है।। 

  6. सिस्ट - आमतौर पर अंडाशय में एक फॉलिकल परिपक्व होता है और अंडाणु के रूप में बाहर निकलता है। लेकिन पीसीओडी में महिला के अंडाशय में  कई फॉलिकल  विकसित होते रहते हैं। ये फॉलिकल बड़े हो जाते हैं लेकिन अंडाणु के रूप में बाहर नहीं निकलते हैं। 

  7. स्किन टैग - गर्दन और काँखों की त्वचा पर फ्लैप्स पड़ जाते हैं जो देखने में दाने की तरह लग सकते हैं। 

  8. बालों का पतलापन- पीसीओडी में महिलाओं के सिर के बाल पतले पड़ जाते हैं और झड़ने लगते हैं। 

  9. बाँझपन- ओवुलेशन (अंडाशय से अंडे का निकलना) नियमित रूप से नही होता है इसलिए गर्भधारण करना मुश्किल हो जाता है। बाँझपन के मुख्य कारणों में से एक कारण पीसीओडी भी है।

पीसीओडी के कारण

पीसीओडी का कोई सटीक कारण अभी तक जानकारी में नहीं है। कुछ चिकित्सीय स्थितियां जैसे डायबिटीज, मोटापा, इत्यादि के कारण पीसीओडी हो सकता है। लेकिन ये स्थितियां सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं होती हैं। कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं:

  1. एंड्रोजन हार्मोन का स्तर अधिक होना - शरीर में जब एंड्रोजन हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है तो ओवुलेशन नियमित रूप से नही होता है। इसलिए पीरियड भी समय से नही आते हैं। 

  2. इंसुलिन रेजिस्टेंस - इंसुलिन एक हार्मोन होता है जो भोजन को ऊर्जा में बदलने का काम करता है। लेकिन यदि मोटापे या किसी अन्य कारण से शरीर इंसुलिन को रेगुलेट नही कर पाता है और इसका स्तर बढ़ जाता है तो पीसीओडी की समस्या होती है।

पीसीओडी के जोखिम कारक

कुछ निश्चित बीमारियां से भी पीसीओडी का जोखिम बना रहता है। इसके मुख्य जोखिम कारक निम्न हैं:

  1. मोटापा - जो महिलाएं मोटापे से ग्रस्त होती हैं उन्हें भी पीसीओडी होने की संभावना रहती है।

  2. डायबिटीज - टाइप १, टाइप २ और गर्भावस्था के दौरान होने वाली डायबिटीज से ग्रसित महिलाएं भी पीसीओडी का शिकार हो सकती हैं।

  3. क्रॉनिक सूजन - शरीर में पहले से ही हल्का सूजन रहता है जो पीसीओडी का कारण बन सकता है।

  4. मिर्गी - अध्ययन से पता चलता है कि ऐसी महिलाएं जिन्हें मिर्गी की बीमारी है उनमें भी पीसीओडी की समस्या देखी जाती है। मिर्गी के उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली दवा (वालप्रोइक एसिड) के कारण भी पीसीओडी के मामले देखे जाते हैं।

  5. आनुवांशिक - यदि पीसीओडी का पारिवारिक इतिहास रहा है। उदाहरण के लिए, यदि मां और बहनों में पीसीओडी की समस्या रही है तो अगली पीढ़ी में भी इसे देखा जा सकता है।

पीसीओडी की रोकथाम

पीसीओडी एक ऐसा रोग है जिसका सटीक इलाज उपलब्ध नही है। इसलिए इसका रोकथाम करना काफी आवश्यक होता है। लेकिन इसको रोकने का कोई सटीक तरीका उपलब्ध नही है। फिर भी निम्न उपायों से पीसीओडी की रोकथाम की जा सकती है:

  1. खान पान - आमतौर पर अपने दैनिक भोजन में ताजे फलों और सब्जियों को शामिल करना चाहिए। पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक आहार लेने से पीसीओडी को होने से रोका जा सकता है। खान - पान में निम्न सुधार लाया जा सकता है:

    1. तेल और चीनी से बनी चीजें न खाएं - पीसीओडी के मरीजों में मोटापा अक्सर देखा जाता है। इसलिए ऐसी चीजें खाने से बचें जिनमे चीनी या तेल का अधिक इस्तेमाल किया गया हो।

    2. कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वालेफलऔर सब्जियां - अक्सर ऐसे फलों और सब्जियों का सेवन करना चाहिए जिनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम हो और उनमें स्टार्च न मौजूद हो। 

    3. कम वसा वाले डेयरी उत्पाद - थोड़ी मात्रा में कम वसा वाले डेयरी उत्पाद का सेवन कर सकते हैं। 

    4. मांस और मछली - प्रोटीन के लिए हल्की मात्रा में चिकन और लीन रेड मीट का सेवन किया जा सकता है। इसके अलावा ओमेगा ३ फैटी एसिड के लिए मछली का सेवन कर सकते हैं।

    5. पर्याप्त मात्रा में पानी पीना - खाने के साथ - साथ पानी भी पर्याप्त मात्रा में पीएं।  

  2. जीवनशैली में सुधार - दैनिक रूप से एक्सरसाइज करना पूरे शरीर को स्वस्थ तो रखता ही है लेकिन इससे पीसीओडी के लक्षणों में भी कमी देखी जा सकती है। जीवनशैली में निम्न सुधार लाने से इसे रोका जा सकता है:

    1. हल्की एक्सरसाइज - अच्छी डाइट के साथ एक्सरसाइज करना भी जरूरी होता है। इससे पीसीओडी मरीजों का वजन घटता है।

    2. नशीले पदार्थों से बचें - शराब, तंबाकू और सिगरेट को छोड़ने का प्रयास करें।

पीसीओडी का निदान

पीसीओडी के निदान में सबसे पहले डॉक्टर मरीज के मेडिकल इतिहास के बारे में पूछते हैं। मरीज के साथ ही उसके परिवार के मेडिकल इतिहास के बारे में भी जानते हैं। इसके बाद निम्न जांच कर सकते हैं:

  1. शारीरिक परीक्षण- वजन और ब्लड प्रेशर को मापा जाता है। इसके साथ ही डॉक्टर कुछ लक्षणों को भी देखते हैं जैसे बालों का झड़ना, स्किन टैग इत्यादि। 

  2. खून की जांच - इससे यह पता लग जाता है कि महिला को पीसीओडी की समस्या है या नही। कई तरह के हार्मोन की जांच की जाती है और उनके स्तर का पता लगाया है। हार्मोन के स्तर में हुए बदलाव पीसीओडी की पुष्टि करते हैं। खून की जांच में शामिल कुछ मुख्य हार्मोन इस प्रकार हैं:

    1. प्रोलेक्टिन हार्मोन - पीसीओडी में इस हार्मोन का स्तर ५०% बढ़ जाता है। आमतौर पर ५% से ३०%मरीजों में इस हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। 

    2. ल्यूटनाइजिंग हार्मोन और फॉलिकल उत्तेजक हार्मोन का अनुपात - इन दोनों हार्मोन का अनुपात यदि २.० से अधिक या बराबर है तो यह पीसीओडी का संकेत हो सकता है। 

    3. कुल टेस्टोस्टेरॉन - आमतौर पर पीसीओडी के मरीज में कुल टेस्टोस्टेरॉन का स्तर बढ़ जाता है। हालांकि अगर महिला ने मौखिक गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन किया है तो इसका स्तर सामान्य हो सकता है।

    4. डिहाइड्रोएपियनड्रोस्टेरोन - सल्फेट (डीएचइए - एस)- इस हार्मोन का स्तर लगभग सामान्य होता है। कुछ मामलों में डीएचइए - एस का स्तर थोड़ा बढ़ सकता है।

  3. इमेजिंग टेस्ट- पेल्विक अल्ट्रासाउंड किया जाता है जिससे अंडाशय और प्रजनन तंत्र से संबंधित अंगों की स्थिति पता चल सके। अगर अंडाशय में सिस्ट होते हैं तो यह इमेजिंग टेस्ट से पता लग जाता है।

डॉक्टर के परामर्श की तैयारी कैसे करें

डॉक्टर से परामर्श लेना मरीज के संशय और उलझन को कम कर सकता है। इसलिए अपॉइंटमेंट लेकर डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए। डॉक्टर के पास जाने और सलाह लेने की तैयारी निम्न प्रकार से की जा सकती है: 

  1. शरीर में जितने भी लक्षण दिख रहे हों, उनकी लिस्ट बनाएं। 

  2. डॉक्टर को अपने स्वास्थ्य से जुड़ी सभी बातें खुलकर बताएं।

  3. अपने साथ परिवार के किसी सदस्य को साथ ले जाएं।

पीसीओडी का निदान

पीसीओडी के निदान में सबसे पहले डॉक्टर मरीज के मेडिकल इतिहास के बारे में पूछते हैं। मरीज के साथ ही उसके परिवार के मेडिकल इतिहास के बारे में भी जानते हैं। इसके बाद निम्न जांच कर सकते हैं:

  1. शारीरिक परीक्षण- वजन और ब्लड प्रेशर को मापा जाता है। इसके साथ ही डॉक्टर कुछ लक्षणों को भी देखते हैं जैसे बालों का झड़ना, स्किन टैग इत्यादि। 

  2. खून की जांच - इससे यह पता लग जाता है कि महिला को पीसीओडी की समस्या है या नही। कई तरह के हार्मोन की जांच की जाती है और उनके स्तर का पता लगाया है। हार्मोन के स्तर में हुए बदलाव पीसीओडी की पुष्टि करते हैं। खून की जांच में शामिल कुछ मुख्य हार्मोन इस प्रकार हैं:

    1. प्रोलेक्टिन हार्मोन - पीसीओडी में इस हार्मोन का स्तर ५०% बढ़ जाता है। आमतौर पर ५% से ३०%मरीजों में इस हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है। 

    2. ल्यूटनाइजिंग हार्मोन और फॉलिकल उत्तेजक हार्मोन का अनुपात - इन दोनों हार्मोन का अनुपात यदि २.० से अधिक या बराबर है तो यह पीसीओडी का संकेत हो सकता है। 

    3. कुल टेस्टोस्टेरॉन - आमतौर पर पीसीओडी के मरीज में कुल टेस्टोस्टेरॉन का स्तर बढ़ जाता है। हालांकि अगर महिला ने मौखिक गर्भ निरोधक गोलियों का सेवन किया है तो इसका स्तर सामान्य हो सकता है।

    4. डिहाइड्रोएपियनड्रोस्टेरोन - सल्फेट (डीएचइए - एस)- इस हार्मोन का स्तर लगभग सामान्य होता है। कुछ मामलों में डीएचइए - एस का स्तर थोड़ा बढ़ सकता है।

  3. इमेजिंग टेस्ट- पेल्विक अल्ट्रासाउंड किया जाता है जिससे अंडाशय और प्रजनन तंत्र से संबंधित अंगों की स्थिति पता चल सके। अगर अंडाशय में सिस्ट होते हैं तो यह इमेजिंग टेस्ट से पता लग जाता है।

डॉक्टर के परामर्श की तैयारी कैसे करें

डॉक्टर से परामर्श लेना मरीज के संशय और उलझन को कम कर सकता है। इसलिए अपॉइंटमेंट लेकर डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए। डॉक्टर के पास जाने और सलाह लेने की तैयारी निम्न प्रकार से की जा सकती है: 

  1. शरीर में जितने भी लक्षण दिख रहे हों, उनकी लिस्ट बनाएं। 

  2. डॉक्टर को अपने स्वास्थ्य से जुड़ी सभी बातें खुलकर बताएं।

  3. अपने साथ परिवार के किसी सदस्य को साथ ले जाएं।

डॉक्टर से क्या उम्मीद रखें

रोगी की स्थिति को ठीक से समझने के लिए डॉक्टर निम्नलिखित चीजें कर सकते हैं:

  1. डॉक्टर आपके लक्षणों और मेडिकल इतिहास के बारे में पूछेंगे।

  2. इसके बाद मरीज का वजन और ब्लड प्रेशर माप सकते हैं।

  3. खून की जांच और अल्ट्रासाउंड करवाने की सलाह देंगे।

  4. निदान के अनुसार उचित इलाज करेंगे।

डॉक्टर से क्या सवाल पूछना चाहिए

वैसे तो मरीज के पास कई सवाल होते हैं जो उसे चिंतित कर सकते हैं। लेकिन मुख्य रूप से कुछ जरूरी प्रश्न इस प्रकार हैं:

  1. पीसीओडी का अर्थ क्या है?
  2. क्या मुझे पीसीओडी है?
  3. पीसीओडी कैसे होता है?
  4. पीसीओडी का इलाज क्या है?
  5. मैं पीसीओडी के लक्षणों को कैसे कम कर सकती हूं?
  6. पीसीओडी से बांझपन होता है क्या?
  7. क्या मैं गर्भधारण नहीं कर पाऊंगी?
  8. पीसीओडी को हमेशा के लिए कैसे ठीक कर सकते हैं?
  9. पीसीओडी में पीरियड्स क्यों नहीं आते हैं?
  10. पीसीओडी के क्या जोखिम हो सकते हैं?

पीसीओडी का इलाज

वैसे तो पीसीओडी का स्थाई इलाज नहीं होता है लेकिन इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है।  मेडिकल इतिहास और मरीज की स्थिति को ध्यान में रखते हुए डॉक्टर कुछ दवाइयां दे सकते हैं। दवाइयों के अलावा डॉक्टर जीवनशैली में सुधार लाने की सलाह दे सकते हैं।

गैर सर्जिकल इलाज 

आमतौर पर देखा जाए तो पीसीओडी के लक्षणों को बिना ऑपरेशन किए ही ठीक किया जाता है। बिना ऑपरेशन कराए भी हम निम्न चिकित्सा पद्धतियों से पीसीओडी का इलाज करवा सकते हैं:

घरेलू उपाय

घरेलू उपायों की मदद से पीसीओडी के लक्षणों से राहत मिल सकती है। आवश्यक घरेलू उपाय इस तरह हैं:

  1. एलोवेरा - इसमें कई तरह के विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट होते हैं। इसके इस्तेमाल से अंडाशय के स्वास्थ्य में सुधार होता है। इस तरह प्रजनन क्षमता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और पीसीओडी के लक्षणों में सुधार होता है।

  2. पवित्र वृक्ष (चेस्ट ट्री) - इसके इस्तेमाल से हार्मोन में हुए असंतुलन को  है। यह प्रोजेस्टरोन हार्मोन को बढ़ाता है और टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन को कम करता है।

  3. दालचीनी - यह ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मददगार होता है। अध्ययन के अनुसार १५ महिलाओं ने दिन में ३ बार, ३३३ मिलीग्राम दालचीनी का इस्तेमाल किया। इससे उनके शरीर में इंसुलिन का स्तर कम देखने को मिला।

  4. सौंफ़- इसमें एक पदार्थ पाया जाता है जो एस्ट्रोजेनिक एक्टिव एजेंट होता है। यह पीसीओडी के मरीजों में गर्भाशय ऊतकों को मजबूत बनाता है।  

  5. अलसी के बीज- एक अध्ययन किया गया जिसमे अलसी के बीजों का फायदा देखा गया। इससे पीसीओडी के लक्षणों और पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन के स्तर में कमी देखी गई।

आयुर्वेदिक उपचार

एक अध्ययन किया गया जिसमे आयुर्वेद चिकित्सा  की मदद ली गई। इस अध्ययन के अनुसार ८५% पीसीओडी के मरीजों में फायदा देखा गया। मरीजों में निम्न औषधियां इस्तेमाल की गईं:

  1. शतावरी- इसका इस्तेमाल हार्मोन के प्रभाव को ठीक करने के लिए और फॉलिकल को परिपक्व बनाने के लिए किया जाता है।

  2. गुडुची - यह मुख्य रूप से रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करता है।

  3. शतपुष्प - अंडाशय के फॉलिकल को परिपक्व बनाने और दर्द से राहत देने में शतपुष्प का प्रयोग होता है। इस तरह यह माहवारी को नियमित रूप से आने में मदद करता है।

  4. अतिबाला - यह औषधि हार्मोन के संतुलन में सुधार करता है और गर्भपात से बचाने में लाभदायक होता है।

  5. सहचर - इसका प्रयोग मुख्य रूप से अनचाहे फॉलिकल को नष्ट करने के लिए किया गया।

  6. त्रिफला क्वथा, चंद्रप्रभा और मणिभद्र- आयुर्वेद के अनुसार इन ३ औषधियों की मदद से शरीर का शोधन किया जाता है।

पीसीओडी के लक्षणों में सुधार लाने के लिए इन औषधियों का उपयोग  ३ चरणों में किया गया। आयुर्वेदिक इलाज के ये ३ चरण इस प्रकार हैं:

  1. पहला चरण - पहले चरण में सुबह और शाम को त्रिफला क्वथा, चंद्रप्रभा, और मणिभद्र पाउडर का प्रयोग किया गया।

  2. दूसरा चरण - दूसरे चरण में सुबह और शाम को शतावरी, शतपुष्प और गुडुची पाउडर इस्तेमाल किया गया। इसके साथ ही कृष्ण जीराका का इस्तेमाल किया गया।

  3. तीसरा चरण - तीसरे चरण में सुबह और शाम को अतिबाला और शतपुष्प पाउडर, रसायन कल्प, सहचर तेल का इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा हर महीने माहवारी का रक्तस्राव पूरी तरह बंद होने के २ दिन बाद, उत्तरा वस्टि को शतपुष्प तेल में मिलाकर इस्तेमाल किया गया।

नोट- कोई भी उपचार खुद से ना करेंआयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह के बाद ही इन दवाईओं का सेवन करें।

होम्योपैथिक उपचार

एक जर्नल के अनुसार पीसीओडी की समस्या में होम्योपैथी असरदार हो सकता है। लगभग ४ से १२ महीनों में पीसीओडी के लक्षणों में सुधार देखा जा सकता है। जर्नल के अनुसार कुछ मुख्य होम्योपैथिक दवाओं के नाम इस प्रकार हैं:

  1. लाइकोपोडियमजी क्लावेटम- इसके इस्तेमाल से पेट में गैस और दर्द की समस्या से आराम मिल सकता है।

  2. लैकेसिसम्यूटस - माहवारी के दौरान होने वाला कमर दर्द और बवासीर की समस्या में आराम मिल सकता है। 

  3. पल्सटिल्ला- इस दवा की मदद से ल्यूकोरिया जैसी समस्या से आराम मिल सकता है। इसके अलावा पीरियड्स के पहले होने वाला सिर दर्द भी ठीक हो सकता है।

नोट- कोई भी उपचार खुद से ना करें। एक अनुभवी होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें।

एलोपैथिक दवाइयां

 दवाइयां देने से पहले मरीज से उसकी राय ली जाती है जैसे कि महिला भविष्य में गर्भधारण करना चाहती है या नहीं। अगर महिला वर्तमान या भविष्य में गर्भधारण करना चाहती है तो डॉक्टर निम्न दवा देते हैं: 

  1. एंड्रोजन को ब्लॉक करने वाली दवाइयां- डॉक्टर कुछ ऐसी दवाइयां देते हैं जो एंड्रोजन हार्मोन को ब्लॉक करती हैं। जब एंड्रोजन हार्मोन ब्लॉक होने लगता है तो मरीज के लक्षण जैसे मुंहासे और अधिक मात्रा में बालों का उगना बंद हो जाता है। 

  2. इंसुलिन सेंसटाइजिंग मेडिसिन - इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण हुए पीसीओडी को ठीक करने के लिए डॉक्टर ‘मेटफॉर्मिन’ दे सकते हैं। मेटफॉर्मिन लेने से शरीर को इंसुलिन नियंत्रण में मदद मिलती है।  

  3. हार्मोनल बर्थ कंट्रोल- डॉक्टर कुछ बर्थ कंट्रोल गोलियां दे सकते हैं। इसके अलावा योनि छल्ला या फिर गर्भाशय के अंदर एक विशेष यंत्र स्थापित कर सकते हैं।

सर्जिकल इलाज

आमतौर पर पीसीओडी का इलाज गैर सर्जिकल तरीके से ही होता है। लेकिन जब महिला को अधिक परेशानी होने लगती है तो ऑपरेशन का सहारा लिया जाता है। पीसीओडी के लिए २ ऑपरेशन किए जाते हैं जो निम्न हैं:

  1. लैप्रोस्कोपिक ओवरियन ड्रिलिंग- यह एक हल्की सर्जिकल प्रक्रिया होती है जिसमे लेजर और ऊष्मा का प्रयोग किया जाता है। ऐसा पाया गया है कि ओवरियन ड्रिलिंग के बाद अंडाशय अपना कार्य ठीक से करता है। लैप्रोस्कोपिक ओवरियन ड्रिलिंग की प्रक्रिया कुछ इस प्रकार है:

    1. सबसे पहले मरीज को एनेस्थीसिया दिया जाता है।

    2. इसके बाद पेट के निचले हिस्से में एक चीरा लगाया जाता है।

    3. अब एक यंत्र को पेट में डाला जाता है जिसे लैप्रोस्कोप कहते हैं। इससे डॉक्टर अंदर के प्रजनन अंग जैसे अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब, इत्यादि देख पाते हैं।

    4. लेजर और ऊष्मा की मदद से अंडाशय के उस ऊतक को नष्ट कर देते हैं जो पुरुष हार्मोन को बनाता है। 

  2. ओवरियन सिस्टेक्टाॅमी - ओवरियन सिस्टेक्टाॅमी एक सर्जिकल प्रक्रिया है। पीसीओडी के कारण जब सिस्ट का आकार बढ़ जाता है तो इसे बाहर निकाल दिया जाता है। यह ऑपरेशन दो तरीकों से किया जा सकता है:

    1. लैप्रोस्कोपिक ओवरियन सिस्टेक्टाॅमी- इस विधि में एक यंत्र की मदद ली जाती है जिसमे बहुत छोटा कैमरा और टॉर्च लगा होता है। इस यंत्र को लैप्रोस्कोप कहा जाता है। इसकी मदद से डॉक्टर को अंदर की चीजें दिखाई देती हैं और ऑपरेशन को करने में मदद मिलती है। सिस्ट को निकालने के लिए प्रायः इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है।

    2. ओपेन सिस्टेक्टाॅमी - यह एक ओपन प्रक्रिया होती है यानी इसमें सर्जन एक बड़ा सा चीरा लगाते हैं। इसके बाद अंडाशय में मौजूद सिस्ट को बाहर निकाल लिया जाता है। आमतौर पर ओपेन सिस्टेक्टाॅमी तब किया जाता है जब सिस्ट बड़े हों या फिर उनमें कैंसर हुआ हो।

पीसीओडी सर्जरी की लागत

भारत में पीसीओडी सर्जरी की लागत कई कारकों के आधार पर अलग-अलग हो सकती है, जिसमें सर्जरी के प्रकार, अस्पताल या क्लिनिक जहां प्रक्रिया की जाती है, और स्थान शामिल है। यहां विभिन्न प्रकार की पीसीओडी सर्जरी की लागत को दर्शाने वाली तालिका दी गई है:

सर्जरी का नाम

सर्जरी की लागत

लैप्रोस्कोपिक ओवरियन ड्रिलिंग

₹ २८,००० से ₹ १,००,०००

लैप्रोस्कोपिक ओवरियन सिस्टेक्टाॅमी

₹ २८,००० से ₹ ७०,०००

ओपेन सिस्टेक्टाॅमी

₹ ३०,००० से ₹ ८०,०००

पीसीओडी की जटिलताएं और जोखिम 

यह एक ऐसी बीमारी है जिसमे कुछ सामान्य जटिलताएं देखी जा सकती हैं जैसे गर्भपात, मोटापा इत्यादि। इसके अलावा अवसाद, बांझपन, इंडोमेट्रियल कैंसर जैसे जोखिम भी रहते हैं। पीसीओडी की कुछ जटिलताएं और जोखिम इस प्रकार हैं:

  1. बांझपन- इस वजह से महिला में गर्भधारण नही हो पाता है जिसे आम भाषा में बांझपन कहते हैं।

  2. गर्भपात- पीसीओडी के मरीज में गर्भधारण होने के बाद गर्भ गिर सकता है यानी गर्भपात हो सकता है।

  3. इंडोमेट्रियल कैंसर- इसकी वजह से गर्भाशय के अंदर वाली परत में कैंसर होने की संभावना रहती है।

  4. स्लीप एप्निया- यह सोते समय होने वाला विकार होता है जिसमे सोते समय सांसे रुकती और चालू होती हैं।

  5. अवसाद- मरीज में अवसाद के भी लक्षण देखे जा सकते हैं।

  6. प्रीक्लैंप्सिया- यह गर्भावस्था के दौरान होने वाली गंभीर स्थिति होती है जिसमे मरीज को हाईब्लड प्रेशर, पेशाब से प्रोटीन आना, सूजन और सिरदर्द जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

  7. गर्भकालीन डायबिटीज- यह गर्भावस्था के दौरान होने वाला डायबिटीज होता है। 

  8. हाई ब्लड प्रेशर- मरीज को हाई ब्लड प्रेशर की भी समस्या हो सकती है।

  9. डायबिटीज-पीसीओडी में इंसुलिन रेजिस्टेंस की समस्या हो सकती है जिससे महिला को डायबिटीज होने का जोखिम रहता है।

डॉक्टर के पास कब जाएं 

पीसीओडी के कुछ लक्षण महिला को अधिक परेशान कर सकते हैं इसलिए अगर लक्षण दिखाई दें तो डॉक्टर के पास जाना चाहिए। अगर निम्नलिखित लक्षण दिखते हैं तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए:

  1. अगर चेहरे पर अधिक मुंहासे हो रहे हों।

  2. चेहरे और अन्य जगहों पर बाल आ रहे हैं। 

  3. माहवारी का अनियमित होना

  4. गर्भधारण में समस्या

पीसीओडी के लिए आहार

पीसीओडी में स्वस्थ आहार का लेना बहुत आवश्यक होता है। इससे शरीर को उचित विटामिन, प्रोटीन और मिनरल मिल जाते हैं जिससे शरीर स्वस्थ रहता है। इस प्रकार पौष्टिक आहार पीसीओडी के लक्षणों को भी कम करने में मदद करता है। इसके के लिए कुछ मुख्य आहार इस प्रकार हैं:

  1. फाइबर युक्त भोजन- हरी सब्जियां, ताजे फल और होल ग्रेन में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है। इसलिए इन्हें अपने आहार में जरूर शामिल करें।

  2. बिना स्टार्च वाले फल और सब्जियां- ऐसे फल और सब्जियों का चुनाव करें जिनमे स्टार्च मौजूद न हो। साथ ही इनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होना चाहिए। जैसे:

    1. शतावरी 

    2. ब्रोकली 

    3. पत्तागोभी

    4. फूलगोभी

    5. प्याज 

    6. ककड़ी 

    7. बैगन

    8. टमाटर

    9. पालक

    10. खट्टे फल

  3. प्रोटीनयुक्त भोजन- वजन कम करने के लिए प्रोटीनयुक्त आहार आवश्यक होता है। इसलिए प्रोटीन के लिए चिकन, लीन मीट और मछली का सेवन कर सकते हैं।

  4. डेयरी उत्पाद- ऐसे दूध या दही का इस्तेमाल करना चाहिए जिनमे वसा की मात्रा कम हो। 

निष्कर्ष 

लगभग हर तीन में से १ महिला के अंडाशय में सिस्ट देखे जाते हैं। पीसीओडी के कारण महिलाओं के पीरियड्स अनियमित, पुरुषों की तरह दाढ़ी - मूंछ और चेहरे पर मुंहासे हो जाते हैं। इसके अलावा महिला को गर्भधारण करने में भी समस्या आ सकती है। यद्यपि इस बीमारी का कोई स्थाई इलाज नहीं है लेकिन डॉक्टर इसके लक्षणों को कम करने के लिए दवाइयों से उपचार करते हैं।[२]

हेल्थ आपका लेकिन जिम्मेदारी HexaHealth की। पीसीओडी या किसी भी गंभीर बीमारी से परेशान हैं तो HexaHealth आपकी मदद कर सकता है। हमारी पर्सनल केयर टीम आपके हर प्रश्न और समस्या को गंभीरता से लेती है और उसका निवारण करती है। 

अधिक पढ़ने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर जा सकते हैं:

  1. Menorrhagia in Hindi

  2. PCOS in Hindi

  3. Labial Hypertrophy in Hindi

  4. Breast Lump in Hindi

अधिकतर पूछे जाने वाले सवाल

पीसीओडी का हिंदी में अर्थ क्या होता है?

पीसीओडी का फुल फॉर्म होता है पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज यानी महिला के अंडाशय में एंड्रोजन हार्मोन ज्यादा मात्रा में बनने लगता है। ऐसे में महिला को कई तरह के लक्षण दिखाई देते हैं जैसे: 

  1. अनियमित माहवारी 

  2. चेहरे पर मुंहासे

  3. पुरुषों की तरह दाढ़ी-मूंछ 

  4. बांझपन

  5. बालों में कमजोरी 

  6. स्किन टैग

  7. त्वचा का काला पड़ना

पीसीओडी में पीरियड्स क्यों नहीं आते?

पीसीओडी में एंड्रोजेन हार्मोन अधिक मात्रा में बनता है जिससे महिलाओं में ओवुलेशन नही हो पाता है। आमतौर पर ओवुलेशन होने के १४ दिनों बाद पीरियड्स आते हैं। लेकिन जब ओवुलेशन नही होता है तो पीरियड्स नही आ पाते हैं।

पीसीओडी का कारण क्या हो सकता है?

पीसीओडी के निम्न कारण हो सकते हैं: 

  1. जब एंड्रोजन हार्मोन का स्तर अधिक होता है तो ओवुलेशन नही होता है और पीरियड्स नही आते हैं। इसके साथ ही अन्य लक्षण भी दिखते हैं। 

  2. इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण शरीर में इंसुलिन का स्तर बढ़ जाता है जिससे पीसीओडी की समस्या हो सकती है।

पीसीओडी की समस्या क्यों आती है?

पीसीओडी की समस्या आमतौर पर तब आती है जब महिला के अंडाशय में एंड्रोजन हार्मोन अधिक बनने लगता है। एंड्रोजन हार्मोन के बढ़ने से महिला के अंडाशय में सिस्ट, चेहरे पर मुंहासे और शरीर के कई हिस्सों पर बाल उगने लगते हैं।

पीसीओडी का मुख्य कारण क्या है?

पीसीओडी के कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं:

  1. हार्मोन असंतुलन - शरीर में पुरुष हार्मोन की मात्रा बढ़ने से बाकी के प्रजनन हार्मोन असंतुलित हो जाते हैं। इस वजह से पीसीओडी की समस्या शुरू हो जाती है।

  2. इंसुलिन रेजिस्टेंस - जब शरीर इंसुलिन हार्मोन का इस्तेमाल नही कर पाता है तो इसका स्तर बढ़ जाता है।इंसुलिन का स्तर बढ़ने से पीसीओडी की समस्या हो सकती है।

पीसीओडी के लक्षण क्या होते हैं?

पीसीओडी के लक्षण इस प्रकार होते हैं:

  1. अनियमित रूप से पीरियड आना

  2. बालों का असामान्य विकास होना

  3. मुंहासे होना 

  4. मोटापा

  5. त्वचा का काला होना 

  6. सिस्ट 

  7. स्किन टैग

  8. बालों का पतलापन और बाल झड़ना

  9. बाँझपन

  10. शरीर में लंबे समय से हल्का सूजन रहना

पीसीओडी कितने प्रकार की होती है?

पीसीओडी के निम्न प्रकार होते हैं:

  1. फ्रैंक या क्लासिक पॉलीसिस्टिक ओवरी पीसीओएस - इस प्रकार में पुरुष हार्मोन का अधिक बनना, लंबे समय तक पीरियड्स न आना और अंडाशय में सिस्ट बनने की समस्या होती है। 

  2. क्लासिक नॉन पॉलीसिस्टिक ओवरी पीसीओएस - इसमें पुरुष हार्मोन का अधिक बनना और लंबे समय तक पीरियड्स न आना शामिल होता है।

  3. नॉन क्लासिक ओव्युलेटरी पीसीओएस - यह पीसीओएस का वह प्रकार है जिसमे  नियमित रूप से माहवारी होती है लेकिन पुरुष हार्मोन का अधिक बनना और अंडाशय में सिस्ट बनने की समस्या होती है।

  4. नॉन क्लासिक माइल्ड पीसी ओएस - इसमें महिला के शरीर में पुरुष हार्मोन (टेस्टोस्टेरोन) सामान्य होते हैं। लेकिन लंबे समय से पीरियड न आना और अंडाशय में सिस्ट की समस्या होती है।

पीसीओडी का फुल फॉर्म क्या होता है?

पीसीओडी का फुल फॉर्म पॉलिसिस्टिक ओवेरियन डिजीज होता है। इसका अर्थ होता है महिला शरीर में प्रजनन हार्मोन का संतुलन बिगड़ना।

पीसीओडी के बारे में मिथक और तथ्य क्या हैं?

मिथक - वजन कम करने से पीसीओडी ठीक हो जाता है।

तथ्य - पीसीओडी का कोई स्थाई इलाज नहीं है। वजन कम करने से पीसीओडी के लक्षणों को कम किया जा सकता है लेकिन इसे ठीक नही किया जा सकता है।


मिथक - पीसीओडी की वजह से गर्भधारण नही हो पाता है। 

तथ्य - पीसीओडी के मरीज दवाइयों की मदद से गर्भधारण कर सकते हैं। हालांकि पीसीओडी के कारण प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करना मुश्किल होता है क्योंकि ओवुलेशन अनियमित होता है।


मिथक - पीसीओडी और पीसीओएस में अंतर होता है।

तथ्य - अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान के अनुसार पीसीओडी को ही पीसीओएस कहते हैं। पीसीओडी का नामकरण करके पीसीओएस कर दिया गया है।


मिथक - पीसीओडी में महिला के अंडाशय में सिस्ट बन जाते हैं।

तथ्य - यद्यपि पीसीओडी (पॉलिसिस्टिक ओवेरियन डिजीज) के नाम में सिस्ट आता है लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि महिला के अंडाशय में सिस्ट हों।


मिथक - पीसीओडी एक असामान्य बीमारी है। 

तथ्य - लगभग १५% महिलाओं में पीसीओडी देखा जाता है। तो इस संख्या के हिसाब से महिलाओं में पीसीओडी का होना बहुत सामान्य है।

Updated on : Saturday, 09 September 2023

References

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Reviewer

Dr. Aman Priya Khanna

MBBS, DNB General Surgery, Fellowship in Minimal Access Surgery, FIAGES
12 years experience

Author

Sangeeta Sharma

BSc. Biochemistry I MSc. Biochemistry (Oxford College Bangalore)
6 years experience

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