गर्भावस्था (प्रेगनेंसी) क्या है और कैसे होती है? - Pregnancy in Hindi
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प्रेगनेंसी यानी गर्भावस्था को गर्भकालीन अवधि के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें एक या एक से अधिक संतानें महिला के गर्भ (यूटरस यानी गर्भाशय) के अंदर बढ़ती और विकसित होती हैं। फर्टिलाइजेशन (निषेचन) से लेकर डिलीवरी यानी प्रसव (भ्रूण के जन्म) तक की पूरी प्रक्रिया में औसतन २६६-२७० दिन या लगभग नौ महीने लगते हैं।
सेक्सुअल इंटरकोर्स (प्राकृतिक संभोग) के माध्यम से या असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) यानी सहायक प्रजनन तकनीक की मदद से गर्भावस्था स्वाभाविक रूप से हो सकती है। एआरटी में आईवीएफ (इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन) और आईसीएसआई (इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन) जैसी चिकित्सा प्रक्रियाएं शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल मुख्य रूप से तब किया जाता है जब कोई बांझ होता है। आइए गर्भावस्था के अर्थ, चित्रों की मदद से इसका वर्णन, लक्षण, कारण, निदान, और रोकथाम के साथ ही इससे जुड़ी अन्य बहुत सारी बातों के बारे में भी जानते हैं।
अवस्था का नाम | प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) |
वैकल्पिक नाम | गर्भावधि / गर्भकाल |
कारण | नेचुरल सेक्सुअल इंटरकोर्स (प्राकृतिक संभोग), असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) |
लक्षण | मिस्ड पीरियड्स यानी पीरियड्स बंद हो जाना, कोमल या सूजे हुए स्तन, उबकाई या जी मिचलाना, पेशाब ज्यादा आना, थकान, मूड स्विंग यानी तुरंत-तुरंत मिजाज बदलना, सिरदर्द, ऐंठन |
निदान | होम प्रेगनेंसी टेस्ट, ब्लड टेस्ट (खून की जांच), अल्ट्रासाउंड, यूरिन टेस्ट (पेशाब की जांच), ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (एचसीजी) टेस्ट |
किसके द्वारा इलाज | गायनोकॉलोजिस्ट (स्त्री रोग विशेषज्ञ) |
डिलीवरी के तरीके | नॉर्मल वेजाइनल डिलीवरी, असिस्टेड डिलीवरी |
प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) क्या है ?
प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) की प्रक्रिया
मनुष्यों में गर्भावस्था एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है जिसमें कई चरण शामिल होते हैं। यह तब होता है जब नर (स्पर्म यानी शुक्राणु) और मादा (ओवम यानी अंडाणु) गेमेट्स यानी युग्मक मादा प्रजनन अंग के अंदर फर्टिलाइज (निषेचित) होकर एक नवजात शिशु को जन्म देते हैं। गर्भवती होने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने की आवश्यकता होती है।
स्पर्म ट्रांसपोर्ट
एक महिला को गर्भवती होने के लिए, एक पुरुष के स्पर्म (मेल गेमेट) की जरूरत होती है, जो टेस्टिस (मेल रिप्रोडक्टिव सिस्टम यानी पुरुष प्रजनन प्रणाली का हिस्सा) में उत्पन्न होते हैं। स्पर्म के वेजाइना (योनि) में जाने से महिला गर्भवती हो सकती है। यह निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है:
- नेचुरल सेक्सुअल इंटरकोर्स (प्राकृतिक संभोग): इस विधि में, सेक्स के दौरान स्पर्म वेजाइना के भीतर जाता है।
- असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी / सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी): इसमें वे मेडिकल प्रोसीजर शामिल हैं जिनका इस्तेमाल मुख्य रूप से तब किया जाता है जब किसी को बांझपन की समस्या होती है, और प्रेगनेंसी का नेचुरल प्रोसेस फेल हो जाता है। इनमें से कुछ मेडिकल प्रोसीजर्स में शामिल हैं:
- इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ)
- इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आईसीएसआई)
स्पर्म का ट्रांसपोर्ट कई कारणों पर निर्भर करता है:
- स्पर्म को महिला की वेजाइना और सर्विक्स (गर्भाशय ग्रीवा) के एन्वायरनमेंट से गुजरने में सक्षम होना चाहिए।
- वेजाइना का एन्वायरनमेंट जो मुख्य रूप से साइक्लिक हार्मोनल बदलावों के अधीन होता है, उसे स्पर्म को नष्ट किए बिना स्वीकार करना चाहिए।
- स्पर्म को एक ऐसे रूप में बदलने में सक्षम होना चाहिए जो ओवम यानी डिंब में दाखिल हो सके।
- स्पर्म फीमेल रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट यानी महिला प्रजनन प्रणाली में पांच दिनों तक जीवित रह सकते हैं।
ओव्यूलेशन और एग ट्रांसपोर्ट
यह ऐसी प्रक्रिया है जिसमें ओवरी यानी अंडाशय से एक मैच्योर ओवम/एग (फीमेल गेमेट) निकलता है।
- हर महीने ओवरी के अंदर, अंडाणुओं का एक समूह छोटे और फ्लूइड से भरे थैलों में विकसित होने लगता है।
- अंत में, इन थैलियों में से एक अंडाणु निकलता है और फैलोपियन ट्यूब द्वारा उठाया जाता है।
- ट्यूब के माध्यम से ओवम/अंडे के परिवहन में लगभग ३० घंटे लगते हैं। ओव्यूलेशन के बाद, ओवम/अंडाणु सिर्म १२ से २४ घंटों के लिए फर्टिलाइज (निषेचित) हो सकता है।
फर्टिलाइजेशन (निषेचन)
यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें स्पर्म एक ओवम/अंडे से मिलकर जाइगोट (फर्टिलाइज्ड ओवम यानी निषेचित डिंब) बनाता है। ऐसा फैलोपियन ट्यूब में होता है। यहीं से गर्भावस्था की शुरुआत होती है। फर्टिलाइजेशन के बाद, घटनाओं की एक सीरीज होती है जिनमें शामिल हैं:
- जाइगोट नाम का सिंगल सेल एम्ब्र्यो (एकल कोशिका भ्रूण) पहले सेल डिवीजन से गुजरता है।
- सात दिनों में एम्ब्र्यो कई कई सेल डिवीजन से गुजरता है और अंत में, एम्ब्र्यो ऑर्गेनाइज्ड सेल्स यानी संगठित कोशिकाओं का एक समूह बन जाता है जिसे ब्लास्टोसिस्ट कहा जाता है। कोशिकाओं का यह द्रव्यमान यूटरस यानी गर्भाशय में तेजी से उतरना शुरू कर देता है।
इम्प्लांटेशन (प्रत्यारोपण)
यह वह प्रक्रिया है जिसमें भ्रूण खुद को गर्भाशय की दीवार से जोड़ लेता है।
- बढ़ते भ्रूण और गर्भाशय की दीवार के बीच के टिश्यूज (ऊतकों) को प्लेसेंटा के रूप में जाना जाता है। प्लेसेंटा जन्म तक बढ़ते हुए भ्रूण को पोषण प्रदान करता है।
- बच्चे का आगे का विकास गर्भाशय में होता है।
- मनुष्यों के लिए सामान्य गर्भधारण की अवधि ३८ सप्ताह है जो नौ महीने से थोड़ा अधिक है।
- इस अवधि के अंत में, गर्भाशय के संकुचन हार्मोन (ऑक्सीटोसिन हार्मोन) के प्रभाव में शुरू होते हैं जो सर्विक्स यानी गर्भाशय ग्रीवा को प्रभावित करते हैं, जिससे वे बच्चे को मां के शरीर से बाहर निकलने की अनुमति देने के लिए फैल जाते हैं।
प्रेगनेंसी (गर्भावस्था के लक्षण)
- पीरियड्स (मासिक धर्म) का रूक जाना
- सिरदर्द
- थकान
- वजन बढ़ना
- सूजे हुए और दर्द भरे स्तन
- शरीर में ऐंठन
- मुंहासे, उल्टी
- मूड स्विंग्स (मिजाज में बार-बार बदलाव)
- बार-बार खाने की इच्छा
- पेशाब का बढ़ना
- थकान
- कब्ज
- वेजाइनल डिस्चार्ज (योनि स्राव) में बढ़ोतरी
प्रेगनेंसी (गर्भावस्था) का निदान कैसे किया जाता है?
गर्भावस्था के निदान के लिए डॉक्टर बहुआयामी नैदानिक दृष्टिकोण का इस्तेमाल करेंगे। इस दृष्टिकोण में ३ मुख्य डायग्नोस्टिक टूल्स शामिल हैं जो हिस्ट्री और फिजिकल एग्जामिनेशन (शारीरिक परीक्षण), लैबोरेटरी इवैल्यूशन (प्रयोगशाला मूल्यांकन) और अल्ट्रासोनोग्राफी हैं।
- फिजिकल एग्जामिनेशन (शारीरिक जांच): गर्भावस्था के शुरुआती निदान के लिए मेन्स्ट्रुअल पीरियडस् यानी मासिक धर्म न आना, निपल्स का काला पड़ना, सर्विक्स (गर्भाशय ग्रीवा) और वेजाइना (योनि) का उपयोग किया जाता है।
- ब्लड टेस्ट (खून की जांच / रक्त परीक्षण): ये डॉक्टर के ऑफिस में किए जाते हैं, हालांकि वे यूरिन टेस्ट की तरह सामान्य नहीं होते हैं। ये टेस्ट ओव्यूलेशन के छह से आठ दिनों के बाद गर्भावस्था की पहचान कर सकते हैं, जो कि होम प्रेग्नेंसी टेस्ट (घरेलू गर्भावस्था परीक्षण) की तुलना में तेज होते है। होम प्रेग्नेंसी टेस्ट की तुलना में नतीजे आने में ज्यादा समय लगता है।
- यूरिन टेस्ट (पेशाब की जांच / मूत्र परीक्षण): ये आमतौर पर फर्टिलाइजेशन (निषेचन) के १२-१४ दिनों के बाद गर्भावस्था का पता लगा लेते हैं।
- अल्ट्रासाउंड: एम्ब्र्यो यानी भ्रूण से जुड़ी किसी भी असामान्यताओं और कई गर्भधारण का पता लगाने के लिए किए जाते हैं।
- ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (एचसीजी) टेस्ट: शरीर में एचसीजी के लेवल का इस्तेमाल गर्भावस्था (एचसीजी) के निदान के लिए किया जाता है। जब एक महिला के पीरियड्स (मासिक धर्म) नहीं आते हैं, तो एचसीजी का लेवल नाटकीय रूप से बढ़ जाता है। एचसीजी का पता लगाने के लिए यूरिन या ब्लड टेस्ट का इस्तेमाल किया जा सकता है।
डॉक्टर गर्भवती महिला को गर्भकाल के दौरान कुछ अन्य परीक्षण करवाने के लिए भी कह सकती है। इन परीक्षणों में शामिल हैं:- जेनेटिक कैरियर स्क्रीनिंग: अगर किसी महिला या उसके पति के साथ जेनेटिक (आनुवांशिक) समस्याओं का पारिवारिक रिकॉर्ड है या उन्हें विरासत में मिली स्थिति के साथ भ्रूण या नवजात शिशु हुआ है, तो डॉक्टर गर्भधारण की अवधि के दौरान जेनेटिक डायग्नोसिस (आनुवंशिक निदान) करवाने की सलाह दे सकते हैं।
- एमनियोसेंटेसिस: इसमें भ्रूण के चारों तरफ फैले एमनियोटिक फ्लूइड के नमूने की जांच की जाती है। यह क्रोमोसोम से जुड़ी समस्याओं की पहचान करता है और न्यूरल ट्यूब में आने वाली स्पाइना बिफिडा जैसी रूकावटों को दूर करता है।
- कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (सीवीएस) टेस्ट: यह डिलीवरी यानी प्रसव से पहले की जाने वाली जांच है जिसमें मां के शरीर से प्लेसेंटा टिश्यू का नमूना लिया जाता है। एमनियोसेंटेसिस के उलट, सीवीएस ओपन न्यूरल ट्यूब से संबंधित असामान्यताओं की मौजूदगी को जाहिर नहीं करता है। सीवीएस वाली महिलाओं को भी इन असामान्यताओं की जांच के लिए १६ से १८ सप्ताह के गर्भकाल के बीच नियमित रूप से ब्लड एनालिसिस (रक्त विश्लेषण) करवाना चाहिए।
गर्भावस्था के चरण
पहली तिमाही (०-१३ सप्ताह)
- इस अवधि के दौरान, शरीर में कई परिवर्तन होते हैं जिनमें हार्मोनल बदलाव भी शामिल हैं जो गर्भवती महिला के सभी ऑर्गन सिस्टम को प्रभावित करते हैं।
- बच्चे की शारीरिक संरचना और अंग विकसित होते हैं।
- शरीर में भी बड़े बदलाव होंगे और महिला को सामान्य लक्षण महसूस हो सकते हैं जिनमें मतली, थकान, स्तन कोमलता और बार-बार पेशाब आना शामिल है। लेकिन हर महिला का अपना एक अलग अनुभव होता है।
दूसरी तिमाही (१४-२६ सप्ताह)
- दूसरी तिमाही तब होती है जब प्रारंभिक गर्भावस्था से जुड़े कई असुविधाजनक लक्षण कम हो जाते हैं।
- महिला की ऊर्जा में बढ़ोतरी होती है और उन्हें बेहतर नींद आने की संभावना रहती है। हालांकि, कुछ महिलाओं को पीठ या पेट में दर्द, पैर में ऐंठन, कब्ज या सीने में जलन का अनुभव होता है।
तीसरी तिमाही (२७- ४० सप्ताह)
- यह गर्भावस्था के अंत का समय होता है।
- अंतिम तिमाही के दौरान, बच्चे की हड्डियां पूरी तरह से बन जाती हैं, उसके टच यानी स्पर्श रिसेप्टर्स पूरी तरह से विकसित हो जाते हैं, और इस दौरान बच्चे के अंग स्वतंत्र रूप से काम कर सकते हैं।
- इस अवधि के दौरान एक गर्भवती महिला को जिन कुछ शारीरिक लक्षणों का अनुभव हो सकता है उनमें सांस की तकलीफ (जैसे-जैसे भ्रूण विकसित हो रहा होता है), हेमोरॉयड्स (बवासीर), यूरिनरी इनकॉन्टिनेंस (मूत्र असंयम), वैरिकोज नसें और नींद की समस्याएं शामिल हैं। इनमें से कई लक्षण यूटरस यानी गर्भाशय के आकार में बढ़ोतरी से उत्पन्न होते हैं, जो फैलता है।
- एक गर्भवती महिला के रूप में उसकी नियत तारीख के करीब, बच्चे का शरीर आलसी, सुस्त और निष्क्रिय महसूस कर सकता है।
गर्भावस्था प्रसव के तरीके
- नॉर्मल वेजाइनल डिलीवरी (सामान्य योनि प्रसव): जब एक गर्भवती महिला अपनी योनि (वेजाइना) से बच्चे को जन्म देती है। किसी बच्चे के जन्म का यह सबसे आम तरीका है। वेजाइनल बर्थ के दौरान, गर्भवती महिला का यूटरस यानी गर्भाशय सिकुड़ कर पतला हो जाता है और सर्विक्स (गर्भाशय ग्रीवा) को खोलता है और बच्चे को योनि (या बर्थ कैनाल) के माध्यम से बाहर धकेलता है।
- असिस्टेड डिलीवरी: इस डिलीवरी मेथड का इस्तेमाल तब किया जाता है जब गर्भावस्था में जटिलताएं होती हैं। इस तरह की मदद दवाइयों के इस्तेमाल से लेकर इमरजेंसी डिलीवरी प्रक्रियाओं तक अलग-अलग हो सकती है। डॉक्टर द्वारा प्रक्रिया का चुनाव उन स्थितियों पर निर्भर करेगा जो डिलीवरी (प्रसव) के दौरान उत्पन्न हो सकती हैं। असिस्टेड डिलीवरी से जुड़ी इन प्रक्रियाओं में शामिल हैं:
- एपिसीओटॉमी: वेजाइनल ओपनिंग को बड़ा करने के लिए पेरिनेम (वेजाइना और एनस यानी गुदा के बीच की त्वचा का क्षेत्र) में एक सर्जिकल चीरा लगाया जाता है ताकि बच्चे का सिर अधिक आसानी से बाहर निकल सके और मां की त्वचा को फटने से बचाया जा सके।
- एमनियोटॉमी: यह एक ऐसी विधि है जिसमें एमनियोटिक मेम्ब्रेन या थैली का कृत्रिम रूप से टूटना शामिल होता है, जिसमें बच्चे के चारों ओर तरल पदार्थ होता है। यह तरीका प्रसव से पहले या प्रसव के दौरान अपनाया जा सकता है।
- इंड्यूस्ड लेबर: इसमें गर्भावस्था के दौरान दवाओं का इस्तेमाल करके गर्भाशय को सिकुड़ने लायक बनाया दिया जाता है। गर्भधारण के दौरान जब चिकित्सा समस्याएं या जटिलताएं होती हैं, तब इस पद्धति का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।
- सिजेरियन सेक्शन: इसे सी-सेक्शन के रूप में भी जाना जाता है। यह पेट और गर्भाशय में लगाए गए चीरे के माध्यम से की जाने वाली एक सर्जरी है।
गर्भावस्था से जुड़े जोखिम और जटिलताएं
- मिसकैरेज (गर्भपात): यह २०वें सप्ताह से पहले गर्भावस्था का समापन है। ऐसा १० से २०% गर्भधारण के मामलों में होता है। यह ज्यादातर गर्भावस्था की शुरुआत में होता है इससे पहले कि एक महिला को अपनी गर्भावस्था का एहसास हो।
- यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (यूटीआई): शरीर में हार्मोन से जुड़े बदलावों के कारण यूटेरिन ट्रैक्ट (गर्भाशय पथ) बदल जाता है, जिससे इसमें इन्फेक्शन (संक्रमण) का अधिक हो जाता है।
- हाई ब्लड प्रेशर यानी उच्च रक्तचाप (बीपी): पहले से मौजूद या लगातार हाई ब्लड प्रेशर की समस्या वाली महिलाओं को सामान्य ब्लड प्रेशर वाली महिलाओं की तुलना में गर्भावस्था से जुड़ी समस्याओं का अधिक जोखिम होता है। हालांकि, हाई बीपी वाली कई गर्भवती महिलाओं के स्वस्थ बच्चे होते हैं जिनमें कोई गंभीर जटिलता नहीं होती है।
- गर्भकालीन मधुमेह: गर्भवती महिलाओं को गर्भकाल के दौरान हाई ब्लड शुगर कंसंट्रेशन्स (उच्च रक्त शर्करा सांद्रता) का अनुभव हो सकता है, और इस तरह से इसे गर्भकालीन मधुमेह के रूप में जाना जाता है।
- आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया: एनीमिया शरीर में आयरन की कमी के कारण होता है। डिलीवरी (प्रसव) के दौरान, हेवी ब्लीडिंग के कारण महिलाओं में आयरन की कमी से एनीमिया हो सकता है।
- हाइपरमेसिस ग्रेविडरम: इसमें गंभीर मतली, उल्टी, वजन कम होना, चक्कर आना और संभावित डिहाइड्रेशन शामिल हैं।
- पोस्टपार्टम डिप्रेशन (प्रसव के बाद होने वाला अवसाद): इसका कारण शारीरिक, आनुवंशिक, भावनात्मक और साथ ही सामाजिक कारक भी हो सकते हैं। कुछ सामान्य लक्षणों में चिंता, कम ऊर्जा, बहुत ज्यादा उदासी और रोना शामिल हैं।
- मोटापा और वजन बढ़ना: अध्ययनों से पता चला है कि जो महिलाएं गर्भवती होने से पहले मोटापे से ग्रस्त होती हैं, उनमें गर्भावस्था की जटिलताओं के विकसित होने का अधिक खतरा होता है।
गर्भावस्था की रोकथाम
बैरियर के तरीके
- कंडोम: पुरुष और महिला कंडोम गर्भनिरोधक के प्रकार हैं जो गर्भावस्था को रोकते हैं और सेक्सुअली ट्रांसमिटेज डिजीज यानी यौन संचारित रोगों (एसटीआई) से बचाते हैं। कंडोम बिना डॉक्टर की पर्ची के सुपरमार्केट, दवा की दुकानों, या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से खरीदे जा सकते हैं।
- डायाफ्राम: ये ऐसा गर्भनिरोधक है जो एक महिला अपनी वेजाइना (योनि) के अंदर डालती है। महिला को इंटरकोर्स (संभोग) से कुछ घंटे पहले डायाफ्राम डालना चाहिए। इंटरकोर्स के बाद इसे छह घंटे के लिए छोड़ देना चाहिए और २४ घंटे के बाद इसे हटा देना चाहिए।
- सरवाइकल कैप: यह एक सिलिकॉन कप है जिसे वेजाइना (योनि) के अंदर रखा जाता है। यह स्पर्म को वेजाइना में दाखिल होने से रोकने के लिए सर्विक्स यानी गर्भाशय ग्रीवा को ढक देता है।
हार्मोनल तरीके
- कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स यानी गर्भनिरोधक गोलियां: गर्भनिरोधक गोलियां गर्भावस्था को रोकने के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली गर्भनिरोधक विधियों में से एक हैं। दो प्रकार की गोलियां होती हैं, संयुक्त गोलियां जिनमें एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टिन होता है और मिनी-पिल जिसमें सिर्फ प्रोजेस्टिन होता है।
- पैच: लोग गर्भधारण को रोकने के लिए पैच का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। पीरियड्स (माहवारी) आने देने के लिए इसे 1 सप्ताह के लिए हटाने से पहले ३ सप्ताह के लिए एक पैच पहना जाना चाहिए।
- इंजेक्शन: गर्भावस्था को रोकने के लिए डॉक्टर हर १२ सप्ताह में कॉन्ट्रासेप्टिव (गर्भनिरोधक) शॉट दे सकते हैं।
- वेजाइनल रिंग: वेजाइना के अंदर ३ सप्ताह के लिए प्लास्टिक की एक छोटी रिंग रखी जाती है जो गर्भावस्था को रोकने के लिए शरीर में हार्मोन छोड़ती है।
इंट्रायूटरिन डिवाइस यानी अंतर्गर्भाशयी उपकरण (आईयूडी) और प्रत्यारोपण
- आईयूडी: ये छोटे उपकरण होते हैं जिन्हें डॉक्टर गर्भाशय में डालते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं, हॉर्मोनल और कॉपर बेस्ड।
- प्रत्यारोपण: माचिस की एक तिली के आकार की रॉड को एक व्यक्ति की बांह में डाला जाता है जो शरीर में हार्मोन छोड़ती है।
अन्य तरीके
- फैमिली प्लानिंग (परिवार नियोजन): यह गर्भनिरोधक का एक प्राकृतिक तरीका है जिसमें मेंस्ट्रुअल साइकिल (माहवारी) का ध्यान रखना और सेक्सुअल इंटरकोर्स (संभोग) से परहेज करना शामिल है।
- इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्शन (आपातकालीन गर्भनिरोधक): यह विधि अनप्रोटेक्टेड सेक्सुअल इंटरकोर्स यानी असुरक्षित यौन संबंध या फेल्ड बर्थ कंट्रोल (असफल जन्म नियंत्रण) के मामले में अपनाई जाती है। आपातकालीन गर्भनिरोधक के रूप में आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियां शामिल हैं।
- स्टरलाइजेशन (नसबंदी / बंध्याकरण): यह प्रक्रिया फर्टिलिटी यानी प्रजनन क्षमता को स्थायी रूप से कम करने के लिए की जाती है। इस प्रक्रिया से पुरुष और महिला दोनों ही करवा सकते हैं।
गर्भावस्था के दौरान लिया जाने वाला आहार (डाइट)
- डेयरी उत्पाद: बच्चे के लिए एक महिला के शरीर को अतिरिक्त कैल्शियम और प्रोटीन की जरूरत होती है। दही, ग्रीक योगर्ट, स्मूदी और लस्सी जैसे डेयरी उत्पादों को डाइट में शामिल करना चाहिए।
- फलियां: फलियां फाइबर, प्रोटीन, आयरन और कैल्शियम का एक बड़ा स्रोत हैं। एक महिला को बीन्स, छोले, सोयाबीन, दाल और मूंगफली जैसे खाद्य पदार्थों को अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए। डॉक्टरों के मुताबिक एक महिला को रोजाना छह सौ ग्राम फोलेट का सेवन जरूर करना चाहिए।
- शकरकंद: शकरकंद बीटा कैरोटीन और विटामिन ए का एक बड़ा स्रोत है। बच्चे के विकास के लिए विटामिन ए जरूरी है।
- सैल्मन: अगर कोई महिला सीफूड खाती है तो उसे अपनी डाइट में सैल्मन जरूर शामिल करना चाहिए। यह ओमेगा -३ फैटी एसिड से भरपूर होता है और बच्चे के मस्तिष्क और आंखों के विकास में मदद करता है।
- अंडे: अंडों में वसा, विटामिन और गुणवत्ता वाले प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। अंडे कोलीन का एक बड़ा स्रोत हैं जो एक गर्भवती महिला के लिए बेहद जरूरी और एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है।
- हरी पत्तेदार सब्जियां: ब्रोकली, पालक और गोभी जैसी सब्जियां कैल्शियम, आयरन, फोलेट, विटामिन सी, विटामिन के, विटामिन ए और पोटैशियम से भरपूर होती हैं। हरी सब्जियों को डाइट में शामिल करने से महिला को जरूरी पोषक तत्व मिलेंगे।
- लीन मीट और प्रोटीन: लीन मीट गुणवत्ता वाले प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। डाइट में लीन मीट को शामिल करने से आयरन की मात्रा बढ़ाने में मदद मिलेगी।
- बेरीज: बेरीज फाइबर, विटामिन सी, एंटीऑक्सिडेंट, पानी और स्वस्थ कार्ब्स का एक अच्छा स्रोत हैं।
- साबुत अनाज: एक महिला को अपने आहार में ओट्स, ब्राउन राइस, क्विनोआ और जौ जैसे साबुत अनाज शामिल करने चाहिए। साबुत अनाज फाइबर, प्लांट कम्पाउंड्स (पौधों के यौगिकों) और विटामिन्स के एक अच्छे स्रोत हैं।
- एवोकैडो: एवोकैडो विटामिन, पोटेशियम, कॉपर और फाइबर से भरपूर होते हैं। एवोकैडो हेल्दी फैट यानी स्वस्थ वसा से भी भरपूर होता है जो बच्चे की त्वचा, मस्तिष्क और टिश्यूज (ऊतकों) के निर्माण में मदद करता है।
- ड्राई फ्रूट्स यानी सूखे मेवे: ये विटामिन, पोषक तत्वों और हेल्दी फैट (स्वस्थ वसा) से भरपूर होते हैं। सूखे मेवों की कैंडी वाली किस्मों को ना लें क्योंकि इनमें बहुत अधिक चीनी होती है।
- फिश लिवर ऑयल (मछली के जिगर का तेल): मछली के तेल में ओमेगा - ३ फैटी एसिड और डीएचए भरपूर मात्रा में होता है। यह बच्चे की आंखों के विकास में मदद करता है।
- पानी: गर्भावस्था के दौरान, शरीर मां से बच्चे को हाइड्रेशन ट्रांसफर करता है, इसलिए गर्भवती महिला को हाइड्रेटेड रहना चाहिए। अगर गर्भवती महिला पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन नहीं करती है, तो वह डिहाइड्रेटेड हो जाएगी।
निष्कर्ष
- डॉक्टर से सलाह लें: गर्भवती होने से पहले डॉक्टर से सलाह लेने से महिला को स्वस्थ रहने और गर्भावस्था के लिए तैयार रहने में मदद मिलेगी। डॉक्टर या मिडवाइफ करेंगे
- वर्तमान में स्वास्थ्य कैसा है, बीते समय में स्वास्थ्य कैसा था और फैमिली हिस्ट्री क्या थी, इन बातों पर चर्चा करेंगे।
- कुछ ब्लड टेस्ट करेंगे या कुछ टीके भी लगा सकते हैं।
- दवाएं, सप्लीमेंट्स और जड़ी-बूटियों का सुझाव देंगे।
- अस्थमा या डायबिटीज (मधुमेह) जैसी लंबे समय से चली आ रही स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज करेंगे जो महिला के गर्भवती होने से पहले स्थिर होनी चाहिए।
- धूम्रपान, शराब, ड्रग्स और कैफीन को सीमित करें: शराब और धूम्रपान के सेवन से महिला के लिए गर्भधारण करना मुश्किल हो जाएगा और इन सबके सेवन से गर्भपात की आशंका भी बढ़ सकती है।
- संतुलित आहार लें: संतुलित आहार गर्भवती महिला के लिए हमेशा अच्छा होता है और उसे स्वस्थ बच्चा पैदा करने में मदद करता है। कुछ आसान उपायों में शामिल हैं:
- खाने में कैलोरी की मात्रा कम करें।
- ऐसा खाना खाएं जिसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक हो।
- फल, सब्जियां, अनाज और डेयरी उत्पाद गर्भवती होने से पहले महिला को स्वस्थ बना देंगे।
- विटामिन और फोलिक एसिड लें: जरूरी विटामिन, खनिज और फोलिक एसिड के सेवन से बच्चे में बर्थ डिफेक्ट्स यानी जन्म दोष का खतरा कम हो जाता है।
- नियमित रूप से एक्सरसाइज करें: गर्भवती होने से पहले एक्सरसाइज करने से शरीर को गर्भावस्था के दौरान और डिलीवरी के बाद में होने वाले सभी बदलावों से निपटने में मदद मिलेगी।
- तनाव, आराम और विश्राम: अपने आप को तनाव से दूर रखने और सही मात्रा में आराम करने से महिला के लिए गर्भवती होने में आसानी होगी।
अधिकतर पूछे जाने वाले सवाल
प्रेगनेंसी यानी गर्भावस्था क्या है?
गर्भावस्था के लक्षण क्या हैं?
गर्भधारण की पुष्टि करने के लिए अधिकतम दिन क्या हैं?
प्रेगनेंसी टेस्ट से पहले आपको क्या नहीं करना चाहिए?
कौन सा प्रेगनेंसी टेस्ट बेहतर है?
शुरुआती गर्भावस्था में आपका पेट कैसा महसूस करता है?
क्या मैं गर्भावस्था के दौरान एक्सरसाइज (व्यायाम) कर सकती हूं?
गर्भावस्था के दौरान मुझे क्या खाना चाहिए?
गर्भावस्था के दौरान मुझे क्या परहेज करना चाहिए?
मैं गर्भधारण को कैसे रोक सकती हूं?
प्रेगनेंसी डिलीवरी (गर्भावस्था प्रसव) का कौन सा तरीका सबसे अच्छा होता है?
नॉर्मल डिलीवरी (सामान्य प्रसव) में कितने घंटे का समय लगेगा?
डिलीवरी के बाद, मेरा यूटरस यानी गर्भाशय कब सामान्य आकार में वापस आएगा?
Updated on : 26 October 2022
समीक्षक
Dr. Aman Priya Khanna
MBBS, DNB General Surgery, Fellowship in Minimal Access Surgery, FIAGES
12 Years Experience
Dr Aman Priya Khanna is a well-known General Surgeon, Proctologist and Bariatric Surgeon currently associated with HealthFort Clinic, Health First Multispecialty Clinic in Delhi. He has 12 years of experience in General Surgery and worke...View More
लेखक
She is a B Pharma graduate from Banaras Hindu University, equipped with a profound understanding of how medicines works within the human body. She has delved into ancient sciences such as Ayurveda and gained valuab...View More
विशेषज्ञ डॉक्टर
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