Treatment Duration
20 Minutes
------ To ------29 Minutes
Treatment Cost
₹ 1,20,000
------ To ------₹ 1,85,000
Table of Contents
Book Appointment for Smile Eye
स्माइल लेजर शल्य चिकित्सा के माध्यम से तीव्र और स्पष्ट दृष्टि की एक नई दुनिया में प्रवेश करें। कल्पना करें, बिना चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस के, आप हर दृश्य को सहजता और स्पष्टता के साथ देख पा रहे हैं। अत्याधुनिक लेजर तकनीक सौम्य रूप से आपके नेत्रगोलक के अग्र भाग (कॉर्निया) का पुनः आकार निर्धारण कर रही है, जिससे आपकी दृष्टि उल्लेखनीय रूप से सुधार रही है।
यह अत्याधुनिक प्रक्रिया तीव्र पुनः स्वस्थ होने की क्षमता प्रदान करती है एवं इससे न्यूनतम असुविधा होती है। यह सर्जरी उन व्यक्तियों के लिए विशेष रूप से लाभप्रद है, जो बिना किसी बाह्य सहारे के स्पष्ट दृष्टि प्राप्त करने के इच्छुक हैं।
स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने हेतु आगे पढ़ें।
सर्जरी का नाम | स्माइल नेत्र सर्जरी |
वैकल्पिक नाम | छोटे चीरे से लेंटिक्यूल निष्कर्षण सर्जरी |
उपचारित रोग | निकट दृष्टि दोष, दीर्घ दृष्टि दोष, दृष्टिवैषम्य |
सर्जरी के लाभ | न्यूनतम आक्रामक, कोई टांके नहीं, शीघ्र रिकवरी |
इलाज करने वाले | नेत्र-विशेषज्ञ |
स्मॉल इन्सीजन लेंटिक्यूल एक्सट्रैक्शन एक उन्नत एवं प्रभावी नेत्र शल्य चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसका उपयोग अपवर्तक त्रुटियों (रिफ्रैक्टिव एरर्स) को सुधारने हेतु किया जाता है।
इस प्रक्रिया में उच्च परिशुद्धता वाली लेजर तकनीक का उपयोग किया जाता है। यह तकनीक नेत्रगोलक के अग्र भाग (कॉर्निया) का सूक्ष्म पुनः आकार निर्धारण करती है। इससे प्रकाश का सही अपवर्तन सुनिश्चित होता है।
इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप दृष्टि दोषों में सुधार होता है। रोगी को चश्मे या संपर्क लेंस (कॉण्टैक्ट लेंस) की आवश्यकता न्यूनतम हो जाती है।
यह चिकित्सा विधि अपनी अल्प-आक्रामक प्रकृति एवं तीव्र ऊतक पुनः स्वस्थता के कारण वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त है। यह शल्य प्रक्रिया स्पष्ट एवं सटीक दृष्टि के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी विकल्प मानी जाती है।
मानव नेत्र एक संवेदनशील इंद्रिय अंग है, जो प्रकाश संकेतों को ग्रहण कर उन्हें विद्युत संकेतों में परिवर्तित करता है तथा मस्तिष्क तक संप्रेषित करता है, जिससे हमें दृश्य अनुभूति प्राप्त होती है। नेत्र की संरचना निम्नलिखित प्रमुख घटकों से निर्मित होती है :
कॉर्निया : यह नेत्र की पारदर्शी एवं घुमावदार बाह्य परत होती है, जो प्रकाश किरणों को अपवर्तित (रिफ्रैक्ट) कर उन्हें दृष्टिपटल (रेटिना) की ओर निर्देशित करती है।
आइरिस (नेत्र वर्णक झिल्ली) : यह नेत्र का वर्णकयुक्त (पिगमेंटेड) भाग होता है, जो प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करता है। यह तीव्र प्रकाश में पुतली (प्यूपिल) को संकुचित तथा मंद प्रकाश में उसे विस्तारित करता है।
पुतली (प्यूपिल) : यह नेत्र के मध्य स्थित एक काला वृत्ताकार छिद्र होता है, जो प्रकाश को नेत्र लेंस तक पहुँचने की अनुमति प्रदान करता है।
नेत्र लेंस (क्रिस्टललाइन लेंस) : यह पारदर्शी एवं लचीली संरचना होती है, जो प्रकाश किरणों को दृष्टिपटल (रेटिना) पर केंद्रित करती है। यह विभिन्न दूरियों पर स्थित वस्तुओं को देखने हेतु अपने आकार को समायोजित कर सकता है, जिसे ऐकोमोडेशन प्रक्रिया कहा जाता है।
रेटिना (दृष्टिपटल) : यह नेत्र की सबसे भीतरी परत होती है, जिसमें विशेष प्रकार की प्रकाश-संवेदनशील कोशिकाएँ (छड़ एवं शंकु) पाई जाती हैं। ये कोशिकाएँ प्रकाश संकेतों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित कर ऑप्टिक तंत्रिका (नर्व) के माध्यम से मस्तिष्क तक प्रेषित करती हैं, जिससे हमें वस्तुओं की स्पष्ट छवि प्राप्त होती है।
जिन व्यक्तियों को विशेष अपवर्तक विकार होते हैं और जो निर्धारित चिकित्सीय मानदंडों को पूरा करते हैं, उनके लिए स्माइल एक सुरक्षित एवं प्रभावी नेत्र सर्जरी प्रक्रिया है।
इस शल्य क्रिया द्वारा निम्नलिखित स्थितियों का उपचार किया जाता है :
निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) : यह एक ऐसी अवस्था है, जिसमें दूरस्थ वस्तुएँ धुंधली प्रतीत होती हैं, जबकि निकट की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं।
दृष्टिवैषम्य (एस्टिग्मैटिज़्म) : इस विकार में नेत्रगोलक के अग्र भाग (कॉर्निया) का आकार अनियमित हो जाता है, जिससे दृष्टि विकृत अथवा अस्पष्ट हो जाती है।
दूर दृष्टि दोष (हाइपरमेट्रोपिया) : इस स्थिति में प्रकाश का अपवर्तन सही ढंग से नहीं हो पाता, जिससे निकटस्थ वस्तुएँ धुंधली प्रतीत होती हैं।
प्रेसबायोपिया : यह नेत्र लेंस (क्रिस्टललाइन लेंस) की कठोरता बढ़ने के कारण उत्पन्न होने वाली एक उम्र संबंधी अपवर्तक समस्या है। इससे निकट की वस्तुओं को देखने में कठिनाई होती है।
अन्य सभी शल्य प्रक्रियाओं की भाँति, स्माइल शल्य चिकित्सा भी कुछ विशिष्ट चिकित्सीय दिशा-निर्देशों के अंतर्गत किए जाने पर अधिक प्रभावी होती है। इसके लिए निम्नलिखित मानदंड आवश्यक हैं :
रोगी की आयु २२ वर्ष या अधिक होनी चाहिए।
नेत्रों एवं कॉर्निया की संरचना पूर्णतः स्वस्थ होनी चाहिए।
अपवर्तक त्रुटि का स्तर १ वर्ष तक स्थिर रहना चाहिए, जिससे नेत्रों की स्थिरता सुनिश्चित हो।
निकट दृष्टि दोष का स्तर -१ डायोप्टर से -१० डायोप्टर के बीच होना चाहिए।
दृष्टिवैषम्य की सीमा ३ डायोप्टर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
इस सर्जरी में फेमटोसेकंड लेजर (आधुनिक एवं अति-सटीक नेत्र उपचार लेजर) का उपयोग किया जाता है, जो सूक्ष्म एवं सटीक चरणों में नियंत्रित प्रक्रिया को संपन्न करता है।
इस शल्य चिकित्सा की प्रक्रिया निम्नलिखित चरणों में संपन्न होती है :
सूक्ष्म चीरा बनाना : नेत्रगोलक के अग्र भाग (कॉर्निया) की सतह पर एक अत्यंत सूक्ष्म एवं सटीक चीरा लगाया जाता है। इससे एक छोटा फ्लैप निर्मित होता है, जो आगे की प्रक्रिया को संभव बनाता है।
कॉर्निया का पुनः आकार निर्धारण प्रक्रिया : एक विशेष लेजर तकनीक का उपयोग करते हुए, नेत्र शल्य चिकित्सक कॉर्निया के भीतर आवश्यक संरचनात्मक परिवर्तन करता है। यह प्रक्रिया उसकी वक्रता को समायोजित कर फोकस में सुधार सुनिश्चित करती है।
ऊतक निर्माण : लेजर तकनीक की सहायता से कॉर्निया के भीतर एक पतली लेंटिक्यूल परत बनाई जाती है। यह परत दृष्टि सुधार की प्रक्रिया को सुगम और प्रभावी बनाती है।
लेंटिक्यूल निष्कासन : इस लेंटिक्यूल को एक सूक्ष्म चीरे के माध्यम से सावधानीपूर्वक हटा दिया जाता है। इससे कॉर्निया का नया आकार निर्धारित होता है और अपवर्तक दोष का सुधार सुनिश्चित होता है।
स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा, नेत्रों से संबंधित अपवर्तक दोषों के सुधार हेतु एक प्रभावी चिकित्सा प्रक्रिया मानी जाती है। इसके प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं :
गैर-आक्रामक (मिनिमली इनवेसिव) प्रक्रिया : यह एक न्यूनतम आक्रामक शल्य प्रक्रिया है, जिसमें अत्यंत छोटे चीरे (इन्सिज़न) की आवश्यकता होती है। इस कारण यह अन्य नेत्र शल्य विधियों की तुलना में सूखी नेत्र स्थिति एवं संक्रमण के जोखिम को न्यूनतम करने में सहायक होती है।
असुविधा में कमी : इस प्रक्रिया के दौरान कॉर्नियल तंत्रिकाओं (नर्व्स) पर न्यूनतम प्रभाव पड़ता है, जिससे स्वस्थ होने की प्रक्रिया अपेक्षाकृत अधिक सहज एवं आरामदायक होती है।
शीघ्र स्वस्थ होने की प्रक्रिया : लेसिक की तुलना में, स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा अधिक त्वरित स्वस्थ होने की प्रक्रिया प्रदान करती है। साथ ही, इस सर्जरी में फ्लैप से संबंधित किसी भी जटिलता का कोई जोखिम नहीं होता।
विभिन्न नेत्र स्थितियों के लिए उपयुक्त : स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा विभिन्न प्रकार की अपवर्तक त्रुटियों के उपचार में प्रभावी होती है। यह दृष्टिवैषम्य, निकट दृष्टि दोष एवं अन्य अपवर्तक दोषों में लाभकारी होती है।
लंबे समय तक प्रभावी परिणाम : यह सर्जरी रोगियों को दीर्घकालिक रूप से संतोषजनक परिणाम प्रदान करने में सक्षम होती है। उचित देखभाल एवं चिकित्सकीय निर्देशों के पालन से यह दृष्टि सुधार हेतु एक अत्यंत प्रभावी विकल्प सिद्ध होती है।
रोगियों को चाहिए कि वे चिकित्सक द्वारा दिए गए सभी निर्देशों का पालन करें एवं किसी भी प्रकार की जटिलता अनुभव होने पर शीघ्र नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श लें।
स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा से पूर्व एवं उस दिन कुछ महत्वपूर्ण चिकित्सा उपाय किए जाने आवश्यक होते हैं, ताकि यह प्रक्रिया सफलतापूर्वक संपन्न हो सके। यह पूर्व-मूल्यांकन नेत्र चिकित्सक को स्माइल नेत्र सर्जरी हेतु सर्वोत्तम दृष्टिकोण अपनाने में सहायता प्रदान करता है।
परामर्श एवं नेत्र मूल्यांकन : नेत्र शल्य चिकित्सक संपूर्ण नेत्र परीक्षण कर यह सुनिश्चित करेगा कि रोगी इस प्रक्रिया के लिए उपयुक्त उम्मीदवार है या नहीं। इस मूल्यांकन के माध्यम से कॉर्निया की संरचना, दृष्टि दोष की तीव्रता एवं नेत्र स्वास्थ्य की समग्र स्थिति का निर्धारण किया जाता है।
चिकित्सा इतिहास का मूल्यांकन : रोगी को अपना विस्तृत चिकित्सा इतिहास साझा करना अनिवार्य होता है। इसमें पूर्व-विद्यमान नेत्र रोग, एलर्जी, नियमित रूप से ली जाने वाली औषधियाँ तथा पूर्व में की गई किसी भी नेत्र शल्य प्रक्रिया का विवरण सम्मिलित होता है।
संपर्क लेंस का उपयोग बंद करना : जो रोगी नियमित रूप से संपर्क लेंस का उपयोग करते हैं, उन्हें शल्य प्रक्रिया से पूर्व एक निश्चित अवधि तक लेंस पहनना बंद करने की सलाह दी जाती है। संपर्क लेंस कॉर्निया की वक्रता को परिवर्तित कर सकते हैं, जिससे पूर्व-शल्य चिकित्सा माप प्रभावित हो सकते हैं। लेंस न पहनने से कॉर्निया अपनी प्राकृतिक संरचना में लौट आता है, जिससे सटीक माप संभव हो पाता है।
चिकित्सीय निर्देश एवं पूर्व-शल्य चिकित्सा तैयारी : नेत्र शल्य चिकित्सक रोगी को सर्जरी से पूर्व संपूर्ण जानकारी एवं आवश्यक निर्देश प्रदान करेगा। इसमें शल्य चिकित्सा के दिन किसी भी प्रकार के सौंदर्य प्रसाधन, नेत्र क्रीम या चेहरे पर लगाए जाने वाले लोशन के उपयोग से परहेज करने की सलाह दी जाती है, ताकि संक्रमण का कोई जोखिम न रहे।
सर्जरी केंद्र पर समयानुसार आगमन : रोगी को नियत समय पर शल्य चिकित्सा केंद्र पर पहुँचना आवश्यक होता है, ताकि समस्त पूर्व-प्रक्रियाएँ व्यवस्थित रूप से पूरी की जा सकें।
शल्य चिकित्सा की पूर्व-तैयारी : रोगी को पूर्व-सर्जरी क्षेत्र (प्री-ऑपरेटिव एरिया) में ले जाया जाता है। वहाँ नेत्र सतह को सुन्न करने के लिए स्थानिक एनेस्थेटिक आई ड्रॉप्स डाली जाती हैं। इससे रोगी को किसी भी प्रकार की असुविधा या पीड़ा अनुभव नहीं होती, जिससे पूरी प्रक्रिया सहज एवं दर्द रहित बनी रहती है।
शल्य कक्ष में प्रवेश : रोगी को स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा के लिए ऑपरेटिंग रूम में लाया जाता है। सर्जिकल टीम यह सुनिश्चित करता है कि रोगी उचित शारीरिक स्थिति में हो, जिससे संपूर्ण प्रक्रिया सुचारु रूप से संचालित हो सके।
शीघ्र स्वस्थ होने तथा उत्कृष्ट दृष्टि सुधार परिणामों के लिए उपयुक्त पश्चात-सर्जरी देखभाल अत्यंत आवश्यक है। निम्नलिखित विवरण में रोगी को स्वस्थ होने की प्रक्रिया के दौरान अनुभव होने वाली संभावित स्थितियों का वर्णन किया गया है।
शल्य चिकित्सा उपरांत देखभाल : सर्जरी पूर्ण होने के पश्चात, रोगी को कुछ समय के लिए चिकित्सकीय निगरानी में रखा जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई तात्कालिक जटिलता उत्पन्न न हो। रोगी को हल्की असुविधा अथवा नेत्रों में सूखापन अनुभव हो सकता है, जिसका प्रबंधन चिकित्सक द्वारा निर्धारित आई ड्रॉप्स के माध्यम से किया जाता है।
डिस्चार्ज और रिकवरी : जब शल्य चिकित्सक प्रारंभिक परिणामों से संतुष्ट होते हैं एवं रोगी की स्थिति स्थिर होती है, तब उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है। चिकित्सक, घर पर अनुसरण किए जाने वाले पश्चात-शल्य चिकित्सा निर्देश प्रदान करते हैं, जिनका पालन करना अत्यंत आवश्यक होता है।
घाव की देखभाल : स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा के उपरांत, नेत्र शल्य चिकित्सक विशेष घाव देखभाल एवं नेत्र स्वच्छता से संबंधित निर्देश प्रदान करते हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है।
नेत्रों को रगड़ने अथवा बार-बार स्पर्श करने से बचें, क्योंकि इससे सर्जरी के दौरान किए गए चीरे में गड़बड़ी उत्पन्न हो सकती है एवं असुविधा हो सकती है।
तेज़ प्रकाश एवं धूल से बचाव हेतु चिकित्सकीय निर्देशानुसार सुरक्षात्मक चश्मे (धूप का चश्मा) का उपयोग करें।
विश्राम एवं रिकवरी अवधि : शल्य चिकित्सा के उपरांत प्रारंभिक कुछ दिनों तक रोगी को पूर्ण विश्राम करना चाहिए तथा किसी भी प्रकार की श्रमसाध्य गतिविधियों से बचना चाहिए। कोई भी ऐसी गतिविधि जो नेत्रों पर दबाव डाल सकती हो, उसे करने से परहेज़ करना चाहिए, जिससे स्वस्थ होने की प्रक्रिया तीव्र गति से हो सके।
निर्धारित आई ड्रॉप्स का प्रयोग : संक्रमण से बचाव एवं शीघ्र स्वस्थ होने के लिए नेत्र शल्य चिकित्सक विशेष नेत्र बूँदें निर्धारित करते हैं। रोगी को इन नेत्र बूँदों का प्रयोग निर्देशानुसार निर्धारित समय पर करना आवश्यक होता है।
नेत्रों को रगड़ने से बचें : स्वस्थ होने की प्रक्रिया के दौरान रोगी को अपनी नेत्रों को रगड़ने अथवा खरोंचने से पूर्णतः बचना चाहिए। ऐसा करने से उपचार प्रक्रिया बाधित हो सकती है तथा संक्रमण की संभावना बढ़ सकती है।
स्माइल नेत्र सर्जरीके उपरांत, निर्धारित समय पर प्रथम अनुवर्ती परामर्श अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इससे चिकित्सक यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि रोगी की स्वस्थ होने की प्रक्रिया उचित रूप से हो रही है एवं शल्य चिकित्सा सफल रही है या नहीं।
प्रारंभिक अनुवर्ती परामर्श सामान्यतः सर्जरी के पश्चात २४ से ४८ घंटे के भीतर निर्धारित किया जाता है।
इन परामर्शों के माध्यम से रोगी अपनी दृष्टि की प्रगति एवं किसी भी प्रकार की दृष्टि संबंधी कठिनाइयों पर चर्चा कर सकता है।
चिकित्सक नेत्रों की स्थिति की जाँच कर यह सुनिश्चित करते हैं कि स्वस्थ होने की प्रक्रिया सुचारु रूप से हो रही है एवं किसी भी प्रकार की समस्या उत्पन्न नहीं हो रही है।
शल्य चिकित्सा के उपरांत प्रथम, द्वितीय एवं तत्पश्चात साप्ताहिक अनुवर्ती परामर्श आयोजित किए जाते हैं, जिनका पालन करना आवश्यक होता है।
रोगी को चाहिए कि वह चिकित्सक द्वारा प्रदत्त समस्त निर्देशों का पालन करें एवं किसी भी असुविधा या जटिलता उत्पन्न होने की स्थिति में शीघ्र चिकित्सीय परामर्श प्राप्त करें।
स्माइल नेत्र सर्जरी को सामान्यतः एक सुरक्षित एवं प्रभावी प्रक्रिया माना जाता है। तथापि, अन्य किसी भी शल्य प्रक्रिया की भांति इसमें भी कुछ संभावित जोखिम एवं जटिलताएँ हो सकती हैं।
स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा से जुड़ी संभावित जटिलताएँ निम्नलिखित हैं :
सूखी नेत्र स्थिति (ड्राई आई सिंड्रोम) : कुछ रोगियों को सर्जरी के उपरांत अस्थायी रूप से नेत्रों में सूखापन अथवा हल्की जलन का अनुभव हो सकता है। यह स्थिति सामान्यतः कुछ समय पश्चात स्वयं ही समाप्त हो जाती है।
संक्रमण का जोखिम : यद्यपि संक्रमण की संभावना अत्यंत दुर्लभ होती है, किंतु सर्जरी के उपरांत संक्रमण की एक न्यून संभावना बनी रहती है। उचित नेत्र स्वच्छता एवं चिकित्सकीय निर्देशों के अनुपालन से इस जोखिम को न्यूनतम किया जा सकता है।
कॉर्नियल धुंधलापन (हेज़) : कुछ परिस्थितियों में, शल्य चिकित्सा के उपरांत कॉर्निया (नेत्र की पारदर्शी पर्त) पर अस्थायी रूप से हल्का धुंधलापन उत्पन्न हो सकता है, जिससे दृष्टि की स्पष्टता प्रभावित हो सकती है। यह स्थिति उन रोगियों में अधिक प्रचलित होती है, जिनका अपवर्तन दोष (रिफ्रैक्टिव एरर) अधिक होता है।
अनियमित दृष्टिवैषम्य एवं दृश्य विकृति : कुछ रोगियों में, सर्जरी के उपरांत अनियमित दृष्टिवैषम्य उत्पन्न हो सकता है, जिससे दृष्टि की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। इसके अतिरिक्त, कुछ रोगी दृश्य विकृतियों जैसे कि प्रकाश के चारों ओर प्रभामंडल (हेलो) अथवा चकाचौंध (ग्लेयर) का अनुभव कर सकते हैं।
दर्द एवं असुविधा : यद्यपि अधिकांश रोगी स्वस्थ होने की प्रक्रिया के दौरान केवल हल्की असुविधा का अनुभव करते हैं, किंतु कुछ रोगियों में अस्थायी रूप से हल्का दर्द अथवा प्रकाश के प्रति अधिक संवेदनशीलता (फोटोफोबिया) उत्पन्न हो सकती है।
सर्जरी से पूर्व एवं पश्चात निर्धारित अनुवर्ती परामर्श के अतिरिक्त, यदि कोई जटिलता उत्पन्न होती है, तो उसका समय पर उपचार कराना अत्यंत आवश्यक होता है। निम्नलिखित परिस्थितियों में शीघ्र ही नेत्र चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए :
गंभीर दृष्टि परिवर्तन जो सामान्य सुधार प्रक्रिया से भिन्न प्रतीत हो।
आँखों में अत्यधिक दर्द जो सामान्य औषधियों से नियंत्रित न हो।
नेत्रों में अत्यधिक अथवा स्थायी सूखापन, जो निर्धारित आई ड्रॉप्स के प्रयोग के बावजूद बना रहे।
संक्रमण या अन्य जटिलताओं के संकेत, जैसे लालिमा, सूजन, पीड़ा या दृष्टि में असामान्य परिवर्तन।
स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा व्यक्ति की दृष्टि एवं जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। यदि इस प्रक्रिया में अनावश्यक विलंब किया जाए, तो इससे रोगी की नेत्र स्वास्थ्य स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
स्माइल नेत्र सर्जरी में देरी से उत्पन्न संभावित जोखिम निम्नलिखित हैं :
दृष्टि में गिरावट : यदि रोगी को दृष्टि सुधार की आवश्यकता हो और शल्य चिकित्सा में देरी की जाए, तो दृष्टि में क्रमिक रूप से गिरावट आ सकती है, जिससे दैनिक गतिविधियों में कठिनाई उत्पन्न हो सकती है।
अपवर्तक दोष की प्रगति : यदि समय पर उपचार न किया जाए, तो निकट दृष्टि दोष, दूर दृष्टि दोष अथवा दृष्टिवैषम्य जैसी अपवर्तक त्रुटियाँ समय के साथ बढ़ सकती हैं। इससे दृष्टि सुधार के लिए भविष्य में अधिक जटिल एवं व्यापक चिकित्सा उपायों की आवश्यकता हो सकती है।
स्माइल नेत्र शल्य क्रिया की लागत विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है। सामान्यतः प्रत्येक नेत्र के लिए इसकी लागत ₹५०,००० से ₹८०,००० के बीच हो सकती है।
इस व्यय को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं :
परामर्श शुल्क (कंसल्टेशन फीस) : शल्य चिकित्सा से पूर्व रोगी को नेत्र विशेषज्ञ के साथ परामर्श लेना आवश्यक होता है, जिसका शुल्क समग्र लागत में सम्मिलित किया जा सकता है।
प्रवेश शुल्क : यदि रोगी को चिकित्सा संस्थान में ठहरने की आवश्यकता होती है, तो यह शुल्क कुल लागत में जोड़ा जा सकता है।
रोगी की नेत्र स्वास्थ्य स्थिति : यदि रोगी की नेत्र स्वास्थ्य स्थिति जटिल है, तो शल्य प्रक्रिया में अतिरिक्त सावधानियों एवं चिकित्सा उपायों की आवश्यकता हो सकती है, जिससे कुल व्यय बढ़ सकता है।
चिकित्सा संस्थान का प्रकार : सर्जरी की लागत अस्पताल अथवा नेत्र चिकित्सा केंद्र की प्रतिष्ठा, गुणवत्ता एवं सुविधाओं के आधार पर भिन्न हो सकती है।
भौगोलिक स्थिति : शहर अथवा स्थान के अनुसार चिकित्सा संस्थानों में शल्य चिकित्सा की लागत भिन्न हो सकती है। प्रमुख महानगरों में इसकी कीमत अपेक्षाकृत अधिक हो सकती है।
रोगी की आयु : अलग-अलग आयु समूहों में चिकित्सा प्रक्रिया का प्रभाव भिन्न हो सकता है। कुछ विशेष स्थितियों में रोगी की आयु के आधार पर अतिरिक्त परीक्षण अथवा सावधानियों की आवश्यकता हो सकती है।
निदानात्मक परीक्षण (डायग्नोस्टिक टेस्ट्स) : सर्जरी से पूर्व आवश्यक नेत्र परीक्षण, जैसे कि कॉर्नियल टोपोग्राफी अथवा अपवर्तन परीक्षण, समग्र लागत में सम्मिलित किए जा सकते हैं।
संभावित जटिलताएँ एवं अतिरिक्त उपचार : यदि शल्य चिकित्सा के उपरांत किसी भी प्रकार की जटिलता उत्पन्न होती है और उसके लिए अतिरिक्त उपचार आवश्यक होता है, तो इससे कुल चिकित्सा व्यय में वृद्धि हो सकती है।
चिकित्सा प्रक्रिया | लागत (प्रति नेत्र) |
स्माइल नेत्र सर्जरी | ₹५०,००० से ₹८०,००० |
स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा अपेक्षाकृत नवीनतम चिकित्सा पद्धति है, जिसका उपयोग अभी सीमित संख्या में रोगियों के लिए किया गया है। इस प्रक्रिया का एक प्रमुख लाभ यह है कि इसमें कॉर्निया में अत्यंत छोटा चीरा लगाया जाता है, जिससे नेत्र की संरचनात्मक अखंडता बनाए रखी जाती है।
स्माइल सर्जरी के उपरांत कॉर्निया की संवेदनशीलता (सेंसिटिविटी) शीघ्रता से पुनः स्थापित होती है, जिससे लेसिक शल्य चिकित्सा की तुलना में सूखी नेत्र स्थिति (ड्राई आई सिंड्रोम) में अधिक तेजी से सुधार होता है।
समग्र रूप से, स्माइल नेत्र सर्जरी नेत्र दृष्टि सुधार हेतु एक प्रभावी, सुरक्षित एवं उन्नत तकनीक सिद्ध हो रही है। रोगियों को चाहिए कि वे शल्य चिकित्सा के सभी पहलुओं पर अपने नेत्र विशेषज्ञ से परामर्श करें एवं चिकित्सकीय निर्देशों का पूर्णतः पालन करें।
यदि आपके पास स्माइल सर्जरी से संबंधित कोई भी प्रश्न हैं, तो विशेषज्ञ चिकित्सा परामर्श प्राप्त करने हेतु HexaHealth से संपर्क करें।
स्माइल (स्मॉल इन्सीजन लेंटिक्यूल एक्सट्रैक्शन) नेत्र शल्य चिकित्सा एक न्यूनतम इनवेसिव (कम आक्रामक) लेज़र नेत्र शल्य प्रक्रिया है, जिसे निकट दृष्टि दोष (मायोपिया) तथा दृष्टिवैषम्य (अस्टिग्मैटिज़्म) को ठीक करने हेतु विकसित किया गया है।
इस प्रक्रिया में फेमटोसेकंड लेज़र (उच्च-परिशुद्धता लेज़र तकनीक) की सहायता से कॉर्निया (नेत्र की पारदर्शी सतह) के भीतर एक सूक्ष्म लेंटिक्यूल (डिस्क के आकार का ऊतक) तैयार किया जाता है।
तत्पश्चात, शल्य चिकित्सक एक अत्यंत छोटे चीरे के माध्यम से इस लेंटिक्यूल को निकालते हैं, जिससे कॉर्निया का आकार बदल जाता है और रोगी की दृष्टि में सुधार होता है।
स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा अपवर्तक शल्य चिकित्सा (रिफ्रैक्टिव सर्जरी) का एक प्रकार है, जिसका प्रमुख उद्देश्य रोगी की दृष्टि तीक्ष्णता (विज़ुअल एक्यूटी) में सुधार करना है, जिससे वह बिना चश्मे या संपर्क लेंस (कॉन्टैक्ट लेंस) के स्पष्ट रूप से देख सके। इस प्रक्रिया का उपयोग निम्नलिखित नेत्र विकारों के उपचार हेतु किया जाता है:
निकट दृष्टि दोष (मायोपिया)
दृष्टिवैषम्य (अस्टिग्मैटिज़्म)
प्रेसबायोपिया (उम्रजनित दूर दृष्टि दोष)
दीर्घ दृष्टि दोष (हाइपरोपिया)
स्माइल शल्य चिकित्सा का पूर्ण रूप "स्मॉल इन्सीजन लेंटिक्यूल एक्सट्रैक्शन" है। यह नेत्र सुधार की नवीनतम एवं प्रभावी तकनीकों में से एक है, जो अत्याधुनिक लेज़र तकनीक के माध्यम से नेत्र संबंधी विकारों का उपचार करती है।
हाँ, स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा को सुरक्षित प्रक्रिया माना जाता है। इसके कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं :
यह एक न्यूनतम इनवेसिव तकनीक है, जो पारंपरिक लेसिक (लेज़र असिस्टेड इन सिटू केरेटोमाइलसिस) की तुलना में कम जटिलताओं से जुड़ी होती है।
लेसिक जैसी प्रक्रियाओं में कॉर्नियल फ्लैप (कॉर्निया की ऊपरी परत का एक फ्लैप बनाना) तैयार किया जाता है, जबकि स्माइल प्रक्रिया में यह आवश्यक नहीं होता, जिससे कॉर्निया की संरचनात्मक अखंडता (कॉर्नियल स्ट्रक्चरल इंटेग्रिटी) अधिक सुरक्षित बनी रहती है।
इस शल्य प्रक्रिया में सूखी आँखों की समस्या (ड्राई आई सिंड्रोम) की संभावना लेसिक की तुलना में कम होती है।
स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा के लिए रोगी की उपयुक्तता का निर्धारण विभिन्न चिकित्सकीय कारकों के आधार पर किया जाता है। एक योग्य नेत्र रोग विशेषज्ञ (ऑप्थैल्मोलॉजिस्ट) या अपवर्तक शल्य चिकित्सक (रिफ्रैक्टिव सर्जन) द्वारा विस्तृत नेत्र परीक्षण एवं मूल्यांकन किया जाता है।
स्माइल प्रक्रिया के लिए उपयुक्त रोगी को निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करना चाहिए :
रोगी की आयु कम से कम २२ वर्ष होनी चाहिए।
मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) एवं दृष्टिवैषम्य (अस्टिग्मैटिज़्म) से पीड़ित हो।
कॉर्निया स्वस्थ एवं पर्याप्त मोटाई (कॉर्नियल थिकनेस) वाली हो।
पिछले १ वर्ष में चश्मे का नंबर स्थिर रहा हो एवं उसमें कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन न हुआ हो।
यद्यपि स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा अधिकांश व्यक्तियों के लिए सुरक्षित और लाभकारी मानी जाती है, किंतु कुछ परिस्थितियों में इस प्रक्रिया से बचना चाहिए। निम्नलिखित व्यक्तियों के लिए यह शल्य चिकित्सा उपयुक्त नहीं होती :
गर्भावस्था एवं स्तनपान के दौरान हार्मोनल परिवर्तन के कारण दृष्टि में अस्थायी बदलाव हो सकता है।
गंभीर ग्लूकोमा से पीड़ित रोगी।
कॉर्निया पर गहरी चोट या निशान वाले रोगी।
अनियंत्रित मधुमेह (डायबिटीज़) से ग्रसित व्यक्ति।
मोतियाबिंद के कारण उत्पन्न दृष्टि समस्याओं से पीड़ित व्यक्ति।
हाँ, स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा दृष्टिवैषम्य को ठीक कर सकती है। यह लचीली अपवर्तक तकनीक है, जो विभिन्न प्रकार के नेत्र विकारों के उपचार के लिए प्रभावी मानी जाती है।
यद्यपि स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा के लिए कोई निश्चित आयु सीमा नहीं है, फिर भी इसे सामान्यतः २२ वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए अनुशंसित किया जाता है। अपवर्तक शल्य चिकित्सा के सफल परिणामों के लिए दृष्टि की स्थिरता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
सर्जन और चिकित्सा सुविधा के आधार पर आवश्यक परीक्षणों में कुछ भिन्नता हो सकती है, किंतु सामान्यतः निम्नलिखित परीक्षण किए जाते हैं :
अपवर्तन परीक्षण
कॉर्नियल टोपोग्राफ़ी (कॉर्निया की सतह का विस्तृत मानचित्रण)
पैचिमेट्री (कॉर्निया की मोटाई मापने का परीक्षण)
विस्तारित पुतली परीक्षण
सामान्य नेत्र स्वास्थ्य मूल्यांकन
दृष्टि स्थिरता मूल्यांकन
स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा प्रक्रिया प्रत्येक नेत्र के लिए लगभग १० से १५ मिनट का समय लेती है। यह समय रोगी की अपवर्तक समस्या (रिफ्रैक्टिव एरर) की जटिलता और शल्य चिकित्सक के अनुभव पर निर्भर करता है।
स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा अत्यंत सफल मानी जाती है। एक अध्ययन में पाया गया कि एसएमआईएलई सर्जरी कराने वाले लोगों में से ९९% ने सर्जरी के छह महीने बाद कम से कम २०/४० दृष्टि प्राप्त की। उसी अध्ययन में यह भी बताया गया कि ८८% लोगों की दृष्टि उनके छह महीने के चेक-अप के समय २०/२० थी।
स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा के बाद रिकवरी अपेक्षाकृत कम होता है। अधिकांश रोगी १ से २ दिनों के भीतर अपनी सामान्य दैनिक गतिविधियाँ पुनः शुरू कर सकते हैं।
सामान्यतः, स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा के बाद कोई विशिष्ट आहार प्रतिबंध नहीं होता है। हालांकि, चिकित्सक द्वारा दिए गए अभ्यापश्चात देखभाल निर्देशों का पालन करना शीघ्र और पूर्ण स्वास्थ्य लाभ के लिए आवश्यक होता है।
स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा सामान्यतः एक समय में केवल एक आँख पर की जाती है। अधिकांश चिकित्सक पहले एक आँख का उपचार करते हैं और स्वास्थ्य लाभ की समीक्षा करने के बाद दूसरी आँख की शल्य चिकित्सा का निर्णय लेते हैं। इससे उपचार प्रक्रिया का बेहतर मूल्यांकन और नियंत्रण संभव होता है।
प्रारंभिक परामर्श के दौरान, एक अनुभवी नेत्र रोग विशेषज्ञ (ऑप्थैल्मोलॉजिस्ट) या नेत्र शल्य चिकित्सक आपकी दृष्टि और नेत्र स्वास्थ्य का मूल्यांकन करेंगे। इस चरण में निम्नलिखित प्रक्रियाएँ शामिल हो सकती हैं:
चिकित्सा इतिहास एवं संपूर्ण स्वास्थ्य का मूल्यांकन
विस्तृत नेत्र परीक्षण
नेत्रों की सटीक माप
रिकवरी की अवधि व्यक्ति-विशेष पर निर्भर करती है। हालांकि, अधिकांश रोगी शीघ्र स्वस्थ हो जाते हैं। प्रारंभिक स्वास्थ्य लाभ अवधि कुछ दिनों से लेकर कुछ सप्ताह तक हो सकती है।
हालाँकि, स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा एक सुरक्षित प्रक्रिया मानी जाती है, फिर भी अन्य चिकित्सा प्रक्रियाओं की भांति इसमें भी कुछ संभावित जोखिम हो सकते हैं, जैसे :
सूखी आँखों की समस्या (ड्राई आई सिंड्रोम)
प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता
चमक एवं प्रकाश के चारों ओर प्रभामंडल दिखना (ग्लेयर, हेलोज़)
असुविधा या हल्की जलन
स्माइल नेत्र शल्य चिकित्सा की लागत विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है, जिनमें चिकित्सक का अनुभव, अस्पताल की सुविधा एवं स्थान शामिल हैं। सामान्यतः, स्माइल शल्य चिकित्सा की लागत प्रति आँख ₹ ५०,००० से ₹ ८०,००० के बीच हो सकती है।
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Last Updated on: 24 February 2025
MBBS, DNB General Surgery, Fellowship in Minimal Access Surgery, FIAGES
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