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रक्त कैंसर (ल्यूकेमिया) - लक्षण, कारण, प्रकार, बचाव और उपचार

Medically Reviewed by
Dr. Aman Priya Khanna
Leukaemia Blood Cancer in Hindi

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Leukaemia Blood Cancer in Hindi
Medically Reviewed by Dr. Aman Priya Khanna Written by Kirti V

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कैंसर एक ऐसा रोग है जिसमे शरीर की कोशिकाेएं असामान्य रूप से अनियंत्रित होकर बढ़ने लगती हैं। यह शरीर के किसी भी अंग या ऊतक में शुरू हो सकता है, और फैल सकता है। अगर यह कैंसर, रक्त की कोशिकाओं में होता है तो इसे ल्यूकेमिया या हिन्दी में रक्त कैंसर कहते हैं। [1]

जहां कुछ साल पहले तक रक्त कैंसर को एक दुर्लभ बीमारी माना जाता था, वहीं आज यह बीमारी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। २०१८ के शोध के मुताबिक, दुनिया भर के सभी कैंसर में रक्त कैंसर का अब लगभग ३% हिस्सा बनता है। 

इसी अध्ययन में बताया गया कि जनसंख्या-आधारित सर्वेक्षणों के हिसाब से, भारत में ल्यूकेमिया के नए मामले महाराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्र में ०.८/१,००,००० से लेकर दिल्ली में ५/१,००,००० तक, पाए गए थे। इसके अलावा लिंग के हिसाब से विभाजित किया जाए तो यह पाया गया कि रक्त कैंसर, पुरुषों में होने वाले सभी कैंसर का ९.५% और महिलाओं में ५.५% होता हैं।

रक्त कैंसर क्या होता है?

रक्त कोशिकाओं के कैंसर को व्यापक रूप से ल्यूकेमिया कहते है, जिसमे असामान्य रक्त कोशिकाओं का तेजी से विकास होता है। 

यह रक्त कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि, मरीज के अस्थिमज्जा में होती है, जहां पर शरीर में रक्त का निर्माण होता है। ल्यूकेमिया में जिन कोशिकाओं की वृद्धि होती हैं, वे आमतौर पर श्वेत रक्त कोशिकाएं होती हैं। इन कोशिकाओं का पूरा विकास नहीं हुआ होता है, बल्की अपरिपक्व (अभी भी विकासशील) स्तिथि में होती हैं। 

ज्यादातर ल्यूकेमिया ५५ वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों में पाया जाता है, हालाँकि यह १५ वर्ष से कम उम्र के बच्चों में भी सबसे आम है।

रक्त कैंसर की शुरुआत और विकास

ल्यूकेमिया, रक्त बनाने वाले ऊतक, अस्थि मज्जा में शुरू होता है। सामान्य स्तिथि में अस्थि मज्जा अलग-अलग रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है जो कई चरणों से गुजरते हुए अपने पूर्ण परिपक्व रूप में विकसित हो जाती है। प्रत्येक कोशिका का एक निर्धरित काम होता है, ताकी शरीर स्वस्थ बना रहे, जो इस प्रकार है:

अस्थि मज्जा में निर्मित रक्त कोशिकाएं और उनका काम 

अस्थि मज्जा में निर्मित कोशिकाएं 

काम 

श्वेत रक्त कोशिकाएं

शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करती हैं

लाल रक्त कोशिकाएं

ऊतकों और अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचाती हैं

प्लेटलेट्स

रक्तस्राव को रोकने के लिए थक्का बनाने में मदद करते हैं

यह सारी रक्त की कोशिकाओं का निर्माण, स्टेम कोशिकाओं (विशेष तरह की कोशिका) से होता है। ये स्टेम कोशिकाएं विकसित होकर दो प्रकार कीकोशिकाओं में बदल जाती है, जो पुनः विकसित होकर सामान्य कोशिकाओं में बदल जाती है। इन का वर्गीकरण इस प्रकार से किया गया है: 

अपरिपक्व कोशिकाये जो सामान्य कोशिकाओं मे बदल जाती हैं 

अपरिपक्व विकासशील कोशिकाये 

सामान्य कोशिकाये 

माइलॉयड

लाल रक्त कोशिकाओं, प्लेटलेट्स और कुछ श्वेत रक्त कोशिकाओं जिनमे बेसोफिल, ईोसिनोफिल और न्यूट्रोफिल शामिल हैं 

लिम्फोइड

श्वेत रक्त कोशिकाएं जैसे लिम्फोसाइट्स और नैच्रल किलर कोशिकाएं 

ल्यूकेमिया बीमारीकी स्तिथि में अपरिपक्व रक्त कोशिकाओं में से कोई एक कोशिका नियंत्रण से बाहर हो जाती है और गुणा होकर बढ़ने लगती हैं। बढ़ते-बढ़ते ये असामान्य कोशिकाएं, अस्थि मज्जा और रक्त मे सामान्य कोशिकाओं की जगह ले लेती हैं।

रक्त कैंसर का प्रकार


ल्यूकेमिया के विभिन्न प्रकार हो सकते है। इसके प्रकार को इन दो प्रमुख कारकों के आधार पर वर्गीकृत किया गया है: 

  1. कौन सी तरह की विकासशील रक्त कोशिका की बढ़ोतरी हुई है। उसी हिसाब से उसे नाम दिया जाता है, जैसे:

    1. माइलॉयड ल्यूकेमिया - जब माइलॉयड कोशिकाओं की वृद्धि होती है तो माइलॉयड ल्यूकेमिया विकसित होता है। 

    2. लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया - इस ल्यूकेमिया का विकास लिम्फोइड कोशिकाओं के असामान्य रूप से बढ़ने से होता है।

  2. रोग बढ़ने की गति यानि ये ल्यूकेमिया बीमारी जल्दी बढ़ती है या धीरे-धीरे बढ़ती है: 

    1. एक्यूटल्यूकेमिया - यह बहुत जल्दी बढ़ता है और यदि उपचार न किया जाए तो तेजी से बदतर हो जाता है। 

    2. क्रोनिक ल्यूकेमिया - यह बहुत धीमी गति से बढ़ता है और एक लंबे समय के बाद खराब हो जाता है। [2,4]

इन्ही दो कारकों को ध्यान में रखते हुए ल्यूकेमिया कैंसर की बीमारी का वर्गीकरण किया गया है जिसमे चार प्रकार होते हैं: 

  1. एक्यूट लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (एएलएल) -  यह बच्चों में सबसे ज्यादा होने वाला प्रकार होता है। 

  2. एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (एएमएल) - यह प्रकार वृद्ध वयस्कों को अधिक प्रभावित करता है। 

  3. क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल) - यह प्रकार ज्यादातर वयस्कों में होता है।  

  4. क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया (सीएमएल) - मध्य आयु के व्यसक और वृद्ध वयस्क मे पाया जाता है। 

एक्यूटल्यूकेमियाज्यादातर बच्चों मेपाया जाता हैऔर क्रानिकल्यूकेमिया आमतौर पर वयस्कों को प्रभावित करता है। [2,4]

ल्यूकेमिया के चरण

ल्यूकेमिया का चरण, रोग की सीमा और कैंसर कोशिकाओं की प्रगति के आधार पर तय किया जाता है। इस लिए स्टेजिंग प्रणाली विशिष्ट प्रकार के ल्यूकेमिया के आधार पर भिन्न होती है। यहां कुछ सामान्य प्रकारों के लिए सामान्य चरण दिए गए हैं:

  1. तीव्र लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया -

स्टेज 1 - यह मुख्य रूप से अस्थि मज्जा और रक्त में पाई जाती हैं।

चरण 2 - यहाँ कैंसर कोशिकाएं अन्य अंगों जैसे यकृत, प्लीहा और लिम्फ नोड्स में फैल जाता हैं।

स्टेज 3 - मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी तक कैंसर कोशिकाएं  फैल जाता हैं, जिसे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के रूप में जाना जाता है।

स्टेज 4 - कैंसर कोशिकाएं अस्थि मज्जा और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से परे शरीर के अन्य हिस्सों में फैल गई हैं।

  1. तीव्र माइलॉयड ल्यूकेमिया -

स्टेज 1 - यह  मुख्य रूप से अस्थि मज्जा में पाई जाती हैं।

स्टेज 2 - यहाँ कैंसर कोशिकाएं रक्त और अन्य अंगों जैसे यकृत, प्लीहा और लिम्फ नोड्स में फैल गई हैं।

चरण 3 -  मेटास्टैटिक कोशिकाएं केंद्रीय तंत्रिका या शरीर के अन्य भागों में प्रवेश करती हैं।

स्टेज 4 - कैंसर कोशिकाएं कई अंगों या ऊतकों में बड़े पैमाने पर फैल गई हैं।

  1. क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल):

स्टेज 0 - इस बीमारी की विशेषता असामान्य रक्त कोशिका गिनती है लेकिन इसके लिए तत्काल उपचार की आवश्यकता नहीं होती है।

स्टेज I - रक्त में लिम्फोसाइट गिनती में वृद्धि, बढ़े हुए लिम्फ नोड्स, और बढ़े हुए प्लीहा या यकृत।

चरण II - एनीमिया के साथ लिम्फोसाइट गिनती में वृद्धि, बढ़े हुए लिम्फ नोड्स, और बढ़े हुए प्लीहा या यकृत।

चरण III - लिम्फोसाइट गिनती में वृद्धि, बढ़े हुए लिम्फ नोड्स, बढ़े हुए प्लीहा या यकृत, और कम प्लेटलेट गिनती।

स्टेज IV - लाल रक्त कोशिकाओं में कमी, प्लेटलेट्स में कमी और महत्वपूर्ण अंग की भागीदारी के साथ उन्नत बीमारी।

  1. क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया (सीएमएल):

क्रोनिक चरण - असामान्य कोशिकाओं की संख्या अपेक्षाकृत कम है और रोग स्थिर है।

त्वरित चरण - रोग अधिक तेजी से बढ़ता है और असामान्य कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है।

ब्लास्ट चरण - यह रोग आक्रामक हो जाता है, और इसमें अपरिपक्व, असामान्य कोशिकाओं की संख्या अधिक होती है।

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ल्यूकेमिया के लक्षण और संकेत

ल्यूकेमिया बीमारी में सामान्य कोशिका और असामान्य कोशिका का असंतुलन, हेमटोपोइजिस (रक्त कोशिकाओं का निर्माण) को प्रभावित करता है। इसकी वजह से शरीर के सामान्य कार्यों पर असर पड़ता है और परिणाम स्वरूप लक्षण पैदा होते हैं।  ल्यूकेमिया के लक्षण और संकेत निम्नलिखित हो सकते हैं: 

  1. थकावट होना - मरीज़ अक्सर थका-थका सा महसूस करता है। उसे हमेशा ऊर्जा की कमी का एहसास होता है।

  2. बुखार आना और बहुत जल्दी - जल्दी संक्रमण हो जाना - ल्यूकेमिया में स्वस्थ रक्तमांचिका कोशिकाओं की कमी के कारण, व्यक्ति मे प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है। जिसकी वजह से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है और बार-बार बुखार आ सकता है।

  3. रात को पसीना आना - संक्रमण की स्थिति में मरीज़ के शरीर का तापमान बढ़ सकता है। जिसकी वजह से रात को पसीना और बुखार हो सकता है। 

  4. सांस की तकलीफ होना - लाल रक्त कोशिकाओं की कमी की वजह से सांस लेने मे परेशानी हो सकती है। 

  5. वजन का कम होना - ल्यूकेमिया की शुरुआत के चरण में वजन कम हो सकता है, क्योंकि बढ़ती हुई असामान्य कोशिकाएं सारा पोषण ले लेती हैं। 

  6. हड्डी या जोड़ों में दर्द होना - कोशिकाओं की अस्थि मज्जा मे अनवांछित बढ़त की वजह से हड्डियों में दर्द हो सकता है।

  7. आसानी से चोट लगना - प्लेटलेट्स रक्त का थक्का बनाने का कार्य करते है। इनकी कमी या प्लेटलेट्स का ठीक तरह से काम ना करना, इस वजह से आसानी से चोट लग सकती है। इसके अलावा त्वचा पर छोटे लाल धब्बे या चकत्ते होना, और आसानी से खून बहना यानि खून बहना नहीं रुकता जैसे:

    1. नाक से खून आना

    2. मसूड़ों से खून आना

ल्यूकेमिया के कारण

ल्यूकेमिया के कारणों में निम्नलिखित कुछ कारक शामिल हो सकते हैं, इसमे मूलतया आनुवांशिक कारक अधिक महत्वपूर्ण होता है: 

आनुवांशिक कारक - शरीर में अस्थि मज्जा की कोशिकाओं में से अगर किसी कोशिका के डीएनए यानि आनुवंशिक सामग्री मे बदलाव हो जाता है, तो यह ल्यूकेमिया के होने का कारण बनता है। 

डीएनए में आए नए परिवर्तन को म्यूटैशन कहते हैं। अब यह कोशिका अनियंत्रित होकर बढ़ने लगती है और ल्यूकेमिया कर सकती है। 

पर्यावरणीय कारण - कुछ पर्यावरण संभित कारण भी ल्यूकेमिया होने की वजह हो सकते हैं: 

  1. रेडियशन - न्यूक्लियर प्लांट्स के कर्मचारी, और अन्य लोग जो बहुत अधिक रेडिएशन के संपर्क में रहते हैं, उन्हें ल्यूकेमिया का खतरा बढ़ सकता है।

  2. संक्रमण - कुछ वायरस, जैसे कि ह्यूमन टी-सेल ल्यूकेमिया वायरस (HTLV-1), ल्यूकेमिया के विकास के कारण हो सकते हैं।

ल्यूकेमिया के जोखिम कारक

विभिन्न कारक ल्यूकेमिया होने का खतरा बढ़ा देते हैं। इसी की वजह से कुछ लोगों में रक्त कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है, जैसे: 

  1. बढ़ती उम्र - ६० साल से अधिक उम्र के लोगों में रक्त कैंसर या ल्यूकेमिया का खतरा ज्यादा होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ रक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है, और कोशिकाएं भी क्षति ग्रस्त हो जाती हैं। एसी स्थिति में अगर कोई भी जोखिम कारक व्यक्ति मे मौजूद होता है तो कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।

  2. पहले लिया गया कैंसर का उपचार - कुछ कैंसर के उपचार जैसे रेडीऐशन या कीमोथेरेपी, संवेदनशील लोगों में ल्यूकेमिया होने की संभावना को बढ़ा सकते है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि संवेदनशील लोग उपचार के दौरान अधिक दर्द, थकान, और तनाव का सामना कर सकते हैं, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य स्थिति पर असर पड़ता है। 

  3. धूम्रपान - इसमें मौजूद विषाक्त पदार्थ से ल्यूकेमिया विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है।

  4. कुछ औद्योगिक रसायनों के साथ लंबे समय तक संपर्क - बेंजीन और फॉर्मेल्डिहाइड जैसे घरेलू उत्पादों में पाए जाने वाले रसायन जैसे साबुन, शैम्पू , आदि कैंसर पैदा कर सकते।

  5. कुछ विकार - न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस और डाउन सिंड्रोम जो की आनुवंशिक विकार हैं, उनके साथ ल्यूकेमिया का खतरा ज्यादा होता है। 

  6. ल्यूकेमिया का पारिवारिक इतिहास - अगर परिवार में किसी को ल्यूकेमिया की तकलीफ रह चुकी है तो इसकी संभावना बढ़ जाती है। 

ल्यूकेमिया की रोकथाम 

ल्यूकेमिया बीमारी की रोकथाम करना संभव नहीं होता है क्योंकि ज्यादातर, यह कोशिकाओं के डीएनए में बदलाव की वजह से होता है।

परंतु, ल्यूकेमिया के जोखिम बढ़ाने वाले कारकों को कम करके इसके होने की संभावना को कुछ हद तक कम किया जा सकता है, जैसे :

  1. धूम्रपान न करे - तम्बाकू के धुएं में मौजूद रसायनों (जिसमे कार्सिनोजेन होते हैं) के संपर्क में आने से ल्यूकेमिया विकसित होने का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए धूम्रपान करने से बचे।

  2. औद्योगिक रसायनों के संपर्क से बचे - औद्योगिक रसायनों का अधिक संपर्क या एक्सपोज़र ल्यूकेमिया जैसे कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है। इन रसायनों के साथ काम करने वाले व्यक्तियों को सुरक्षा नियमों का पालन करना चाहिए।

ल्यूकेमिया का निदान

ल्यूकेमिया कैंसर के निदान के लिए रोगी की तकलीफों को जानने से शुरुआत की जाती है। कुछ रोगी अस्पष्ट लक्षण के साथ डॉक्टर के पास आते हैं। इसके लिए निम्न तरीके से निदान किया जाता है:

मेडिकल इतिहास और शारीरिक परीक्षण: रोगी का पूरा इतिहास और लक्षण का विवरण लेने के बाद चिकित्सक शारीरिक जांच करते हैं। ल्यूकेमिया के संदेह की पुष्टि करने के लिए अन्य परीक्षण का आदेश दिया जाता है:

  1. रक्त परीक्षण - इस परीक्षण से असामान्य रक्तकोशिकाओंके बारे में पता लगाया जाता है। इसमे निम्न परीक्षण का इस्तेमाल होता है:

  2. कम्प्लीट ब्लड काउन्ट (सीबीसी) - इस परक्षण से लाल रक्त कोशिकाएं, श्वेत रक्त कोशिकाएं, और प्लेटलेट्स की स्तिथि पता चलता है। इसके अलावा ब्लड सेल परीक्षण में मार्कर की उपस्थिति से ल्यूकेमिया के प्रकार की जानकारी मिलती है। [2,4]

  3. इमेजिंग परीक्षण - इनकेद्वारा शरीर के अंदर की स्थिति और कैंसर की गतिविधि के बारे में पता चलता है। इस परीक्षण मे निम्न शामिल होते हैं:  

    1. एक्स-रे - एक्स-रे इमेजिंग विद्युत चुम्बकीय तरंगों (एक्स-रेज़) का उपयोग करके शरीर के अंदर की तस्वीरें बनाती है। 

    2. सिटी स्कैन - इस परीक्षण में बहुत सारे एक्स-रेज़ का इस्तेमाल करके हड्डियों और उत्तकों की विस्तृत छवि बनती है। 

    3. एम आरआई - इस परीक्षण में चुंबक और रेडियो तरंगों का उपयोग करके शरीर के अंदर के अंगों और संरचनाओं की बहुत स्पष्ट छवियां बनती हैं। 

    4. बोन स्कैन - यह परीक्षण ल्यूकेमिया की वजह से आए हड्डियों में परिवर्तन को देखने के लिए न्यूक्लियर इमेजिंग का उपयोग करता है। 

  4. अस्थि मज्जा परीक्षण  

    1. अस्थि मज्जा ऐस्परैशन परीक्षण में सुई के माध्यम से अस्थि मज्जा से तरल पदार्थ लिया जाता है। 

    2. बायोप्सी में हड्डी का एक नमूना लिया जाता है। 

    नमूनों को असामान्य रक्त कोशिकाओं की उपस्थिति की पुष्टि के परीक्षण के लिए प्रयोगशाला में भेज दिया जाता है।

  5. अन्य परीक्षण 

    लंबर पंकचर के माध्यम से डॉक्टर ये पता लगाते हैं, कि सी एस एफ (तरल पदार्थ जो मस्तिशक और स्पाइनल कॉर्ड में होता है) में असामान्य कैंसर कोशिकाएं हैं या नहीं।[2]

डॉक्टर के परामर्श की तैयारी कैसे करनी चाहिए?

डॉक्टर के परामर्श की तैयारी करने के लिए सबसे पहले अपने सवालों की सूची तैयार कर ले। आप निम्नलिखित कदमों का पालन कर सकते हैं: 

  1. रोगी क्या कर सकते हैं? 

सबसे पहले एक अपॉइंटमेंट लें, ओपीडी में जाएं, और पंजीकरण कराएं। इसके बाद डॉक्टर रोगी से समस्त इतिहास, और लक्षण की जानकारी आदि लेने के बाद ऊपर बताए गए परीक्षण का आदेश देंगे। 

  1. रोगी को डॉक्टर से क्या प्रश्न पूछना चाहिए? 

रोगी को निश्चिंत होकर अपने डॉक्टर से बेझिझक सवाल पूछने चाहिए और सब विस्तार से लिख लेना चाहिए ताकी कुछ भूले नहीं। इसके लिए निम्न सवाल पुछ सकते हैं:

  1. रोगी यह पुछ सकता है की उसे किस प्रकार का ल्यूकेमिया है? किस प्रकार की कोशिका की वजह से है?

  2. उसकी ल्यूकेमिया बीमारी की गति कैसी है? यह तेजी से या धीमी गति से बढ़ने वाला कैंसर है?

  3. उसके ल्यूकेमिया के इलाज के लिए क्या विकल्प हैं?

  4. हर प्रकार के उपचार के लाभ और जोखिम क्या हैं?

  5. कौन सी उपचार योजना रोगी के लिए सबसे उपयुक्त है? 

  6. इलाज कब शुरू होना चाहिए, यह कितने समय तक चलेगा और कब खत्म होगा?

  7. इसके लिए कितने समय तक अस्पताल में रहना होगा?

  8. उपचार के दुष्प्रभाव क्या हैं? इन दुष्प्रभावों को रोकने या कम करने के लिए क्या किया जा सकता है?

  9.  इसके अलावा ल्यूकेमिया के लिए सफलता दर/जीवित रहने की दर क्या है?

ल्यूकेमिया का इलाज

ल्यूकेमिया का उपचार शुरू करने से पहले ये निर्धारित किया जाता है की रोगी को किस प्रकार का कैंसर है। इसके अलावा उपचार निम्न कारकों पर निर्भर करता है: 

  1. ल्यूकेमिया की गंभीरता (यानि लयूकेमिया का असर दूसरे अंगों पर आया है या नहीं)

  2. ल्यूकेमिया का प्रकार 

  3. रोगी की उम्र

  4. रोगी का समग्र स्वास्थ्य 

इस बामीरी का उपचार आमतौर पर नॉन -सर्जिकल और सर्जिकल दोनों तरीकों से किया जाता है, जो मूलतया ऊपर दिए गए कारकों पर निर्भर करता है। 

नॉन सर्जिकल उपचार

ल्यूकेमिया के नॉन-सर्जिकल् उपचार, जिसे मेडिकल प्रबंधन के रूप में भी जाना जाता है, रक्त कैंसर को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमे निम्नलिखित उपचार शामिल हो सकते हैं: 

  1. घरेलू उपचार 

    जीवनशैली में संशोधन बहुत लाभकारी उपचार है। यह अन्य उपचारों के साथ में किया जाता है।  स्वस्थ जीवनशैली से उपचार में बहुत फायदा होता है और रोगी स्वस्थ महसूस करता है। जीवन शैली में कुछ बदलाव लाना बहुत लाभकारी होता है जिसमें शामिल हैं:

  1. पौष्टिक और संतुलित आहार का सेवन 

  2. खूब पानी और तरल पदार्थ 

  3. नियमित व्यायाम और शरीर का स्वस्थ वजन 

  4. तनाव की स्तिथि से बचने की कोशिश: योग, और मेडिटेशन की सहायता ले और अपनी मनपसंद चीजों को करे

  5. अच्छी और पर्याप्त नींद ले: वयस्कों के लिए लगभग रात को ७ से ९ घंटे की नींद जरूरी होती है

  6. तम्बाकू का उपयोग या नशीली दवाओं का दुरुपयोग न करें। शराब के सेवन से बचे 

  1. आयुर्वेद उपचार 

    आयुर्वेद उपचार वैद्य की निगरानी में लेने की सलाह दी जाती है। इसके अंदर आहार प्रयोजन, जीवन शैली में बदलाव और जड़ी-बूटियों के सप्लीमेंट्स दिए जाते हैं। 

    आयुर्वेद में शोध और क्लीनिकल अध्ययन के अनुसार कुछ जड़ी-बूटियों, समाधान (योगिक) और खनिजों को ल्युकीमिया बीमारी में उपयोगी पाया गया है, जैसे: 

    1. जड़ी बूटिया - लोचनेरा रोसिया, सेमेकार्पुसाना कार्डियम, उर्जीनिया इंडिका, पोडोफिलम हेक्सेनड्रम और कॉमिफोरा मुकुल

    2. पॉली हर्बल और जड़ी - बूटी यौगिक: रौद्रारस, वृद्धदारु चूर्ण, वृद्धदारु योग, नित्यानंद्रास, कचनार गुगुलु और हरगौरीरस 

    जड़ी-बूटियों और खनिजों जैसे जड़ी-बूटी नवजीवन रस, कामदुधा रस, केहरूबा पिस्टी को ल्यूकेमिया के उपचार में महत्वपूर्ण पाया गया है। सोमल एक महत्वपूर्ण खनिज है जिसे अध्ययन में भी महत्वपूर्ण पाया गया है। 

  2. एलोपथी उपचार  

    एलोपथी उपचार (मॉडर्न मेडिसन उपचार) ल्युकीमिया के लिये सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है। इसके ऊपर बहुत शोध किए गए हैं। विभिन्न अध्ययन ए दवा करते हैं कि एलोपथी उपचार बहुत प्रभावकारी भी है। कुछ संभावित उपचारों में निम्न शामिल हो सकते हैं:

    1. कीमोथेरपी - इस उपचार में ल्यूकेमिया को काबू मे लाने के लिए रसायन दवाये इस्तेमाल होती हैं। 

    2. विकिरण चिकित्सा - इसमे ल्यूकेमिया कोशिकाओं को मारने या उन्हें बढ़ने से रोकने के लिए मशीन द्वारा तेज ऊर्जा किरणों या एक्स-रे का उपयोग किया जाता है।

    3. लक्षित थेरेपी - इसमे दवाओं या अन्य पदार्थों का उपयोग किया जाता है जो सामान्य कोशिकाओं को कम नुकसान पहुंचाकर सिर्फ कैंसर कोशिकाओं पर हमला करते हैं। इसी वजह से लक्षित उपचार ल्यूकेमिया कोशिकाओं को बढ़ने से रोक सकते हैं क्योंकि यह कोशिकाओं की रक्त आपूर्ति में कटौती करते हैं या सीधा उन्हें मार देते हैं।

  3. सर्जिकल उपचार 

ल्यूकेमिया के लिए सर्जिकल उपचार प्राथमिक दृष्टिकोण नहीं होता है। परंतु, कुछ मामलों में इस पर डॉक्टर विचार कर सकते हैं, खासकर तब, जब अन्य उपचार प्रणालियों का उपयोग करके पर्याप्त फायदा नहीं हुआ है। 

  1. स्टेम सेल प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट): इस उपचार में कीमोथेरेपी द्वारा मारी गई कैंसरग्रस्त रक्त का निर्माण करने वाली कोशिकाओं को नई, स्वस्थ स्टेम कोशिकाओं से बदल दिया जाता है। इसकी वजह से अब ये कोशिकाएं सामान्य रक्त कोशिकाओं का निर्माण करती हैं।

    उपचार में दवाओ और चिकित्सा का चयन रोगी की स्वास्थ्य स्थिति और इलाज करने वाले डॉक्टर की राय पर निर्भर करता है।

ल्यूकेमिया की जटिलताएं 

ल्यूकेमिया की स्तिथि में किसी भी रोगी को जटिल समस्या का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि शरीर का सामान्य काम करने के लिए सामान्य रक्त कोशिकाएं नहीं होती हैं। निम्नलिखित जटिलताओं को अक्सर डॉक्टर के पास रिपोर्ट किया जाता है, विशेषकर एक्यूट ल्यूकेमिया की स्तिथि मे, जैसे

  1. कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली 

    प्रतिरक्षा प्रणाली का बहुत कमजोर होना एएमएल की एक सामान्य जटिलता है। यह ल्यूकेमियाबीमारी की वजह से हो सकता है और कैंसर के उपचार के दुष्प्रभाव भी इसके जिम्मेदार हो सकते है।

  2. रक्तसत्राव 

प्लेटलेट्स के कम स्तर के कारण ल्यूकेमिया से पीढ़ित मरीजों में आसानी से रक्तस्राव और चोट लगना पाया जाता है। उन्नत ल्यूकेमियाबीमारी वाले लोगो का शरीर के अंदर अत्यधिक रक्तस्राव के प्रति अधिक संवेदनशील होता हैं, इसी वजह से इन मरीजों में गंभीर रक्तस्राव हो सकता है:

  1. खोपड़ी/मस्तिष्क के अंदर (इंट्राक्रेनियल रक्तस्राव)

  2. फेफड़ों के अंदर (पलमोनरी रक्तस्राव) 

  3. पेट के अंदर (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रक्तस्राव) 

ल्यूकेमिया उपचार की लागत

भारत में ल्यूकेमिया उपचार की लागत कई कारकों पर निर्भर करती है। इसमें ल्यूकेमिया का प्रकार और चरण, उपचार के दृष्टिकोण का प्रकार, रोगी की आयु, अस्पताल का प्रकार और स्थान और इलाज करने वाले डॉक्टर की विशेषज्ञता शामिल है।

नीचे दी गई तालिका विभिन्न ल्यूकेमिया उपचार विकल्पों की लागत दर्शाती है:

सर्जरी का नाम

सर्जरी की लागत

कीमोथेरपी

₹ ७५,॰॰॰ - ₹ २,४॰,॰॰॰ 

लक्षित थेरेपी

₹ ८॰,॰॰॰ - ₹ २,२४,॰॰॰

इम्यूनोथेरेपी

₹ ८॰,॰॰॰ - ₹ २,२४,॰॰॰

काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर (सीएआर) टी-सेल थेरेपी

₹ १,४॰,॰॰॰ - ₹  १,७५,॰॰॰

विकिरण उपचार

₹ ६॰,॰॰॰ - ₹ २,॰॰,॰॰॰

हेमेटोपोएटिक कोशिका प्रत्यारोपण

₹ १५,॰॰,॰॰॰ - ₹ २७,॰॰,॰॰॰

डॉक्टर से कब मिलें? 

ल्यूकेमिया से संबंधित जटिलताओं के कारण रोगी कुछ लक्षण महसूस कर सकते हैं। ये लक्षण इशारा करते हैं कि इस स्थिति में तुरंत ही अस्पताल जाकर डॉक्टर से मिला जाए और उपचार लिया जाए। इन लक्षण में शामिल है:

  1. बुखार 

  2. सांस लेने में कठिनाई 

  3. पेशाब में खून 

  4. गंभीर सिर दर्द 

  5. उलटी/ सम्भ्रम 

  6. खून की उलटी 

यदि समय पर इलाज न किया जाए तो जटिलताओ की वजह से जान भी जा सकती है। इसलिए संकेत और लक्षण महसूस होते ही डॉक्टर से संपर्क करना चाहिये।

ल्यूकेमिया के लिए आहार

ल्यूकेमिया में आहार की अहम भूमिका होती है, क्योंकि अच्छा भोजन करने से न सिर्फ कैंसर के इलाज के दौरान शरीर को शक्ति मिलती है, बल्की इलाज के बाद भी बेहतर महसूस करने और मजबूत बने रहने में मदद मिल सकती है। 

जिन मरीजों का अच्छा आहार होता है और जिनका वजन नियंत्रण में रहता है, उन पर ल्यूकेमिया बीमारी के उपचार में इस्तेमाल की गई दवाओ का बहुत दुष्प्रभाव नहीं होता है। 

क्या खाना चाहिए 

अच्छा भोजन करने से अच्छा पोषण मिलता है। इस पोषण की वजह से रक्त कैंसर के इलाज के दौरान और इलाज के बाद में मरीज़ बेहतर महसूस करता है। इसके अलावा शरीर मे ताकत बनती है। अच्छा खाना खाने से मरीज़ उपचार के दुष्प्रभावों को बेहतर ढंग से सहन कर पाते हैं। 

  1. विभिन्न प्रकार के मौसमी फल और सब्जियाँ

  2. साबुत अनाज

  3. कम वसा वाली डेयरी और उसके उत्पादन 

  4. कम वसा वाले प्रोटीन 

  5. जैतून का तेल जैसे स्वास्थ्यवर्धक तेल का इस्तेमाल करें

  6. जलयोजन बनाए रखने के लिए पानी, चाय और कॉफी जैसे तरल पदार्थों का सेवन करें।

निष्कर्ष

ल्यूकेमिया में रक्त में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित बढ़ोतरी होती है। यह असामान्य कोशिकाएं ज्यादातर श्वेत रक्त कोशिकाएं होती हैं। ल्यूकेमिया बीमारी के लक्षण स्पष्ट नहीं होते और निदान के लिए डॉक्टर रक्त परीक्षण और बाइऑपसी की सहायता लेते हैं। इसका उपचार मूलतया इस बात पर निर्भर करता है कि कौन से प्रकार का ल्यूकेमिया है और मरीज की स्तिथि कितनी गंभीर है। 

ल्यूकेमिया का निदान होते ही अक्सर मरीज तनाव ग्रस्त हो जाता है, और उसे अवसाद की तकलीफ भी हो सकती है। निराशा की अवस्था में बहुत से मरीज जीने की उम्मीद खो देते हैं। ऐसी स्तिथि में HexaHealth की पर्सनल करे टीम से आज ही संपर्क करके विशेषज्ञ से विस्तार में बात करें। ल्यूकेमिया से संबंधित अधिक जानकारी के लिए आप हमारी वेबसाईट पर भी जा सकते हैं। 

अधिकतर पूछे जाने वाले सवाल

रक्त की कोशिकाओं के कैंसर को रक्त कैंसर या ल्यूकेमिया कहते हैं। इस स्तिथि में रक्त की अपरिपक्व कोशिकाएं अनियंत्रित होकर बढ़ जाती है, और सामान्य कोशिकाओं की जगह ले लेती हैं।

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रक्त कैंसर के अस्पष्ट से लक्षण होते है, जिनमे निम्न लक्षण शामिल है: 

  1. अत्यधिक थकावट

  2. बुखार और रात को पसीना आना 

  3. बार-बार संक्रमण हो जाना 

  4. सांस की तकलीफ होना 

  5. अत्यधिक वजन का कम होना 

  6. हड्डी या जोड़ों में दर्द होना

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ल्यूकेमिया के शुरुआती चेतावनी संकेत में निम्न शामिल हो सकते हैं: 

  1. थकान

  2. वजन कम होना

  3. बार-बार चोट लगना और रक्तसत्राव होना

  4. बार-बार संक्रमण होना 

  5. शरीर की हड्डियों और मासपेशियों में दर्द होना।

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नहीं, यह जरूरी नहीं है की त्वचा पर रक्त कैंसर (ल्यूकेमिया) के लाल धब्बे उन्नत अवस्था के संकेत है। ज्यादातर ऐसे धब्बे प्लेटलेट्स की कमी को दर्शाता है। यह रक्त कैंसर की शुरूआत में भी हो सकता है।

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जब अस्थि मज्जा कोशिकाओं की आनुवंशिक सामग्री में परिवर्तन होते हैं, तब रक्त कैंसर या ल्यूकेमिया होता है। हालांकि इस बदलाव की वजह के बारे में किसी को ज्यादा पता नहीं है।

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ल्यूकेमिया के विकास के जोखिम कारको में निम्न शामिल है: 

  1. बढ़ती उम्र

  2. कैंसर का पारिवारिक इतिहास

  3. पहले मरीज को खुद कैंसर रह चुका हो

  4. हानिकारक केमीकल्स का लंबा संपर्क

  5. धूम्रपान करना

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ल्यूकेमिया से जुड़े संभावित अनुवांशिक कारक में कुछ आनुवंशिक विकार हो सकते है, जैसे कि: 

  1. न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस

  2. क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम

  3. श्वाचमैन-डायमंड सिंड्रोम

  4. डाउन सिंड्रोम

इनकी वजह से व्यक्ति को रक्त कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती हैं।

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ल्यूकेमिया में सामान्य रक्त कोशिकाओं की संख्या कम हो जाती है। इसी वजह से वे अपना काम सही से नहीं कर पाती है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के ऊपर बुरा प्रभाव पड़ता है।

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अस्थि मज्जा में आसामान्य रक्त कोशिका अनियंत्रित होकर गुणा होने लगती है। यह बढ़ती हुई कोशिका, सामान्य कोशिकाओं की जगह ले लेती है। इस वजह से सामान्य कोशिका अपना काम नहीं कर पाती है।

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ल्यूकेमिया का निदान के लिए लक्षणो को नजर में रखते हुए निम्न बिन्दुओ का पालन किया जाता हैं: 

  1. सबसे पहले मरीज का शारीरिक परीक्षण किया जाता है। 

  2. डॉक्टर मरीज का पूरा चिकित्सा इतिहास लेकर निम्न टेस्ट का आदेश दे सकते हैं: 

    1. रक्त परीक्षण, जैसे संपूर्ण रक्त गणना (सीबीसी)

    2. अस्थि मज्जा परीक्षण 

इन्ही परीक्षणों का इस्तेमाल करके, डॉक्टर ल्यूकेमिया का निदान करते हैं।

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ल्यूकेमिया रैश शुरूआत में एक दाने जैसा होता है, उसके बाद त्वचा में छोटे लाल धब्बे यानि की पेटीकिया बने लगते हैं। ये दाने बैंगनी/काले त्वचा के पैच जैसा दिखने लगता है।

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ल्यूकेमिया लाल धब्बे की शुरुआत का मतलब होता है, की शरीर में प्लेटलेट्स की कमी हो गई है। ल्यूकेमिया में असामान्य रक्त कोशिका की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, और सामान्य कोशिका जैसे प्लेटलेट्स की मात्रा कम हो जाती है।

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एक्स-रे या एमआरआई जैसे इमेजिंग परीक्षणों के माध्यम से ल्यूकेमिया के बारे में विशेष जानकारी मिलती है। इससे पता चलता है की ल्यूकेमिया फैल गया है या नहीं। इसका मतलब, अगर बीमारी बढ़ गयी है तो, कैंसर ने किस अंग या उत्तक को प्रभावित किया है।

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हाँ, नियमित शारीरिक जांच के दौरान ल्यूकेमिया का पता लगाया जा सकता है। जांच के दौरान त्वचा के ऊपर चकत्तो और धब्बों को, लिम्फ नोड्स की सूजन और गाँठ का मिलना ल्यूकेमिया का संकेत दे सकता है।

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हाँ, रक्त परीक्षण द्वारा ल्यूकेमिया का शुरुआती चरणों में निदान किया जा सकता है। रक्त के अंदर असामान्य रक्त कोशिकाओं की उपस्थिति ल्यूकेमिया का संकेत दे सकता है।

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हाँ, बिल्कुल ल्यूकेमिया से एनीमिया हो सकता है। ल्यूकेमिया में असामान्य रक्त कोशिका की मात्रा बहुत बढ़ जाती है, और सामान्य कोशिका जैसे लाल रक्त कोशिकाओं की मात्रा कम हो जाती है, जिसकी वजह से एनीमिया हो जाता है।

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ल्यूकेमिया के चार मुख्य प्रकार होते हैं, जो इस बात पर निर्भर करते हैं की कैंसर कितनी जल्दी बढ़ रहा है और कौन सी रक्त की विकासशील कोशिका प्रभावित है। इन प्रकार के नाम हैं:

  1. तीव्र लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (एएलएल)

  2. तीव्र माइलॉयड ल्यूकेमिया (एएमएल) 

  3. क्रोनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल)

  4. क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया (सीएमएल)

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तीव्र ल्यूकेमिया में रक्त कोशिकाएं बहुत तेजी से गुणा होकर बढ़ जाती हैं। इसमे बीमारी भी जल्दी ही विकसित होती है। यदि इसका इलाज न किया जाए तो यह जानलेवा भी साबित हो सकता है।

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जी हाँ, ल्यूकेमिया अनुवांशिक होता है। अगर परिवार में किसी को ल्यूकेमिया हो चुका है, जैसे माता, पिता, भाई या बहन आदि तो इसके होने की संभावना बढ़ जाती है।

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हाँ ल्यूकेमिया का इलाज संभव है जिसमे निम्न द्वारा इलाज किया जा सकता है

  1. कीमोथेरपी

  2. विकिरण चिकित्सा

  3. स्टेम सेल प्रत्यारोपण के साथ कीमोथेरेपी

  4. लक्षित थेरपी

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रक्त कैंसर के चिकित्सा में केमोथेरेपी का उपचार के लिए उपयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। कीमोथेरेपी ल्यूकेमिया की कोशिकाओं को मारने या उन्हें बढ़ने से रोकने के लिए रसायनों का उपयोग करता है। इन दवाइयों को गोली या इंजेक्शन के रूप में प्राप्त किया जाता है।

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ल्यूकेमिया के उपचार के लिए उपयोग की जाने वाली विशिष्ट कीमोथेरेपी दवाएं इस प्रकार है: 

  1. एंटीमेटाबोलाइट्स - क्लैड्रिबाइन, फ्लुडाराबाइन, पेंटोस्टैटिन

  2. अल्काइलेटिंग एजेंट - बेंडामुस्टीन हाइड्रोक्लोराइड, क्लोरैम्बुसिल

  3. डीएनए-हानिकारक एजेंट - साइक्लोफॉस्फ़ामाइड

  4. कॉर्टिकोसटिरोइड्स

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लक्षित उपचार ल्यूकेमिया कोशिकाओं को मारकर अपना प्रभाव दिखाता है। ये थेरपी कैंसर कोशिकाओं की रक्त आपूर्ति में कटौती कर सकते हैं। लक्षित थेरेपी से सामान्य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने की संभावना बहुत कम होती है, यह सिर्फ कैंसर कोशिकाओं को ही प्रभावित करती है।

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रेडिएशन थेरेपी मजबूत ऊर्जा किरणों या एक्स-रे का उपयोग करके ल्यूकेमिया कोशिकाओं को मारता है या उन्हें बढ़ने से रोकता है। इस उपचार में एक मशीन शरीर में ठीक उन्हीं स्थानों पर विकिरण निर्देशित करती है जहां कैंसर कोशिकाएं होती हैं। इस तरह यह अपना प्रभाव स्तापित करती है।

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इस उपचार में कीमोथेरेपी और/या विकिरण थेरेपी द्वारा कैंसरग्रस्त रक्त बनाने वाली कोशिकाओं को मार दिया जाता है। इसके बाद इन्हे नई, स्वस्थ हेमेटोपोएटिक कोशिकाओं यानि स्टेम सेल्स से बदला जाता है। ये नई स्वस्थ कोशिकाएं धीरे-धीरे गुणा होकर बढ़ जाती हैं, और फिर नई अस्थि मज्जा और रक्त कोशिका बनती हैं।

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जीवन शैली में निम्नलिखित बदलाव लाकर ल्यूकेमिया को प्रबंधित करने में मदद मिलती है: 

  1. पौष्टिक आहार का सेवन

  2. नियमित व्यायाम

  3. अच्छी नींद

  4. तरल पदार्थ का सेवन

  5. इसके अलावा धूम्रपान और शराब के सेवन से बचें।

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ल्यूकेमिया रोगियों के लिए कुछ निम्नलिखित आहार संबंधी सिफ़ारिशे हैं: 

  1. मौसमी फल और सब्जियाँ

  2. साबुत अनाज

  3. कम वसा वाली डेयरी और उसके उत्पादन

  4. प्रोटीन

  5. जैतून का तेल आदि 

इन स्वास्थ्यवर्धक आहार का सेवन करने से शरीर मजबूत होता है।

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रक्त कैंसर के इलाज में आपातकालीन या संशोधक चिकित्सा की जरूरत पद सकती है। ऐसा खासकर तब होता है जब किसी ल्यूकेमिया संबंधित जटिलताओ का सामना करना पड़ता है, जैसे 

  1. शरीर के अंदर रक्तसत्राव होना

  2. गंभीर संक्रमण का होना।

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रक्त कैंसर के उपचार के विकल्पों के साइड इफेक्ट्स में प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर बनाता है, जिसकी वजह से संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। शरीर के अंदर रक्तसत्राव होना जैसे फेफड़ों, मस्तिसक मेंऔर पेट मेंब्लीडिंग होना। इसके अलावा बांझपन की समस्या भी हो सकती है।

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रक्त कैंसर के उपचार में दूसरे विकल्प या सहायक चिकित्साओं के ऊपर ज्यादा शोध नहीं हुआ है। जीवन शैली मेंबदलाव और आहार के साथ उपचार मेंमदद करता है।

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सन्दर्भ

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Last Updated on: 9 November 2023

Disclaimer: यहाँ दी गई जानकारी केवल शैक्षणिक और सीखने के उद्देश्य से है। यह हर चिकित्सा स्थिति को कवर नहीं करती है और आपकी व्यक्तिगत स्थिति का विकल्प नहीं हो सकती है। यह जानकारी चिकित्सा सलाह नहीं है, किसी भी स्थिति का निदान करने के लिए नहीं है, और इसे किसी प्रमाणित चिकित्सा या स्वास्थ्य सेवा पेशेवर से बात करने का विकल्प नहीं माना जाना चाहिए।

समीक्षक

Dr. Aman Priya Khanna

Dr. Aman Priya Khanna

MBBS, DNB General Surgery, Fellowship in Minimal Access Surgery, FIAGES

12 Years Experience

Dr Aman Priya Khanna is a well-known General Surgeon, Proctologist and Bariatric Surgeon currently associated with HealthFort Clinic, Health First Multispecialty Clinic in Delhi. He has 12 years of experience in General Surgery and worke...View More

लेखक

Kirti V

Kirti V

B.A. English | M.A. English ( Magadh University, Bihar)

3 Years Experience

With 3 years of full-time experience as an SEO content writer, she has honed her skills to deliver captivating and persuasive writing that leaves a lasting impact. She is always ready to learn new things and expand...View More

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