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आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि ब्लैक फंगस के कवक हमारे वातावरण में ही होते हैं। लेकिन आमतौर पर देखा जाए तो यह बहुत कम लोगों को प्रभावित करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में हर १० लाख में से १४४ लोग ब्लैक फंगस से प्रभावित होते हैं।
यह एक ऐसा रोग है जो तेजी से फैलता है और आंख तथा मस्तिष्क को खराब करता है। ऐसे में इसके लक्षणों और उपचार के बारे में हर व्यक्ति को पता होना चाहिए।
अगर आप ब्लैक फंगस के बारे में सटीक और सही जानकारी चाहते हैं तो पूरा पढ़े।
रोग का नाम | ब्लैक फंगस |
वैकल्पिक नाम | म्यूकोर्मिकोसिस |
लक्षण | दर्द, नाक बंद होना, सूजन और सुन्नता, एकतरफा सिर दर्द, डायरिया, उल्टी और मल में खून आना |
कारण | कवक जैसे रायजोपस एरिजस, रायजोम्यूकर पसिलस, अपोफायसोमायसेस एलिगंस |
निदान | इमेजिंग टेस्ट जैसे इंडोस्कोपी, एमआरआइ, नॉन कंट्रास्ट कंप्यूटेड टोमोग्राफी, सूक्ष्मजैविक परीक्षण |
इलाज कौन करता है | कान, नाक, गला विशेषज्ञ (ईएनटी डॉक्टर) |
उपचार के विकल्प | एंटीफंगल दवाइयां |
ब्लैक फंगस एक अवसरवादी कवक संक्रमण है। यह ऐसे लोगों को संक्रमित करता है जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है। लेकिन ये संक्रामक रोग नहीं है यानी एक - दूसरे के संपर्क में आने से नहीं फैलता है।
इसकी वजह से रोगी की संक्रमित त्वचा काली पड़ जाती है।
म्यूकरमाइसिटिस समूह के कवक हमारे वातावरण में ही उपस्थित होते हैं। ये मिट्टी, पुरानी लकड़ी, खराब फल और सब्जियों पर मौजूद होते हैं।
जब भी कोई कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाला व्यक्ति इनके संपर्क में आता है तो यह प्रायः नाक के रास्ते साइनस में चले जाते हैं।
इसके बाद वह अपनी संख्या को बढ़ाना शुरू करते हैं और रोगी के साइनस, आंख फेफड़े और मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं।
नाक के अलावा यह संक्रमण पेट, ऑपरेशन स्थल और कैंसर प्रभावित जगह पर भी शुरु हो सकता है।
इस संक्रमण की शुरुआत कई जगहों से हो सकती है जैसे नाक से, पेट से, ऑपरेशन की त्वचा से, कटी या जली त्वचा से। इसी आधार पर इसे ५ प्रकारों में बांट दिया गया है जो निम्न हैं:
राइनोसेरिब्रल म्यूकोर्मिकोसिस- इस प्रकार का कवक संक्रमण नाक से होते हुए मस्तिष्क तक फैल सकता है। यह अक्सर उन लोगों में देखा जाता है जिन्हें डायबिटीज होता है।
इसके अलावा किडनी प्रत्यारोपण के मरीजों में भी इसे देखा जा सकता है।
पल्मोनरी म्यूकोर्मिकोसिस- यह उन लोगों में होता है जिन्हें कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होती है।
इसके अलावा अंग प्रत्यारोपण के मामलों में भी पल्मोनरी म्यूकोर्मिकोसिस देखा जाता है।
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल म्यूकोर्मिकोसिस- यह पेट में होने वाला ब्लैक फंगस है। इसे प्रायः बच्चों में अधिक देखा जाता है।
क्यूटेनियस म्यूकोर्मिकोसिस- क्यूटेनियस म्यूकोर्मिकोसिस त्वचा के जलने, कटने, खरोंच या सर्जरी होने के बाद होता है।
डिसेमिनेटेड म्यूकोर्मिकोसिस- जब रक्त के माध्यम से ब्लैक फंगस रोग शरीर के अंगों में पहुंचता है तो इसे डिसेमिनेटेड म्यूकोर्मिकोसिस कहते हैं।
यह प्लीहा, हृदय और मस्तिष्क को संक्रमित कर सकता है।
जब कवक संक्रमण शुरू होता है तो सबसे पहले रोगी को नाक से जुड़ी समस्याएं होती हैं जैसे छींक आना, नाक से पानी आना, साइनस में दर्द इत्यादि।
लेकिन समय के साथ इसके लक्षण भी गंभीर हो जाते हैं जैसे आंखें खराब हो सकती हैं। इसी तरह ब्लैक फंगस के कुछ मुख्य लक्षण निम्न हैं:
दर्द- कवक संक्रमण के कारण नाक की मांसपेशी, पेट, दांत, आँख, इत्यादि जगहों पर दर्द होता है।
नाक बंद होना- प्रतिरक्षा प्रणाली कवक संक्रमण से बचाने काम करती है।
इस प्रक्रिया में बलगम भी बनता है जिस वजह से नाक बंद हो जाता है।
सूजन और सुन्नता- रोगी को संक्रमित क्षेत्र में सूजन और सुन्नता महसूस हो सकती है।
एकतरफा सिर दर्द- अगर मरीज के सिर में एक तरफ दर्द हो तो यह ब्लैक फंगस का संकेत हो सकता है।
डायरिया- जब संक्रमण पेट में होता है तो इसके कारण डायरिया हो सकता है।
उल्टी और मल में खून आना- पेट में ब्लैक फंगस रोग के होने से रोगी को उल्टी हो सकती है। उल्टी के साथ खून भी आता है।
इसके अलावा मरीज के मल में भी खून देखा जा सकता है।
पलक हानि- आंखों की पलकों में सूजन और संक्रमण बढ़ने पर यह खराब भी हो सकती हैं।
धुंधली दृष्टि और अंधापन- जब कवक संक्रमण नाक से ऊपर पहुंचता है तो आंखों को प्रभावित कर सकता है।
इस वजह से व्यक्ति की आंखें खराब हो जाती हैं।
बुखार- संक्रमण से बचाने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर के तापमान को बढ़ा देती है।
हालांकि बुखार होने से ब्लैक फंगस पर असर नहींं पड़ता है क्योंकि यह इतने तापमान पर भी जिंदा रह सकता है।
सांस लेने में तकलीफ- यह संक्रमण प्रायः नाक से होता है इसलिए यह स्वषन प्रणाली पर भी असर करता है।
इसलिए मरीज को सांस लेने में तकलीफ होती है।
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ब्लैक फंगस रोग का एकमात्र कारण म्यूकरमाइसिटिस समूह के कवक होते हैं। जब ये कवक किसी तरह मरीज के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं तो संक्रमण शुरू हो सकता है।
ब्लैक फंगस के मुख्य कारण निम्न कवक होते हैं:
रायजोपस एरिजस- यहम्यूकोरेसी परिवार का कवक है। इसकी वजह से म्यूकोर्मिकोसिस होना बहुत सामान्य है।
रायजोम्यूकर पसिलस- यह रायजोम्यूकर परिवार का कवक है। आमतौर पर यह गर्म वातावरण में, खाद के ढेर पर पाया जाता है।
इसके कारण भी ब्लैक फंगस होने की संभावना होती है।
अपोफायसोमायसेस एलिगंस- यह कवक आमतौर पर प्रदूषित मिट्टी और खराब हो चुकी सब्जियों पर देखा जाता है।
सामान्यतः यह कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले व्यक्तियों को संक्रमित कर सकता है।
म्यूकरेसेमोसस- यदि घर की सफाई नहीं होती है तो यह फर्श पर भी देखा जा सकता है।
दुर्लभ मामलों में इसकी वजह से भी ब्लैक फंगस होता है।
लिचथीमिया कोरिंबीफेरा- यह कवक ५०° सेल्सियस तापमान पर भी आसानी से रह सकता है।
इसकी वजह से म्यूकोर्मिकोसिस के लगभग ५% मामले देखे जाते हैं। हालांकि यह पूरी तरह से प्रमाणित नहींं है।
वैसे देखा जाय तो अगर व्यक्ति को प्रतिरक्षा प्रणाली से जुड़ा कोई विकार हो तो उसे ब्लैक फंगस का जोखिम रहता है। लेकिन इसके अलावा भी कुछ रोग और दवाइयां हैं जो इस संक्रमण को आमंत्रित कर सकते हैं।
ब्लैक फंगस के जोखिम कारकों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:
परिवर्तनीय- कुछ ऐसे भी जोखिम कारक हैं जिन्हें नियंत्रित किया जा सकता है। ऐसा करने से ब्लैक फंगस रोग होने की संभावना कम रहती है। कुछ परिवर्तनीय जोखिम कारक निम्न हैं-
डायबिटीज- लगभग २७ से ५२% म्यूकोर्मिकोसिस मामले डायबिटीज की वजह से होते हैं। डायबिटीज के मरीजों में राइनोसेरिब्रल म्यूकोर्मिकोसिस होने का खतरा अधिक रहता है।
ह्यूमन इम्यूनो डिफिशिएंसी वायरस- यह एक वायरस है जो प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है। इस वजह से ब्लैक फंगस रोग आसानी से फैल जाता है।
वोरीकोनाजोल- यह एक दवा है जिसे गंभीर कवक संक्रमण को ठीक करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
इस दवा के अत्यधिक इस्तेमाल से कुछ लोगों में ब्लैक फंगस के मामले देखने को मिले थे।
स्टेरॉइड थेरेपी- अध्ययन में देखा गया है कि स्टेरॉइड के इस्तेमाल से भी ब्लैक फंगस होता है।
वायरल निमोनिया में इस्तेमाल की जाने वाली स्टेरॉइड से ६६.७% मरीजों को ब्लैक फंगस का खतरा रहता है।
आयरन की अधिकता- अध्ययनों से पता चलता है कि शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ने से म्यूकोर्मिकोसिस हो सकता है।
इम्यूनोसप्रेसिव थेरेपी- ऐसी दवाइयां जो प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करती हैं, उनसे भी ब्लैक फंगस का जोखिम रहता है।
क्रॉनिक किडनी रोग- अगर कोई व्यक्ति लंबे समय से किडनी की बीमारी से पीड़ित है तो यह कवक संक्रमण उसमे भी हो सकता है।
पेरिटोनियल डायलिसिस- हेमोडायलिसिस एक प्रक्रिया होती है जिसकी वजह से आयरन की मात्रा बढ़ जाती है।
ऐसी स्थिति में मरीज को ब्लैक फंगस होने का जोखिम बढ़ जाता है।
अंग प्रत्यारोपण- यह उन लोगों में भी देखा जा सकता है जिन लोगों में किडनी और हृदय जैसे ठोस अंग प्रत्यारोपित किए जाते हैं।
पल्मोनरी ट्यूबरक्यूलोसिस- कुछ मामलों में ट्यूबरक्यूलोसिस के मरीज को ब्लैक फंगस होने का जोखिम रहता है।
अपरिवर्तनीय- अगर मरीज को कुछ जन्मजात समस्याएं होती हैं तो इन्हें नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
ब्लैक फंगस के कुछ अपरिवर्तनीय जोखिम कारक इस प्रकार हैं:
प्रतिरक्षा प्रणाली में विकार- कुछ लोगों को जन्म से ही प्रतिरक्षा प्रणाली में विकार होता है।
इस वजह से उन्हें अन्य संक्रमण के साथ ब्लैक फंगस भी हो सकता है।
हेमेटोलॉजिक मलिग्नेंसी विथ न्यूट्रोपेनिया- ऐसे लोग जिन्हें रक्त कैंसर या रक्त बनाने वाले अंगों में कैंसर होता है, उन्हें भी म्यूकोर्मिकोसिस होने का का खतरा रहता है।
यह खतरा और बढ़ जाता है जब मरीज में सफेद रक्त कणिकाओं की कमी हो जाती है।
ब्लैक फंगस की रोकथाम में कुछ कदम उठाए जा सकते हैं। इस कवक के बीजाणु वातावरण में होते हैं इसलिए इससे बचना मुश्किल होता है।
हालांकि जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है वो इससे बचने के लिए निम्न तरीके अपना सकते हैं:
मास्क लगाएं- प्रदूषित या गंदी जगहों पर मास्क का प्रयोग करें।
टीके लगवाएं- कोविड १९ के टीके अवश्य लगवाएं ताकि कोरोना वायरस के प्रति आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली बनी रहे।
प्रदूषित जगहों से दूर रहें- जिन लोगों को एड्स या प्रतिरक्षा प्रणाली विकार है, उन्हें प्रदूषित जगहों की धूल - मिट्टी से दूर रहना चाहिए।
यद्यपि लक्षणों के आधार पर डॉक्टर इसका इलाज शुरू कर सकते हैं लेकिन निदान का होना आवश्यक होता है। इस प्रक्रिया से फफूंद की पहचान होती है जिसके अनुसार इलाज को सही दिशा में बढ़ाया जाता है।
ब्लैक फंगस के निदान में मुख्य रूप से निम्न तरीकों का इस्तेमाल किया है:
इमेजिंग टेस्ट- इस जांच में फेफड़े, साइनस और अन्य अंगों का चित्र देखा जाता है। इससे ब्लैक फंगस से प्रभावित स्थान को समझने में मदद मिलती है।
इमेजिंग टेस्ट में मुख्य रूप से ३ तकनीकों का इस्तेमाल होता है जो निम्न है:
इंडोस्कोपी- यह एक तरह का यंत्र होता है जिसमे कैमरा लगा होता है। इससे शरीर के भीतरी अंगों में हो रहे कवक संक्रमण का पता लगता है।
मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआइ)- यह एक गैर सर्जिकल इमेजिंग टेस्ट है। इस तकनीक से शरीर के भीतरी भागों का तीन आयामी चित्र देखा जा सकता है।
इससे ब्लैक फंगस रोग का पता लगाने में मदद मिलती है।
नॉन कंट्रास्ट कंप्यूटेड टोमोग्राफी (एनसीसीटी)- यह एक तरह का विशेष एक्स-रे होता है जिससे फेफड़ों और मुलायम ऊतकों का चित्र देखा जाता है।
सूक्ष्मजैविक परीक्षण- ब्लैक फंगस के निदान में सूक्ष्मजैविक परीक्षण की अहम भूमिका होती है। इससे कवक के पहचान की पुष्टि होती है।
इस परीक्षण में मरीज के संक्रमित क्षेत्र का सैंपल लिया जाता है। इसके बाद उचित तकनीकों की मदद से कवक का पता लगाया जाता है।
ब्लैक फंगस से पीड़ित रोगी को कई तरह के लक्षण दिखते हैं जिसमे से कुछ गंभीर होते हैं। ऐसे में डॉक्टर से मिलना आवश्यक होता है।
अगर आप डॉक्टर से अप्वाइंटमेंट लेते हैं तो परामर्श की तैयारी इस प्रकार कर सकते हैं:
आपको क्या करना चाहिए- डॉक्टर के पास जाने से पहले अपने घर पर निम्न चीजों की तैयारी कर लें:
मेडिकल इतिहास- सबसे पहले अपने स्वास्थ्य से जुड़े रिपोर्ट को इकट्ठा करें। इसे एक फाइल में रखें और डॉक्टर को दिखाएं।
अगर आप पहले कभी कोरोना से संक्रमित हुए हैं तो डॉक्टर को जरूर बताएं।
लक्षणों की सूची- पिछले कुछ दिनों से लेकर आज तक जो भी लक्षण महसूस हो रहे हैं, उन्हें नोट कर लें।
इस्तेमाल में ली जा रही दवा- अगर वर्तमान समय में कोई दवा इस्तेमाल कर रहे हैं तो सभी दवा को साथ ले जाएं।
डॉक्टर से क्या उम्मीद रखें- डॉक्टर अपने अनुभव के आधार पर इलाज की शुरुआत कर सकते हैं। लेकिन आप डॉक्टर से निम्न चीजों की उम्मीद कर सकते हैं:
शारीरिक जांच- सबसे पहले डॉक्टर आपके लक्षणों को जांचते हैं। आपके नाक, मुंह, पेट इत्यादि से जुड़े लक्षण के बारे में पूछते हैं।
कवक परीक्षण के आदेश- अगर डॉक्टर को ब्लैक फंगस का अनुमान होता है तो वह कई तरह के जांच करने का आदेश देते हैं।
सीटी स्कैन, एमआरआइ, लैब टेस्ट, इत्यादि करने के लिए कहते हैं।
उपचार- अगर निदान में ब्लैक फंगस का मामला पाया जाता है तो उसी अनुसार उपचार शुरू करते हैं।
डॉक्टर से क्या प्रश्न पूछें- यदि मरीज को ब्लैक फंगस के बारे में पूरी जानकारी होती है तो वह मिथकों से बच सकता है।
इसलिए डॉक्टर से निम्न सवाल करना चाहिए:
ब्लैक फंगस क्या है?
ब्लैक फंगस कैसे होता है?
क्या यह कोविड - १९ के मरीज में होता है?
ब्लैक फंगस का इलाज क्या है?
ब्लैक फंगस को कैसे पहचाना जा सकता है?
म्यूकोर्मिकोसिस किन लोगों को होता है?
इसके मुख्य लक्षण क्या हैं?
क्या ब्लैक फंगस एक जानलेवा बीमारी है?
निदान के आधार पर डॉक्टर इसका इलाज शुरू करते हैं। यह रोग कुछ मुख्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है जैसे आंख, कान, फेफड़े, इत्यादि।
ऐसे में डॉक्टर इसका इलाज निम्न प्रक्रियाओं द्वारा करते हैं।
ब्लैक फंगस केलक्षणों को कम करने के लिए नॉन सर्जिकल तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें आयुर्वेदिक और होमियोपैथिक उपचार भी शामिल है।
कुछ मुख्य गैर सर्जिकल उपचार इस प्रकार हैं:
घरेलू उपाय- हालांकि ब्लैक फंगस के मामले में तत्काल उपचार की जरूरत होती है लेकिन घरेलू उपायों से रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली में बढ़ोत्तरी होती है।
तो इस तरह घरेलू उपाय ब्लैक फंगस रोग को बढ़ने से रोकते हैं। कुछ असरदार घरेलू उपाय निम्न हैं-
अदरक- इसमें एंटीमाइक्रोबियल और एंटी - इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं। इसके अलावा अदरक में ऐसे तत्व होते हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाते हैं।
हल्दी- इसमें एक करक्यूमिन नाम का पदार्थ पाया जाता है।
इसकी वजह से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार होता है और कवक संक्रमण से लड़ने में मदद करता है।
ग्रीन टी- इसमें कैटेचिन नाम का एक पदार्थ होता है जो एंटीफंगल होता है।
इसके अलावा ग्रीन टी में एंटीवायरल गुण भी देखे गए हैं जिससे वायरल बुखार नहीं होते हैं।
खट्टे फल- खट्टे फलों में विटामिन सी पाया जाता है जो इम्यूनिटी को बढ़ाता है। इससे शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती है।
आयुर्वेदिक उपचार- अध्ययन से पता चलता है कि ब्लैक फंगस के उपचार में आयुर्वेद की मदद लेना फायदेमंद है। इससे मरीज के लक्षणों में कमी देखी गई और बीमारी को नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है।
ब्लैक फंगस रोग के लिए मुख्य रूप से निम्न औषधियां इस्तेमाल की जाती हैं:
गंधक रसायन- यह औषधि मुख्य रूप से कवक के संक्रमण को फैलने से रोकती है।
कैसुरा गुग्गुल- इस औषधि में एंटी-इम्फ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह संक्रमण के कारण हुए सूजन को कम करने में मदद करता है।
व्योशदि वटी- यह लक्षणों को कम करने में मददगार होता है। जैसे नाक बहना, छींक आना इत्यादि को कम करता है।
निशामल्कि- इससेे रक्त शर्करा को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
इसलिए अगर डायबिटीज के मरीज को ब्लैक फंगस होता है तो यह औषधि फायदेमंद होती है।
त्रिफला- यह तीन औषधियों का मिश्रण होता है। इसे मुख्य रूप से पेट से जुड़ी बीमारियों और असहजताओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
नोट- इन औषधियों के इस्तेमाल से पहले किसी आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
होम्योपैथिक उपचार- ब्लैक फंगस के इलाज में होम्योपैथिक उपचार सहायक हो सकता है। लेकिन यह ब्लैक फंगस के लक्षणों के आधार पर काम करता है।
इसलिए इसमें अधिक शोध की आवश्यकता है। लक्षणों को कम करने के लिए इसमें निम्न दवाइयां इस्तेमाल की जाती हैं:
आर्सेनिक एल्बम- यह दवा मुख्य रूप से दर्द को ठीक करताहै।
ब्लैक फंगस रोग में चेहरे और सिर में दर्द होता है जिसके लिए इस दवा का इस्तेमाल होता है।
काली बिक्रोमाइकम- इसका इस्तेमाल ब्लैक फंगस के लक्षणों से आराम पाने के लिए किया जाता है जैसे नाक से पानी आना, धुंधली दृष्टि, इत्यादि।
फॉस्फोरस- यह दवा पेट के दर्द से आराम पाने में सहायक होती है।
ब्रायोनिया- यह दवा फेफड़े में जमा बलगम को सूखा होने से रोकता है और सूखी खासी से बचाता है।
नोट- इन दवाइयों के इस्तेमाल से पहले होम्योपैथिक डॉक्टर का परामर्श अवश्य लें।
एलोपैथिक दवाइयां- ब्लैक फंगस को ठीक करने के लिए डॉक्टर के निर्देश पर रोगी को एंटीफंगल दवाइयां दी जाती हैं।
कुछ मुख्य एंटीफंगल दवाएं इस प्रकार हैं-
एम्फोटेरिसिन बी- यह दवा पाउडर के रूप में होती है। डॉक्टर इसका घोल बनाते हैं और इंजेक्शन द्वारा नसों में लगाते हैं।
पोसाकोनाजोल- यह दवा टैबलेट के रूप में होती है। इसे पूरा - पूरा निगलना होता है; तोड़कर या चबाकर इस्तेमाल नहीं करना होता है।
रोगी को पहले दिन २ गोलियां दी जाती हैं और इसके बाद रोज सिर्फ १ गोली खानी होती है।
आइसावुकोनाजोल- यह कई तरह के यीस्ट, मोल्ड और कवक संक्रमण को ठीक करने के लिए इस्तेमाल की जाती है।
ब्लैक फंगस का सर्जिकल उपचार
ब्लैक फंगस में नॉन सर्जिकल इलाज के साथ - साथ सर्जरी की भी जरूरत पड़ती है। इसके लिए निम्न तरह की सर्जरी की जाती है:
सर्जिकल क्षतशोधन- इस प्रक्रिया में ऐसे ऊतकों को काटकर निकाल दिया जाता है जिसमे संक्रमण फैल चुका होता है।
जैसे - जैसे समय बीतता है ब्लैक फंगस रोगी की जटिलताएं बढ़ती जाती हैं। यह कई अंगों को प्रभावित करने के साथ - साथ हड्डियों में भी फैल सकता है।
ब्लैक फंगस रोग में कुछ मुख्य जटिलताएं हो सकती हैं जो निम्न हैं:
कैवर्नस साइनस थ्रोंबोसिस- कैवर्नस साइनस आंख के पीछे और मस्तिष्क के अंदर मौजूद खाली स्थान होते हैं।
ब्लैक फंगस रोग के कारण इसमें खून के थक्के बन जाते हैं।
कैवर्नस साइनस में खून के थक्के बनना एक गंभीर और जानलेवा जटिलता है।
प्रसारित संक्रमण- ब्लैक फंगस का संक्रमण लगातार बढ़ता रहता है जिससे शरीर के कई अंग प्रभावित होते हैं।
इन अंगों के प्रभावित होने से रोगी की जटिलता बढ़ जाती है।
पेरीऑर्बिटल डिस्ट्रक्शन- यह कवक आंखों की कोमल ऊतकों को संक्रमित कर सकता है। अंततः इसकी वजह से आंखें खराब हो जाती हैं और रोगी अंधेपन का शिकार हो जाता है।
ओस्टियोमायएलाइटिस- ब्लैक फंगस रोग की वजह से संक्रमण हड्डियों तक में फैल सकता है जिसे ओस्टियोमायएलाइटिस कहते हैं। इस वजह से हड्डियों में दर्द रहता है।
ब्लैक फंगस के मामले में सही समय पर डॉक्टर से मिलना बहुत ही जरूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि संक्रमण अधिक फैल जाने से मरीज की जान जोखिम में पड़ सकती है।
अगर मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर है या प्रतिरक्षा प्रणाली से जुड़ा कोई विकार है तो ब्लैक फंगस होने का जोखिम बढ़ जाता है।
इसलिए अगर निम्न लक्षण दिखाई देते हैं तो तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए:
बुखार- अगर व्यक्ति को अन्य लक्षणों के साथ तेज बुखार होता है।
सिर दर्द- अगर सिर में तेज दर्द हो; खासकर सिर के एक तरफ दर्द हो।
साइनस में दर्द- नाक की मांसपेशियों में दर्द होने पर ब्लैक फंगस की आशंका हो सकती है।
आंख में सूजन- यह ब्लैक फंगस का एक अहम लक्षण है। अगर आंखों के आस - पास सूजन और दृष्टि से जुड़ी समस्या हो रही है तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
ब्लैक फंगस एक गंभीर बीमारी है और नजरंदाज करने पर तेजी से फैल सकता है। इसलिए अगर मरीज को सही समय पर इलाज नहीं मिला तो कई तरह के खतरे हो सकते हैं जो निम्न हैं:
संक्रमण का फैलाव- इलाज न होने पर ब्लैक फंगस तेजी से फैलता है। धीरे - धीरे यह शरीर के अन्य हिस्सों में फैलने लगता है।
ऐसे में मरीज को दर्द और कई तरह के गंभीर लक्षणों का सामना करना पड़ता है।
रक्त संक्रमण- जब ब्लैक फंगस खून में फैल जाता है तो यह शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित करता है।
इससे किडनी, लिवर, हृदय और मस्तिष्क में भी संक्रमण फैल जाता है।
अंगों की क्षति- जब म्यूकोर्मिकोसिस फैलता है तो यह अंगों को क्षति पहुंचाता है। इस वजह से अंग अपना कार्य नहीं कर पाते हैं।
समय के साथ अंग पूरी तरह काम करना बंद कर देते हैं।
प्रायः देखा जाए तो कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले व्यक्तियों को म्यूकोर्मिकोसिस होने का खतरा रहता है। इसलिए उन्हें विशेषतौर पर ध्यान रखना चाहिए कि उनके आहार में फफूंद की मात्रा न हो।
ब्लैक फंगस के मरीज को ऐसे आहार लेने चाहिए जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं।
ऐसा करने से संक्रमण की गति में कमी आती है। भोजन को दो भागों में बांटा जा सकता है जो निम्न है:
क्या खाएं- कुछ ऐसे आहार हैं जिन्हें अपने आहार में शामिल करने से प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार होता है। इस तरह संक्रमण की गति कम की जा सकती है।
इसलिए अपने दैनिक भोजन में निम्न चीजों को शामिल करें-
ताजा चीजें खाएं- ताजे भोजन में फफूंद की मात्रा लगभग नहीं होती है। इसलिए फल, सब्जियों और पके हुए भोजन को खराब होने से पहले खा लें।
प्रोटीनयुक्त आहार- उचित मात्रा में प्रोटीन लेने से प्रतिरक्षा प्रणाली पर अच्छा असर पड़ता है।
इसके लिए दूध, अंडे और मछली का सेवन किया जा सकता है।
एंटी - ऑक्सीडेंट से भरपूर भोजन- ऐसे फल का सेवन करें जिनमे एंटी - ऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होता है जैसे किवी, संतरा, अनार, इत्यादि।
ओमेगा थ्री फैटी एसिड वाले आहार- आमतौर पर मछली में ओमेगा थ्री फैटी एसिड अच्छी मात्रा में होता है।
इसके अलावा अखरोट, बादाम, इत्यादि में भी पर्याप्त होता है।
क्या न खाएं- ऐसे भोज्य पदार्थ जो आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करते हैं, उनका सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
खासकर ब्लैक फंगस के मरीजों को निम्न चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए:
डिब्बाबंद चीजें- ऐसा देखा गया है कि डिब्बाबंद चीजों में १ से ५% तक फफूंद की मात्रा हो सकती है जैसे जेली, सॉस, चिप्स, इत्यादि।
कई दिनों से रखे हुए भोज्य पदार्थ- जब कोई भी फल या भोजन लंबे समय तक पड़ा राहत है तो उसमे फफूंद लग सकते हैं।
इसलिए कई दिनों से रखे हुए आहार का सेवन न करें।
फर्मेंटेड पदार्थ- कुछ चीजें कवक और बैक्टीरिया की मदद से बनाई जाती हैं जैसे बीयर, शराब, वाइन इत्यादि।
ब्लैक फंगस के मरीज को इन चीजों से बचना चाहिए।
बेकरी उत्पाद- ब्रेड, केक और अन्य बेकरी उत्पादों में भी कुछ प्रतिशत में कवक उपस्थित हो सकते हैं।
कुछ डेयरी उत्पाद- पनीर और दही में भी फफूंद के अंश हो सकते हैं। इसलिए इन्हें भी खाने से बचना चाहिए।
मांस- आमतौर पर चिकन और पोल्ट्री फार्म में कवक की मौजूदगी देखी जाती है। ऐसे में मांस का सेवन भी सावधानी से करना चाहिए।
अम्लीय खाद्य पदार्थ- अम्लीय खाद्य पदार्थों में भी फफूंद लग जाते हैं जैसे अचार, टमाटर, इत्यादि।
लेकिन इन्हें लगभग २१२° फारेनहाइट पर गरम करने से फफूंद नष्ट हो जाते हैं।
ब्लैक फंगस एक दुर्लभ और अवसरवादी संक्रमण है। कोरोना काल में इसके मामले अधिक देखने को मिले थे। यह रोग तेजी से फैलता है और कई अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए लक्षणों के दिखने पर शीघ्र डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। अगर सही समय पर उपचार मुहैया होता है तो मरीज की जटिलताएं कम हो जाती हैं।
बीमारी कैसी भी हो, हेक्साहेल्थ है ना। आप हमारे विशेषज्ञों से अपनी समस्या से जुड़े सुझाव ले सकते हैं। यदि आप कोई सर्जरी कराने की सोच रहे हैं तो हमारे अनुभवी डॉक्टर आपको बेहतर सर्जरी के विकल्प बता सकते हैं। Hexahealth के साथ आप निश्चिंत रह सकते हैं, क्योंकि हम आपको देते हैं सही, सटीक और विश्वसनीय जानकारी।
यह एक कवक संक्रमण है जो प्रतिरक्षा प्रणाली के कमजोर होने पर होता है। यह कवक वातावरण में ही पाया जाता है लेकिन एक स्वस्थ व्यक्ति को नुकसान नहींं पहुंचाता है।
भारत में इस संक्रमण को कोविड १९ और डायबिटीज के मरीजों में देखा गया था।
म्यूकोर्मिकोसिस के मुख्य रूप से ५ प्रकार होते हैं जो निम्न हैं:
राइनोसेरिब्रल म्यूकोर्मिकोसिस
पल्मोनरी म्यूकोर्मिकोसिस
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल म्यूकोर्मिकोसिस
क्यूटेनियस म्यूकोर्मिकोसिस
डिसेमिनेटेड म्यूकोर्मिकोसिस
ब्लैक फंगस के एकमात्र कारण म्यूकरमाइसिटिस समूह के कवक होते हैं। ये कवक हवा में, मिट्टी में और कुछ खराब हो चुकी वस्तुओं पर पाए जाते हैं।
ब्लैक फंगस रोग के मुख्य कारण निम्न कवक होते हैं:
रायजोपस एरिजस
रायजोपस पसिलस
अपोफायसोमायसेस एलिगंस
एब्सीडिया एलिगंस
म्यूकरेसेमोसस
ब्लैक फंगस ऐसे लोगों को हो सकता है जिन्हें निम्न समस्याएं होती हैं:
प्रतिरक्षा प्रणाली में विकार
डायबिटीज
आयरन की अधिकता
अंग प्रत्यारोपण
प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करने वाली दवाइयां
पेरिटोनियल डायलिसिस
ब्लैक फंगस के मरीज में निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं:
साइनस में दर्द
नाक बंद होना
नाक से खून आना
आंख में दर्द
पलक हानि
अंधापन
ब्लैक फंगस में कई लक्षण दिखते हैं जो अन्य बीमारियों से मेल खा सकते हैं। लेकिन अगर ब्लैक फंगस के प्रमुख लक्षणों की बात करें तो वो निम्न हैं:
साइनस और आंख में दर्द
नाक से पानी और खून आना
पेट दर्द
सिर के एक तरफ दर्द
धुंधली दृष्टि
अगर व्यक्ति को निम्न परेशानियां होती हैं तो यह ब्लैक फंगस के संकेत हो सकते हैं:
बुखार
सिर दर्द
साइनस में दर्द
आंख में सूजन
नाक से पानी और खून आ रहा हो
वैसे तो ब्लैक फंगस रोग होने पर कई तरह के लक्षण दिख सकते हैं। लेकिन अगर दृष्टि का आंशिक नुकसान और पलकों में सूजन है तो यह भी ब्लैक फंगस का सूचक हो सकता है।
आमतौर पर इस संक्रमण में सबसे पहला गंभीर नुकसान आखों को ही होता है।
ब्लैक फंगस का उपचार कई तरह की एंटीफंगल दवाइयों से किया जाता है। हालांकि जरूरत पड़ने पर सर्जिकल प्रक्रिया की भी मदद लेनी पड़ सकती है।
इसका नाम सर्जिकल क्षतिशोधन है। इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली कुछ दवाएं निम्न हैं:
एम्फोटेरिसिन बी
पोसाकोनाजोल
आइसावुकोनाजोल।
ब्लैक फंगस के लिए निम्न जांच और परीक्षण किए जाते हैं:
इमेजिंग टेस्ट- इसमें फेफड़े, साइनस और अन्य अंगों का चित्र देखा जाता है। इससे ब्लैक फंगस से प्रभावित स्थान को समझने में मदद मिलती है।
इमेजिंग टेस्ट में मुख्य रूप से इंडोस्कोपी, मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआइ), नॉन कंट्रास्ट कंप्यूटेड टोमोग्राफी (एनसीसीटी) तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है।
सूक्ष्मजैविक परीक्षण- इससे कवक के पहचान की पुष्टि होती है। इस परीक्षण में मरीज के संक्रमित क्षेत्र का सैंपल लिया जाता है।
इसके बाद प्रयोगशाला में कई तरह के परीक्षण किए जाते हैं।
अगर आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली में कोई विकार है तो ब्लैक फंगस से बचने के लिए निम्न तरीके अपनाएं:
मास्क लगाएं- भीड़भाड़ और गंदी जगहों पर मास्क का प्रयोग करें।
टीके लगवाएं- कोविड - १९ के टीके अवश्य लगवाएं ताकि कोरोना वायरस के प्रति आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली बनी रहे।
मिट्टी से दूरी बनाएं- आमतौर पर ब्लैक फंगस के कवक मिट्टी में होते हैं। इसलिए मिट्टी के संपर्क से दूर रहें।
ब्लैक फंगस के मरीज को सबसे पहले डॉक्टर के पास जाना चाहिए। डॉक्टर उपचार के साथ - साथ कुछ निम्न घरेलू उपाय बता सकते हैं:
अदरक- इसमें जिंजेरोल नाम का एक पदार्थ होता है जिसमें एंटीमाइक्रोबियल और एंटी - इंफ्लेमेट्री गुण होते हैं।
तो अगर इसका इस्तेमाल किया जाता है तो यह संक्रमण की गति को कम करने में मददगार हो सकता है।
हल्दी- आमतौर पर हल्दी में करक्यूमिन नाम का एक तत्व होता है जिसमे एंटी - ऑक्सीडेंट और एंटी - इन्फ्लेमेटरी गुण होते हैं।
इस तरह हल्दी ब्लैक फंगस के मरीज को फायदा कर सकता है।
ग्रीन टी- इसमें कैटेचिन नाम का एक तत्व होता है। इसमें एंटीफंगल गुण होते हैं जो ब्लैक फंगस के रोगी को फायदा पहुंचा सकते हैं।
ब्लैक फंगस रोग म्यूकरमाइसिटिस समूह के कवक के संक्रमण से होता है। ये कवक हमारे आस - पास की जगहों में उपस्थित होते हैं जैसे हवा, मिट्टी, सड़ी हुई वस्तुएं इत्यादि।
ब्लैक फंगस मुख्य रूप से ऐसे लोगों को होता है जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है जैसे कोविड - १९ के मरीज।
ब्लैक फंगस का संक्रमण सबको नहीं होता है। यह सिर्फ उन्हीं लोगों को हो सकता है जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली थोड़ी कमजोर है। तो ऐसे व्यक्तियों को ब्लैक फंगस से बचने की विशेष जरूरत है।
इससे बचने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:
अपने आसपास सफाई रखें - जिस जगह रहते हैं वहां पर सफाई रखें। आमतौर पर देखा जाए तो प्रदूषित और नमी वाली जगहों पर ही कवक पनपते हैं।
हमेशा ताजा भोजन खाएं- फलों, सब्जियों और भोजन को ताजा ही खाएं। ऐसा करने से आहार में फफूंद लगने की संभावना नहीं रहती है।
मास्क लगाएं- भीड़भाड़ और गंदी जगहों से गुजरते समय मास्क का प्रयोग करें।
कुछ भोज्य पदार्थों को निषेध करें- ऐसे खाद्य पदार्थों को खाने से बचें जिसमे फफूंद होने की संभावना हो सकती है जैसे बेकरी उत्पाद, पनीर, चिकन, इत्यादि।
ब्लैक फंगस एक ऐसा रोग है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है। लेकिन अगर आप मास्क का प्रयोग करते हैं तो ये कवक नाक में प्रवेश नहीं कर पाते हैं।
इस प्रकार आप ब्लैक फंगस से निश्चिंत रह सकते हैं।
अगर ब्लैक फंगस का उपचार नहीं होता है तो यह धीरे - धीरे शरीर के बाकी हिस्सों में भी फैल जाता है।
इससे बाकी के अंग भी खराब होने लगते हैं और अंततः जानलेवा साबित हो सकते हैं।
हां, सही समय पर उपचार मिलने से डॉक्टर ब्लैक फंगस के संक्रमण को नियंत्रित कर सकते हैं। जरूरत पड़ने पर इस रोग में प्रभावित ऊतकों को काटकर निकालना भी पड़ सकता है।
कोविड - १९ से संक्रमित मरीजों को ठीक करने के लिए स्टेरॉइड का अधिक इस्तेमाल करना पड़ सकता है। स्टेरॉइड का इस्तेमाल इन्फ्लेमेशन को कम करने के लिए होता है। इंफ्लेमेशन एक प्रतिरक्षा प्रक्रिया है जो संक्रमण से बचाता है।
लेकिन स्टेरॉइड के अधिक इस्तेमाल से इन्फ्लेमेशन की प्रक्रिया नहीं हो पाती है। इसके फलस्वरूप प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है।
यह इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज की प्रतिरक्षा प्रणाली कैसी है। अगर यह ज्यादा कमजोर हुई तो ब्लैक फंगस तेजी से फैलता है और घातक बन सकता है।
उपचार का समय हर मरीज के लिए अलग हो सकता है। यह मरीज की उम्र, चिकित्सीय स्थिति और डॉक्टर पर निर्भर करता है।
लेकिन आमतौर पर देखा जाए तो लगभग १२ हफ्तों में म्यूकोर्मिकोसिस से संक्रमित मरीज ठीक हो सकता है।
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Last Updated on: 25 September 2023
MBBS, DNB General Surgery, Fellowship in Minimal Access Surgery, FIAGES
12 Years Experience
Dr Aman Priya Khanna is a well-known General Surgeon, Proctologist and Bariatric Surgeon currently associated with HealthFort Clinic, Health First Multispecialty Clinic in Delhi. He has 12 years of experience in General Surgery and worke...View More
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